Monday 30 January 2012

The Spiritualist By Megan Chance : Review

Book Description

Publication Date: May 27, 2008

Sometimes truth is the greatest illusion of all. 


In a cold January morning in 1856, Evelyn Atherton’s husband is found murdered after attending an exclusive séance. Having “married up” into New York society, Evie herself is the immediate suspect. Ostracized and vulnerable, she knows that to clear her name she must retrace her husband’s last steps. And so, joining forces with her husband’s best friend–and the only Manhattan lawyer who will accept her case–Evie dives into the mysterious underworld of the occult. 
Before long, the trail brings them to a charismatic medium, Michel Jourdain. Evie’s instincts tell her the smooth-talking Jourdain is a charlatan–and her only hope for exoneration. But getting close to Jourdain means embracing a seductive and hypnotic world where clues to murder come through the voices of the dead. 
Caught in a perilous game in which she is equal player and pawn, predator and victim, Evie finds there is no one to trust, perhaps not even herself. As her powerful in-laws build a case against her, and with time running out, Evie must face the real ghosts of her past if she is to have any hope of avoiding the hangman.


Reviews


The Spiritualist sweeps the reader into the richly detailed world of upstairs/downstairs New York City of the 1850s. The heroine's life and sanity are at stake in this unique murder mystery, and compelling characterization and clever plot twists abound. There's not a ghost of a chance that Megan Chance's enthralling story will let you put it down.”
—Karen Harper, New York Times bestselling author of The Last Boleyn

“[The Spiritualist is] a suspenseful tale of dark obsession and erotic mysticism…Intricate plotting and elegant characterizations will keep readers turning the pages faster and faster toward the startling, unexpected conclusion.”
—Kristin Hannah, New York Times bestselling author

"The Spiritualist is darkly mesmerizing historical suspense infused with a fabulously seductive supernatural atmosphere and riveting authenticity.”
—Amanda Quick, New York Times bestselling author


Review 
Book story sets in winter 1857 in New-York. About Evelyn Atherton a fabulously beautiful women and the widow of Peter Atherton who got murdered one night when they both went together to the one of the sitting of the club where the people comes to talk with their dead relatives where a medium named Micheal Jordan who has a very attractive personality. Suddenly Evelyn is a prime murder suspect as Peter gives all his property to her in his will.After the case and bale Evelyn comes to Benet where Jordan satys and The case is now in the hand of Benjamin Rapling the business patner of Peter. Benjamin promice Evelyn that he will do all that things which is necessary to make Evelyn out of that case. Here in the Benet mansion Evelyn turns into a good medium for spirits and she begins to see some things which always disturbing for her..But she has to find the original murderer before times runs out.Will she able to do so?? She has to go through the evil spirits of past to know the Truth...the story line is very good and it gives us the flavor of like true story. The all characters are really very brilliantly described . The environment generated by description is brilliant. By the story line writer puts hand into the dark and bright side of woman thoughts very impressively. The sexual desires of a woman is described very sophisticated manner.The story goes from very shocking turns and the end will be also shock you if you dont guess the murderer correctly... As in my condition i guess the murderer in the middle of book that make the end little not surprising but yes the climax is very interesting..You cant put book away until you finish it.... undoubtedly .-
 Satyajeet Patil

Tuesday 17 January 2012

दमित इच्छाएं और गंद का बाजार

अनेक कहावतें जानवरों की प्रवृत्तियों को देखकर गढ़ी गई हैं। दरअसल सारे ज्ञान का आदि और अंत प्रकृति से ही होता है। मनुष्य ने जंगलों का अधिग्रहण किया है। समुद्र किनारे की जमीन को पाटकर उस पर इमारतें बनाई हैं। जानवरों ने इस मायने में मनुष्य के संसार में प्रवेश किया है कि उनकी प्रवृत्तियां मानव स्वभाव का हिस्सा बन गई हैं। हमारे बसाए हुए सीमेंट के बीहड़ों में चहुंओर हिंसक जानवरनुमा इंसान स्वच्छंद घूमते हैं।

