Tuesday 28 June 2011

भारत से कितनी दूर हैं उसकी फिल्में

दुनिया के तमाम देशों की फिल्मों में वहां के राष्ट्रीय चरित्र की झलक देखने को मिलती है। फिल्मों के माध्यम से भी किसी देश का परिचय पाने की कोशिश की जा सकती है। रॉबर्ट स्कलर की किताब ‘मूवीज मेड ए नेशन’ में हॉलीवुड के विकास के साथ अमेरिका को जोड़ा गया है। आज ईरान की फिल्मों से ईरानी समाज का अच्छा-खासा परिचय हमें मिलता है।

तमाम फिल्म बनाने वाले देशों ने अपने इतिहास और साहित्य से कथाएं ली हैं। अमेरिका ने अपने यहां प्रकाशित कॉमिक्स पर भी फिल्में गढ़ी हैं। अकिरा कुरोसावा की फिल्में जापान की इतिहास कक्षाओं में पढ़ाई जा सकती हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद फ्रांस ने थ्रिलर फॉर्मेट में देशभक्ति की बात प्रस्तुत की। रूसी साहित्य की ‘वार एंड पीस’, ‘डॉ जिवागो’ और ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ पर हॉलीवुड ने फिल्में रची हैं और इन्हीं उपन्यासों पर बनी रूसी फिल्मों से वे बेहतर भी सिद्ध हुई हैं।

इन तमाम देशों में सेंसर के लचीलेपन के कारण भी बहुत सी साहसी फिल्में बनी हैं। मसलन ऑलिवर स्टोन की फिल्मों में वियतनाम में की गई गलती का विवरण है। स्टोन ने वियतनाम में बतौर शिक्षक और बतौर योद्धा भी वक्त बिताया है। उनकी ‘जेएफके’ में निर्भीक ढंग से कैनेडी की हत्या के राज खोले गए हैं।

भारतीय फिल्मों में भारत उजागर नहीं होता। अपवादस्वरूप बनीं कुछ फिल्मों को छोड़ दिया जाए तो अधिकांश फिल्में यथार्थ से कोसों दूर पलायनवादी फिल्में हैं। किसी भी देश का मनोरंजन उस देश की रुचियों का प्रतिनिधित्व नहीं करे- यह अजीब बात है। हमारे सिनेमा ने समस्याओं का भी फॉमरूला रूप प्रस्तुत किया है। आज देश में व्याप्त भ्रष्टाचार और उसके विरोध में संविधान के परिवर्तन और अंततोगत्वा अराजकता को नियंत्रित करने के प्रयासों पर भी कोई फिल्म नहीं बन रही है। भ्रष्टाचार पर कुछ फिल्मी प्रयास हुए हैं, परंतु वे इतने सतही हैं कि सरकारी प्रयास लगते हैं।

हमारे यहां किसी भी फिल्मकार के पास ऑलिवर स्टोन की प्रतिबद्धता और साहस नहीं है और यह भी सही है कि भारतीय सेंसर बोर्ड निर्मम, निष्पक्ष यथार्थ प्रस्तुत नहीं करने देता। वह सेक्स और हिंसा के खिलाफ उतना सख्त रवैया नहीं अपनाता, जितना कि सत्य के खिलाफ। उसके चंगुल से बच भी जाएं तो हुड़दंगियों से नहीं बच सकते। राजेंद्र यादव द्वारा अनूदित एवं संपादित पुस्तक ‘नरक ले जाने वाली लिफ्ट’ (राजकमल प्रकाशन) में जैफ्री आर्चर की कहानी ‘खाता नंबर’ का सारांश इस प्रकार है कि भ्रष्टाचार मिटाने के आंदोलन स्वरूप सत्ता में आई पार्टी ने भ्रष्ट लोगों को गिरफ्तार किया।

