अमरीश पुरी तिहत्तर वर्ष की उम्र में १२ जनवरी २००५ को दिवंगत हुए। आज तक शक्तिशाली खलनायक की भूमिका का शून्य जैसा का तैसा है। आज जब लोकप्रिय सितारा सलमान खान ‘बॉडीगार्ड’ जैसी फिल्म में आदित्य पंचोली की तरह के खलनायकों से भिड़ता है, तो लड़ाई एक तरफा लगती है। ‘गजिनी’ में आमिर खान दक्षिण फिल्म उद्योग के खलनायक को पीटता है, तब भी वह प्रभाव नहीं आता, जो अमरीश पुरी की मौजूदगी संभव करती थी। आज खलनायक की भूमिका में प्रस्तुत लोग बच्चे लगते हैं।
अमरीश पुरी ने कई वर्ष तक रंगमंच पर काम किया। गिरीश कर्नाड के ‘हयवदन’ में वे पहलवान प्रेमी की भूमिका में थे और अमोल पालेकर कवि प्रेमी की भूमिका में थे। पहलवान की देह और प्रेमी की भावना तीव्रता को उन्होंने बखूबी प्रस्तुत किया था। सुखदेव की ‘रेशमा और शेरा’ तथा देव आनंद की ‘प्रेम पुजारी’ में प्रभावहीन भूमिकाओं के बाद श्याम बेनेगल की ‘निशांत’ में उन्होंने दर्शकों और फिल्मकारों को प्रभावित किया। उस समय तक प्रमुख खलनायक प्राण चरित्र और हास्य भूमिकाओं की ओर आकृष्ट हो गए थे। अमरीश पुरी ने अपनी शख्सियत से प्रभावित किया। वर्षों के रंगमंच के अनुभव ने उनकी सहायता की। ‘शोले’ के गब्बर यानी अमजद खान उस समय तक गुब्बारे की तरह फूल चुके थे।
स्टीवन स्पीलबर्ग की ‘इंडियाना जोंस एंड द टेंपल ऑफ डूम’ में छोटी परंतु प्रभावशाली भूमिका और बोनी कपूर की सलीम-जावेद लिखित फिल्म ‘मिस्टर इंडिया’ के डायलॉग ‘मोगंबो खुश हुआ...’ ने उन्हें रातोरात बच्चों से बूढ़े दर्शकों तक में अपार लोकप्रियता दिलाई।
अमरीश पुरी को सामाजिक जीवन में हैट पहनने का बहुत शौक था। यहां तक कि शवयात्रा में भी वे हैट लगाए रहते थे। दरअसल जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही उन्होंने हॉलीवुड सितारा होने का सपना देखा था, लेकिन उनके सारे प्रयास विफल हो गए थे। अत: यह संभव है कि भारतीय मनोरंजन जगत में छाते ही उन्होंने सामाजिक जीवन में हैट पहनना प्रारंभ कर दिया। भारतीय सिनेमा में सारे खलनायक व्यक्तिगत जीवन में अत्यंत नेक और भद्र पुरुष रहे हैं। और अमरीश पुरी को भी उनकी नेकी के लिए याद किया जाता है।