बहरहाल ‘भेडिय़ा धसान’ फिल्म जगत में खूब प्रचलित है, अर्थात किसी सफलता को दोहराने का प्रयास कल्पनाहीन फिल्मकार करते रहते हैं। देश-विदेश की फिल्मों की नकल के साथ ही सफल फिल्मों को थोड़ा-सा परिवर्तन करके बनाने का प्रयास किया जाता है। विगत वर्ष एकता कपूर और मिलन लूथरिया की ‘द डर्टी पिक्चर’ की तर्ज पर कुछ करने की बेचैनी कई लोगों को है।

सस्ती सनसनीखेज अश्लील-सी बी-ग्रेड फिल्में बनाने का काम कांति शाह करते रहे हैं। उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती के साथ ‘गुंडा’ नामक एक्शन फिल्म भी बनाई थी। ‘रॉकस्टार’ के दर्शकों को याद होगा कि फिल्म की मनमौजी युवा नायिका ‘जंगली जवानी’ नामक अश्लील फिल्म देखने जाती है। हर शहर की किसी संकरी-सी गली में एक ठाठिया सिनेमाघर होता है, जहां इस तरह की फिल्में प्रदर्शित होती हैं। ऐसी फिल्मों के असंख्य दर्शक भी हैं, अन्यथा इस तरह की फिल्में बने ही नहीं। बाजार में माल बिकता है, इसलिए बनाया भी जाता है। 

बहरहाल, एक फिल्मकार कांति शाह के जीवन से प्रेरणा लेकर एक काल्पनिक फिल्म बना रहा है, जिसके नायक का नाम उसने शांति शाह रखा है। स्पष्ट है कि इस ‘शाहनामे’ के नाम पर कुछ ऐसी अश्लील-सी चीजें फिल्म में होंगी, जो सेंसर की सुई की नोंक से निकल जाए। सिल्क स्मिता के जीवन से प्रेरित यथार्थ के नाम पर ‘डर्टी’ क्लीन होकर निकल गया। इसके कुछ संवाद सुनकर कांति का चेहरा भी शर्म से लाल हो जाता। यह रास्ता अनेक लोगों ने अपनाया है।

शेखर कपूर ने यथार्थ चित्रण के लिए फूलन देवी प्रेरित फिल्म में अपशब्द और अश्लील को भी श्रेष्टि समाज द्वारा स्वीकार करने योग्य बना दिया था, जिसे उच्च न्यायालय ने भी हरी झंडी दिखाई थी। बहरहाल, शेखर कपूर की फिल्म में बहुत गहराई थी, परंतु वह देखी गई ‘उत्तेजक दृश्यों’ के लिए, जो दरअसल विद्रूप जगाते थे। इस तरह की फिल्म के लिए कांति शाह की भूमिका के लिए नामी कलाकार लेना जरूरी है। 

‘द डर्टी पिक्चर’ में मल्लिका शेरावत या राखी सावंत होती तो उसे अधिक दर्शक नहीं मिलते, परंतु पारंपरिक छवि वाली विद्या बालन के आते ही ‘अनदेखे को देखने’ की जिज्ञासा दर्शकों में जगी। इसी तरह दक्षिण के बुढिय़ाते सुपर सितारे की भूमिका में गंभीर चरित्र चित्रण के लिए पहचाने जाने वाले नसीरुद्दीन शाह को लेना भी फिल्म के प्रति लगाव पैदा करने में सफल हुआ। 

मनोरंजन उद्योग में स्थापित छवि को भुनाने के साथ ही छवि के विपरीत भूमिका करना भी दर्शकों में उन्माद जगाता है। फॉर्मूले की मशीन में इस तरह का तेल समय-समय पर डालना ही पड़ता है। कांति शाह ने किसी और उद्देश्य से धर्मेंद्र पर फिल्माए एक दृश्य को अपनी ‘जंगली जवानी’ नुमा किसी फिल्म में ठूंस दिया। सनी देओल ने इस धोखाधड़ी से दु:खी होकर कांति की जमकर पिटाई कर दी। सुना है कि इस प्रस्तावित फिल्म में इस तथाकथित तथ्य को डाला जा रहा है।