उनकी संपत्ति जब्त की, परंतु विदेशी बैंकों में जमा धन के बारे में स्विट्जरलैंड से कोई जानकारी उन्हें नहीं मिली। भेष बदलकर वित्तमंत्री एक बड़ा-सा सूटकेस लेकर किसी तरह न केवल स्विस बैंक में जाते हैं, वरन दो प्रमुख अधिकारियों के साथ बंद कमरे में मिलने में सफल भी होते हैं। वे अपना रिवॉल्वर निकालकर अधिकारियों से कहते हैं कि खातों की जानकारी दंे, अन्यथा उन्हें गोली मार देंगे। अपनी जान का जोखिम होते हुए भी शपथबद्ध अधिकारी खातों की जानकारी नहीं देते।

वित्तमंत्री उन्हें गोली मारने के लिए तत्पर हैं, परंतु मौत के सामने भी अधिकारी नहीं डिगते। इस प्रतिबद्धता के सामने झुककर वित्तमंत्री उन्हें अपने पचास लाख डॉलर बैंक में जमा करने को कहते हैं। अब मंत्रीजी पूरी तरह आश्वस्त हैं कि उनका काला धन स्विट्जरलैंड बैंक में सुरक्षित रहेगा। यह सचमुच आश्चर्यजनक है कि यह कथा जैफ्री आर्चर ने लिखी है, शरद जोशी या हरिशंकर परसाई ने नहीं।

आज सारी कवायद कुछ इस तरह लगती है कि मौजूदा भ्रष्ट लोग हमें पसंद नहीं हैं और उनके बदले हम दूसरे भ्रष्ट लोगों को किसी और नाम से सत्ता सौंपना चाहते हैं गोयाकि स्वांग का प्रारूप बदलकर नया स्वांग लाना है। भ्रष्टाचार की जड़ में है नैतिक मूल्यों का पतन और कोई भी आंदोलन उनकी बहाली के बारे में नहीं सोच रहा है। लाक्षणिक उपचार तो हम वर्र्षो से कर रहे हैं।

सत्ता के ठियों के नाम बदलने से क्या होगा? दरअसल भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम परिवार से प्रारंभ होनी चाहिए, जहां नैतिक मूल्य स्थापित होते हैं। लगभग हर परिवार में कोई न कोई भ्रष्ट है, कुछ मजबूर हैं और कुछ ने सुविधाजनक शॉर्टकट अपनाया है। हर भ्रष्ट का दावा है कि वह परिवार की सुरक्षा के लिए यह कर रहा है। जब राष्ट्र ही नहीं बचेगा तो परिवार का क्या होगा? परिवार में ही जब कोई सदस्य इसका सविनय विरोध करे, तब कुछ उम्मीद बनती है। अब हर आम आदमी को अपने परिवार में नायक बनना होगा, भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में भीड़ बनने से कुछ नहीं होगा।

भारतीय फिल्म इतिहास में किंवदंती बन गया गब्बर सिंह

सत्ताईस जुलाई, 1992 को इक्यावन वर्षीय अमजद खान की हृदयगति रुकने से मृत्यु हो गई। उनके द्वारा अभिनीत चरित्र गब्बर सिंह आज भी जीवित है। १९७५ में रमेश सिप्पी की सलीम-जावेद लिखित ‘शोले’ में अमिताभ बच्चन और धर्मेन्द्र जैसे सितारों के साथ संजीव कुमार जैसा विलक्षण कलाकार मौजूद था।

इन सभी ने शिखर श्रेणी का काम किया है, परंतु इन तीनों से कमतर अभिनेता होने के बावजूद अमजद खान अभिनीत गब्बर सिंह सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ- यह पात्र भारतीय फिल्म इतिहास में किंवदंती बन चुका है और उसके बोलने, चलने-फिरने और खैनी फांकने की अदा की नकल कई नेताओं ने लोकप्रियता पाने के लिए की।

आज प्रदर्शन के तीन दशक बाद भी उस पात्र की पैरोडी प्रस्तुत की जाती है। सनकीपन और क्रूरता का कॉमिक बुक प्रस्तुतीकरण बच्चों में आज भी प्रिय है। सिनेमा के माध्यम से अनचाहे ही अराजकता के प्रचार का प्रतीक बन गया है और भांति-भांति के मुखौटे पहने लोग न केवल गब्बर सिंह वाला काम कर रहे हैं, वरन वही लोकप्रियता भी हासिल कर रहे हैं।

