Thursday 3 May 2012

On the 100th Year of Indian Cinema. The Changes and Looses..


निन्यानवे निन्यानवे .... बाबु साहब भारतीय सिनेमा को पुरे निन्यानवे साल पुरे हो गए और अमृत वर्ष शुरू हो गया ... कल ५९ वां राष्ट्रीय पुरस्कार वितरित हुवा , विद्या बालन का बोलबाला रहा , क्या सच में भारतीय सिनेमा की नारी सही मायने में उभर कर सामने आ रही है? पहले जहा फिल्मो में अभिनेत्री का स्थान मात्र एक सजावटी सामान के तौर पर होता रहा है (अपवाद हर जगह होते हैं) वही आज के दौर में कई ऐसी फिल्मे बन रही है जिस में अभिनेत्री को मुख्य भूमिका में दिखाया गया है और सब से बड़ी बात ये हैं की वो सारी भूमिकाये सशक्त भूमिकाएं थी ना की दबी हुयी नारी को प्रदर्शित करने वाली. और उस से भी बड़ी बात ये थी की वो सारी फिल्मे चली ही नहीं बल्कि रिकॉर्ड तोड़ कमाई भी की .. कई और फिल्मे आना अभी बाकि हैं ... क्या ये एक नया और अच्छा बदलाव आया है भारतीय सिनेमा में? ... होलीवुड की फिल्मो में अक्सर महिलाओं को सशक्त भूमिकाओं में प्रदर्शित किया जाता है जो दर्शको द्वारा काफी सराहा भी जाता हैं... मगर मुझे लगता है भारतीय सिनेमा को उस स्तर तक पोहोचने के लिए अभी काफी समय लगेगा... 
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