दरअसल धर्मेंद्र अपनी बिंदास दरियादिली में कुछ निर्माताओं को अतिथि भूमिका करके उपकृत करते थे। बहरहाल, इस प्रस्तावित फिल्म के निर्माता मिलन लूथरिया से इस कदर प्रभावित हैं कि न केवल उनकी ‘द डर्टी पिक्चर’ का पुरुष संस्करण बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वरन् फिल्म का शीर्षक ‘ये है मुंबई’ भी मिलन की ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ से प्रेरित लगता है। ‘भेडिय़ा धसान’ भी इस प्रयास का नाम हो सकता था। दरअसल सफलता की कोई डुप्लीकेट मशीन नहीं होती और न ही कोई जेरॉक्स कॉपी चलती है। जनता की अदालत में मूल दस्तावेज दिखाने पड़ते हैं। 

अब अगर विद्या बालन भी ‘डर्टी’ को दोहराएं तो सफल नहीं हो सकतीं। सच तो यह है कि विद्या बालन ने ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में बेहतर अदाकारी की थी, जबकि पटकथा रानी मुखर्जी की सहायता कर रही थी। मनुष्य की दमित इच्छाओं और कुटैव ने बाजार को कई दुकानें प्रदान की हैं।

Sunday 15 January 2012

बेगम पारा: अपने युग के तापमान से ऊंचा था उनका पारा


संजय लीला भंसाली की रनवीर कपूर अभिनीत फिल्म 'सांवरिया' की नायिका सोनम कपूर की दादी की संक्षिप्त भूमिका बेगम पारा ने अभिनीत की। बेगम पारा की बहन की बेटी रुखसाना सुलतान खुशवंत सिंह के छोटे भाई शाविंदर सिंह की पत्नी थीं और उनकी संतान अमृता सिंह सनी देओल की 'बेताब' की नायिका थीं और सैफ अली खान से उनका विवाह हुआ था।

बेगम पारा दिलीप कुमार के भाई नासिर खान की बीवी थीं और उनका पुत्र अयूब खान छोटे परदे पर आज भी सक्रिय है। फिल्म उद्योग में सफल कहानियां थोड़े परिवर्तन के साथ बार-बार बनाई जाती हैं और यहां रिश्ते भी खूब घूम-फिरकर सामने आते रहते हैं। 

कुछ वर्ष पूर्व सलमा आगा ने धूम मचाई थी और वे कपूर परिवार की शाखा से थीं। प्रेम अदीब के साथ बेगम पारा ने पहली फिल्म 'चांद' १९४४ में प्रभात फिल्म कंपनी के लिए अभिनीत की थी। आधा दर्जन प्रेम कहानियों में काम करने के बाद बेगम पारा ने खुरदरे एक्शन हीरो शेख मुख्तार के साथ तीन सफल फिल्में दीं- 'दादा', 'दारा' और 'उस्ताद पेड्रो'।

बेगम पारा कभी शिखर सितारा नहीं बन पाईं, जिसके तीन कारण थे। पहला तो यह कि पारंपरिक मूल्यों के उस दौर में वे बिंदास जीवन शैली वाली बाला, फिल्मी दावतों में खुलेआम पुरुषों के साथ बैठकर उनके बराबर ही पी सकने की क्षमता रखती थीं। 

कुछ क्षेत्रों पर पुरुषों का अधिकार माना गया है और जब फार्मूला सोच और ढांचों पर कोई नारी आक्रमण करे, तो मर्दों के पैर के नीचे से जमीन या कहें तथाकथित श्रेष्ठता का कालीन खिसक जाता है। अपने युग के तापमान से ऊंचा था पारा उसका। दूसरा यह कि आज जिन साहसी पोशाकों को पहनकर- करीना, कटरीना, प्रियंका इठलाती हुई आधुनिकाएं कहलाती हैं, वे सब बेगम पारा उस जमाने में पहनती थीं।

तीसरा यह कि बेगम पारा की जबान तल्ख थी। वे जैसा सोचती थीं, वैसा ही बोलती थीं। उस जमाने में कपड़ों में घूंघट की तरह, जबान में भी परदेदारी रखनी पड़ती थी। बेगम पारा जालंधर में जमीन-जायदाद वाले परिवार में पैदा हुई थीं। उनके पिता मियां एहसान उल हक जज थे। उनके भाई एम हक की पत्नी प्रोतिमा दासगुप्ता थीं। उनके खानदान में कुछ नामी क्रिकेट खिलाड़ी भी हुए हैं। बेगम पारा की तस्वीर 'लाइफ' पत्रिका में छपी थी और सरहदों पर तैनात जवान उसे सिरहाने रखकर सोते थे।