गांधी के देश में गब्बर सिंह की लोकप्रियता अबूझ पहेली है। हालांकि इस भूमिका के लिए रमेश सिप्पी पहले डैनी डेन्जोग्पा को लेना चाहते थे, जो अफगानिस्तान में फीरोज खान की ‘गॉडफादर’ से प्रेरित फिल्म ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग कर रहे थे, जहां से अमजद खान के पिता भारत आए थे। सलीम साहब के आग्रह के कारण रमेश सिप्पी ने नए कलाकार अमजद खान को अवसर दिया, जिसे एक नाटक में सलीम और जावेद ने देखा था।

पात्र लेखक की कठपुतलियां होते हैं, परंतु अमजद खान की अदायगी ने डोर ही खींच ली। इस एक पात्र ने अमजद को १३क् फिल्में दिलाईं। गोवा जाते समय कार दुर्घटना के बाद उनका बच जाना भी खुदा का करिश्मा ही था। अमिताभ बच्चन ने संकट की उस घड़ी में उन्हें अपना खून दिया और घंटों अस्पताल में प्रार्थना करते रहे। अमजद चंगे हुए, परंतु कारटीजोन के प्रभाव से मोटे हो गए और उन्हें दिन भर में केवल शुद्ध दूध और शक्कर की सौ प्याली चाय का चाव हो गया। इससे वजन बढ़ता गया और बेचारा दिल भी कब तक, कहां तक दम मारता!

प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक और आलोचक

Thursday 23 June 2011

कैटरीना कैफ की कुंडली में खान सितारे

कैटरीना कैफ 26 जुलाई से सलमान खान के साथ आदित्य चोपड़ा निर्मित कबीर खान निर्देशित फिल्म ‘एक था टाइगर’ की शूटिंग इस्तांबुल में प्रारंभ करेंगी और अगले पांच महीनों तक इसी फिल्म के लिए पांच विभिन्न देशों में शूटिंग करेंगी। इस फिल्म के बाद कैटरीना कैफ यश चोपड़ा निर्देशित एक अनाम फिल्म में शाहरुख खान और अनुष्का शर्मा के साथ शूटिंग करेंगी। इसके साथ ही आदित्य चोपड़ा की ‘धूम ३’ में भी आमिर खान के साथ उनकी अतिथि भूमिका होगी। गोयाकि करीना कपूर के बाद कैटरीना कैफ को तीनों खान सितारों के साथ काम करने का अवसर मिलेगा।

इस्तांबुल में राजनीतिक तनाव है और सलमान खान तथा कैटरीना कैफ के बीच भी तनाव है। ज्ञातव्य है कि लंदन से मुंबई आईं कैटरीना कैफ के संघर्ष भरे वर्षो में सलमान खान ने उन्हें सहारा दिया और उनके लिए हिंदी तथा नृत्य के शिक्षक रखे। उन वर्षो में सलमान ने न केवल उनका उत्साह बढ़ाया, वरन आर्थिक मदद भी की। कैटरीना एक तरह से खान परिवार का हिस्सा हो चुकी थ

सलमान खान के कारण फिल्म उद्योग में लोगों ने कैटरीना का कोई अनुचित लाभ उठाने की कोशिश नहीं की। वह खान परिवार के प्रश्रय में सुरक्षित रहीं। इस सहायता के साथ ही उन्होंने अपने परिश्रम और अनुशासन से सफलता प्राप्त की और एक के बाद एक अनेक सफल फिल्मों में काम किया।

सफलता का शिखर इतना छोटा होता है कि उसमें एक ही व्यक्ति रहता है। दूसरे की जगह तो छोड़िए, अपने साए तक के लिए थोड़ी-सी जगह होती है। कैटरीना के माता-पिता का संबंध टूट चुका था और अपने सात भाई-बहनों की जवाबदारी भी उनके सुडौल, सुंदर कंधों पर रही है और आज वह अपनी छोटी बहन इसाबेल को भी सितारा बनाने की कोशिश कर रही हैं। जो सलमान ने उनके लिए किया, वही वह अपनी बहन के लिए कर रही हैं।

सलमान खान और कैटरीना कैफ के बीच प्रेम संबंध टूट चुका है, परंतु कोई दुश्मनी नहीं है और सलमान की रजामंदी से ही निर्माता ने कैटरीना को लिया होगा। याद आता है कि दिलीप कुमार और मधुबाला ने अपने तूफानी इश्क के बीच गलतफहमियों के कारण इस कदर अलगाव झेला कि वे व्यक्तिगत अबोले दौर में भी ‘मुगल-ए-आजम’ के प्रेम दृश्य अनुभूति की तीव्रता से करते रहे।

मधुबाला के पिता ने बलदेवराज चोपड़ा की ‘नया दौर’ की आउटडोर शूटिंग से इनकार किया, परिणामस्वरूप मामला अदालत में गया, जहां दिलीप कुमार ने स्वीकार किया कि वे मधुबाला से प्यार करते हैं। यह पहला प्रकरण है, जहां भरी अदालत में इकरारे इश्क हुआ। शहजादे सलीम ने भी दरबार में अकबर के सामने इश्क का एलान किया था।

बहरहाल, कैटरीना कैफ का अरमान था शाहरुख खान के साथ काम करना और इसी की खातिर कोई तीन वर्ष पूर्व कैटरीना कैफ के जन्मदिन पर सलमान खान ने ओलिव होटल में शानदार दावत का आयोजन किया। उसी दावत में सलमान और शाहरुख के बीच अदावत हो गई, जो आज तक जारी है। ऊपरवाले की पटकथा देखिए कि आज दोनों खानों में अनबन है, परंतु कैटरीना कैफ दोनों के साथ फिल्में कर रही हैं। यथार्थ में कल्पना से अधिक नाटकीय स्थितियां बनती हैं। समय की नदी में बहुत घुमाव और गति है। बहरहाल, भाग्यवान कैटरीना कैफ ने अभी तक अक्षय कुमार के साथ डेविड धवननुमा फिल्मों में बहुत उछल-कूद कर ली, लटके-झटके भी दिखाए, परंतु अब अभिनय के मामले में शीला को जवान हो जाना चाहिए।

काबुलीवाले की वापसी का स्वागत


पृथ्वी थिएर्ट्स में ‘इप्टा’ के रमेश तलवार ने रबींद्रनाथ टैगोर की कहानी ‘काबुलीवाला’ के साथ पाकिस्तान की जाहिदा हिना की कहानी को जोड़कर वर्तमान में अफगानिस्तान की त्रासदी तथा भारत और अफगानिस्तान के ऐतिहासिक व सांस्कृतिक संबंधों को एक नए प्रयोग द्वारा प्रस्तुत किया और अधिकांश दर्शक आंखें पोंछते हुए थिएटर से बाहर आए।

जाहिदा हिना दैनिक भास्कर के लिए नियमित कॉलम लिखती हैं और भास्कर के सौजन्य से ही रमेश तलवार ने उनसे संपर्क स्थापित करके इजाजत ली और इसे प्रस्तुत किया है। मानवीय करुणा तमाम भौगोलिक और राष्ट्रीय सीमाओं से परे जाकर इंसानों के एक-दूसरे से जुड़े होने की उदात्त भावना को प्रस्तुत करती है।

ज्ञातव्य है कि रबींद्रनाथ टैगोर की इस महान कहानी पर बांग्ला और हिंदी भाषा में दो फिल्में बनी हैं। बिमल राय की हिंदी में बनी ‘काबुलीवाला’ में बलराज साहनी ने काबुल से भारत आए पठान की भूमिका निभाई थी। कुछ वर्ष पूर्व आई कबीर खान की अद्भुत फिल्म ‘काबुल एक्सप्रेस’ में भी एक प्रसंग काबुलीवाला की भावना को ही प्रस्तुत करता है, जब एक आतंकवादी को अपने से जुदा हुई बेटी की याद में तड़पते दिखाया गया था।

बहरहाल, रमेश तलवार के प्रयोग में काबुल के पठान की हिंदुस्तानी मानस पुत्री की डॉक्टर पोती आहत अफगानिस्तान में लोगों के जख्मों को ठीक करने के लिए खुद के कोलकाता में फलते-फूलते कॅरियर पर लात मारकर स्वेच्छा से अपनी जान जोखिम में डालकर काबुल जाती है।

बचपन में उसने अपनी दादी और उनके पिता के अफसानों में उस सहृदय पठान के बारे में जाना था और भावना के उसी कर्ज को अदा करने के लिए वह वहां जाती है। टैगोर की ‘काबुलीवाला’ तो कन्या के विवाह के साथ ही समाप्त होती है, परंतु जाहिदा हिना ने उसमें निहित मानवीय करुणा को वर्तमान तक लाया है।

रमेश तलवार ने बहुत ही सूक्ष्म संवेदना के साथ दिखाया है कि कन्या पठान की बारह बरस बाद अपने विवाह के दिन वापसी पर बचपन के स्नेह प्रसंग को भूल चुकी है, परंतु शायद वह समय के नाखून से यादों को कुरेदती है और कमरे में आकर पठान द्वारा छोड़े गए कागज पर उसकी बेटी के पंजों की छाप को देखती है और स्नेह से उस पर हाथ फिराती है।

रिश्ते परतों वाले परांठे की तरह होते हैं। ‘काबुलीवाला वापस आया’ के मध्यांतर के बाद वाले हिस्से में पोती दादी को पत्र लिख रही है, जिसमें अफगानिस्तान पर रूस का कब्जा, तालिबान की मुहिम और फिर अमेरिकी बमबारी के कारण हुए विनाश का वर्णन कर रही है।

शबाना के भाई बाबा आजमी की पत्नी, जो अभिनेत्री ऊषा किरण की पुत्री भी हैं, ने इस भावना को इतनी तीव्रता से प्रस्तुत किया है कि चालीस मिनट के इस भाग में कोई भी क्रिया नहीं होने के बावजूद दर्शक मंत्रमुग्ध रह जाते हैं। आहत अफगानिस्तान की आह कलेजे को मथ डालती है। आश्चर्य की बात है कि रबींद्रनाथ टैगोर की तकरीबन सवा सौ साल पहले लिखी कहानी के एक पात्र की पोती की रचना का पाकिस्तान की जाहिदा हिना ने और मुंबई के रमेश तलवार ने नाट्य रूपांतर किया।

सृजन करने वाले सरहदें नहीं देखते। उनकी निगाह अनंत क्षितिज पर होती है। नजर की सीमा होती है, नजरिया असीमित है। इस प्रस्तुति के लिए रमेश तलवार को प्रेरणा दी बिमल राय की पुत्री रिंकी भट्टाचार्य ने और बलराज साहनी के पुत्र परीक्षित साहनी ने। एक तरह से यह बिमल राय को आदरांजलि भी है। नाटक में फिल्म ‘काबुलीवाला’ के गानों का भी पाश्र्व में प्रयोग हुआ है। सृजन कीसतह पर सतह के भीतर प्रवाहित अनेक धाराओं को महसूस किया जा सकता है।

Tuesday 21 June 2011

जाने कहां मेरा जिगर गया जी..


विगत माह मुंबई में टाइपराइटर बनाने वाले एक कारखाने में काम बंद कर दिया गया, क्योंकि अब टाइपराइटर नहीं बिकते। दरअसल आज टाइपराइटर वाला काम कंप्यूटर पर बेहतर परिणाम सहित तेज गति से संपन्न होता है। जब टाइपराइटर ईजाद हुआ, तब असंख्य युवाओं, जिनमें महिलाओं की संख्या अधिक थी, ने रोजगार पाया। इस उपकरण ने अनेक परिवारों को भूख से बचाया और लोगों के कॅरियर बने।

दशहरे के अवसर पर हर दफ्तर में उपकरणों की पूजा की प्रक्रिया के तहत टाइपराइटर पर भी फूल चढ़े हैं और सातिया बनाया जाता रहा है। आज टाइपराइटर मर चुका है और कोई उसका श्राद्ध नहीं करता। वे परिवार भी उसे भुला चुके हैं, जिनका वह कभी पालनहार और ‘कमाऊ पुत्र’ था। स्टेनो टाइपिस्ट पात्र भी फिल्मों में बहुत बार दिखाए गए हैं। जॉनी वॉकर ने तो एक टाइपिस्ट के साथ प्रेम युगल गीत भी गाया है - ‘जाने कहां मेरा जिगर गया जी, अभी-अभी यहीं था किधर गया जी।’ यह फिल्म ‘मिस्टर एंड मिसेज 55’ का गीत है। टाइपराइटर में कभी रेमिंगटन और गोदरेज ब्रॉन्ड बहुत लोकप्रिय थे।

इसी तरह से आजकल फिल्म के पोस्टर और सड़कों पर लगे विज्ञापन के बिलबोर्ड डिजिटल प्रिंटिंग द्वारा बनाए जाते हैं, परंतु टेक्नोलॉजी के इस कदम के पहले कलाकार पेंटिंग्स करते थे। यह पेंटिंग्स का मौलिक कार्य नहीं था, स्थिर चित्र के आधार पर बिलबोर्ड पर ऊपर से नीचे और दाएं से बाएं खींची गई रेखाओं के सहारे कृतियां बनाई जाती थीं, फिर भी यह कला ही थी। देश में हजारों लोगों के जीवन-यापन का साधन था। बुरहानपुर में अशरफ के स्टूडियो में मैंने इसे बनते देखा है। एक जमाने में पेट की खातिर एमएफ हुसैन ने भी मुंबई में यह काम किया है।

‘आवारा’ के प्रथम प्रदर्शन के समय ऑटोग्राफ लेने वाली भीड़ में खड़े हुसैन साहब को पहचान कर राज कपूर उनके पास गए और कहा कि वक्त आएगा, जब आपका ऑटोग्राफ लेने मैं भी आऊंगा। केवल इसी बात को याद करके हुसैन साहब ने प्रदर्शन पूर्व फिल्म ‘हिना’ देखी और ‘हिना’ आधारित उनकी कृतियों को फिल्म की नामावली में प्रयोग किया गया है। बहरहाल, आजकल अनेक वस्तुओं पर पुरानी बिलबोर्ड शैली में बनाई गई कृतियों को महंगे दामों में खरीदा जा रहा है। उन गुमशुदा कलाकारों को फिर खोजा जा रहा है।

टाइपराइटर, बिलबोर्ड कलाकारों की तरह फिल्म संगीत में वादकों की भूमिका अब नगण्य हो गई है, क्योंकि कंप्यूटरजनित ध्वनियों का जमाना आ गया है। एक दौर में फिल्म गीत रिकार्डिग्स पर लगभग सौ साजिंदे मौजूद होते थे। उस दौर में हर साजिंदा दो-ढाई हजार रुपए प्रतिदिन कमाता था। उनका अपना संगठन भी था और उनके अभाव में रिकार्डिग मुल्तवी हो जाती थी।

विगत दो दशक में फिल्म उद्योग में अनेक परिवर्तन आए हैं, परंतु सबसे अधिक परिवर्तन ध्वनिबद्ध करने के क्षेत्र में आया है। उन साजिंदों के साथ संगीत विरासत भी चली गई। प्रगति का रथ अनेक चीजों को कुचलता हुआ आगे बढ़ता है और उसमें सवार लोगों को किसी के कुचले जाने का कोई अफसोस भी नहीं होता।

मसरूफ जमाना ऐसे ही चलता है। इस रफ्तार में अफसोस सिर्फ यह है कि संवेदनाएं भी टाइपराइटर और बिलबोर्ड पेंटिंग्स की तरह गई-गुजरी हो गई हैं। हाल ही में एक शोध बताता है कि सौंदर्य वृद्धि के लिए और उम्र के नाखूनों के निशान मिटाने के लिए बोटोक्स विधि के प्रयोग से सुंदरता तो लौट आती है, परंतु एहसास का माद्दा घट जाता है। अब किसके पास वक्त है, जो मरते एहसास और संवेदना के लिए आंसू बहाए।

इंग्लैंड में शूटिंग और पर्यटन

इस समय भारतीय फिल्म उद्योग के अनेक सितारे और तकनीशियन इंग्लैंड में हैं। कुछ लोग वहां पर छुट्टियां मना रहे हैं और कुछ लोग फिल्मांकन करने में व्यस्त हैं। साजिद नाडियाडवाला की फिल्म ‘हाउसफुल २’ के लिए अक्षय कुमार के अतिरिक्त 27 चरित्र कलाकार शूटिंग कर रहे हैं। सैफ अली खान भी अपनी फिल्म ‘एजेंट विनोद’ की शूटिंग वहां कर रहे हैं और करीना कपूर लंदन से लौटकर सलमान खान की ‘बॉडीगार्ड’ की शूटिंग का आखिरी दौर पटियाला में कर रही हैं। पूरा कपूर खानदान भी लंदन से 22 जून को कनाडा जाएगा, जहां पर एक सड़क का नाम राजकपूर स्ट्रीट रखा जा रहा है और आईफा पुरस्कार समारोह भी 22 से 25 जून तक कनाडा में आयोजित किया जाएगा।

अनेक देशों के फिल्मकार लंदन में शूटिंग करते हैं, क्योंकि वहां शूटिंग के लिए सरकार सहायता करती है। शूटिंग के सौ लोगों की यूनिट के कारण वहां की होटलों का व्यवसाय बढ़ जाता है। यूरोप में दिन लंबे होते हैं, इसलिए आउटडोर शूटिंग कई घंटों तक संभव होती है। आज पर्यटन ब्रिटिश अर्थतंत्र की बहुत सहायता कर रहा है।

इंग्लैंड में पूरी फिल्म के शूट किए जाने पर वहां की सरकार निर्माता को आर्थिक सहायता भी करती है। कुछ समय तक भारतीय फिल्म निर्माताओं ने झूठे बजट देकर ज्यादा आर्थिक मदद पाने की कोशिश की, जिसके कारण अब उसके नियमों में परिवर्तन किया गया है। विगत कुछ समय से सभी यूरोपीय देशों में फिल्म निर्माण नगण्य हो गया है और वहां के सिनेमाघरों पर हॉलीवुड की फिल्मों का बाहुल्य है। भारतीय फिल्में भी अब अनेक गैरपारंपरिक क्षेत्रों में प्रदर्शित हो रही हैं।

ब्रिटेन की आर्थिक हालत खस्ता है और वहां सार्वजनिक विचार जारी है कि क्या सत्र न होने वाले दिनों में ‘हाउस ऑफ कॉमंस’ में पैसा देने वाले पर्यटकों को घूमने की इजाजत दी जाए! ब्रिटेन की संसद सभी संसदों की मां है। आम आदमी भी जाकर उस जगह को देखे, जहां से उसकी जिंदगी की दिशा निर्धारित होती है। अंग्रेज लोग अपनी ऐतिहासिक विरासत के प्रति हमेशा सजग रहे हैं और उन्हें सहेजकर रखा है।

वे अपने इतिहास से पैसा बनाना भी जानते हैं। एक सूखे ऐतिहासिक कुएं के गिर्द एक पब बनाकर उसमें से बीयर निकालकर पीने वालों को जायके में इतिहास का आनंद भी आता है। हम अपनी ऐतिहासिक विरासत के प्रति उदासीन रहे हैं और इतिहास में भी रुचि कम ही है। यहां तक कि इतिहास से सीखना भी हमें रुचिकर नहीं लगता। गुजश्ता साठ सालों में इतिहास में एमए करने वालों की संख्या अन्य विषयों के छात्रों से कम ही रही है।

वित्तीय संकट में फंसे ब्रिटेन समेत यूरोप के कुछ देश धन कमाने के हरसंभव रास्ते टटोल रहे हैं। कुछ बूढ़े परंपरावादी अंग्रेजों को यह पसंद नहीं कि उनकी संसद में पर्यटन प्रारंभ होने से कुछ विदेशी इमारत में स्थित बाथरूम का प्रयोग भी करेंगे, परंतु युवा पीढ़ी को इसमें कोई एतराज नजर नहीं आता है।

ब्रिटेन में राज परिवार और उनके महलों पर खर्च हुआ पैसा पर्यटन से वसूल हो जाता है। हाल ही में संपन्न प्रिंस विलियम और केट की शाही शादी के टेलीविजन प्रसारण से बहुत आय हुई है। भारत में राष्ट्रीय आय का बहुत बड़ा भाग सरकार के रखरखाव पर खर्च होता है। मितव्ययता के सारे सबक अवाम के लिए हैं। पूरे देश में अनेक भव्य सरकारी इमारतों का कोई इस्तेमाल ही नहीं होता। हर प्रांत में राज्यपाल की रिहाइश सामंतवादी पैमाने पर होती है। राष्ट्रीय ऊर्जा और साधनों का दोहन करना हम जानते ही नहीं हैं।

Saturday 18 June 2011

अब किसी का भी बाप बूढ़ा नहीं है


अमिताभ बच्चन अरसे बाद फिल्म ‘बुड्ढा! होगा तेरा बाप’ में हास्य के साथ अपनी पुरानी एक्शन छवि में लौट रहे हैं। वे एक निष्णात कलाकार हैं और इस छवि की वापसी के साथ भी न्याय करेंगे। कुछ वर्ष पूर्व उम्र की ढलान पर प्रेम करने की कहानी ‘चीनी कम’ को वे प्रस्तुत कर चुके हैं। हिंदुस्तानी सिनेमा में प्रेम कहानियों से अधिक एक्शन फिल्में बनी हैं और हर कालखंड में एक्शन सितारे रहे हैं। त्रासदी के शहंशाह दिलीप कुमार ने भी ‘आजाद’ और ‘कोहिनूर’ में तलवारबाजी के पैंतरे प्रस्तुत किए हैं और ‘राम और श्याम’ तथा ‘गंगा जमना’ में भी एक्शन कर चुके हैं। धर्म्ेद्र ने भी सभी तरह की भूमिकाएं बखूबी निभाई हैं, परंतु ‘एक्शन’ में लाजवाब रहे हैं।

दरअसल सलीम-जावेद की ‘दीवार’ को भी एक्शन फिल्म मानने की गलती कुछ लोग कर चुके हैं, जबकि फिल्म में एक्शन के मात्र दो दृश्य हैं, परंतु सलीम-जावेद ने हिंसा की सतह के नीचे बहने वाली धारा को कुछ इस तरह गढ़ा है कि एक्शन का भ्रम बना रहता है। कुछ कलाकारों का व्यक्तित्व ऐसा होता है कि वे परदे पर एक्शन में विश्वसनीय लगते हैं। अमिताभ बच्चन निहत्थे ही लड़ने को तत्पर खड़े हों तो भी हिंसक लग सकते थे, जबकि शशि कपूर के हाथ में हथियार होने पर भी वे दर्शक के मन में डर नहीं पैदा कर सकते। उनके हाथ में तलवार भी बांसुरी ही लगती! सितारों का सारा खेल लोकप्रिय छवियों के द्वारा ही संचालित है, परंतु प्रतिभाशाली फिल्मकार छवियों की फिक्र नहीं करते।

मसलन महिपाल जैसे तीसरे दर्जे की एक्शन फिल्म करने वाले को वी.शांताराम ने ‘नवरंग’ में एक कवि की भूमिका दी और नृत्य में प्रवीण गोपीकृष्ण को नायक लेकर सफल फिल्म ‘झनक-झनक पायल बाजे’ भी रची है। दिलीप कुमार द्वारा इंकार किए जाने पर गुरुदत्त ने स्वयं ‘प्यासा’ में नायक की भूमिका की। संजीव कुमार इतने प्रतिभाशाली थे कि वे जया बच्चन के श्वसुर, प्रेमी और पति तथा पिता की भूमिकाएं भी कर चुके हैं।

अमिताभ बच्चन कभी भी सलमान खान की तरह तंदुरुस्त शरीर सौष्ठव वाले नहीं रहे, परंतु एक्शन और हिंसा का भाव सहजता से रच लेते थे और आज सलमान खान की लगातार सफल होती फिल्मों के कारण ही वे हास्य और एक्शन में लौट रहे हैं। यथार्थ जीवन में रजनीकांत बहुत कमजोर से व्यक्ति हंै, परंतु परदे पर सौ-पचास को लिटा देने के दृश्यों में विश्वसनीय लगते हैं। इस समय सबसे अधिक लोकप्रिय रजनीकांत और सलमान खान ही हैं तथा उनकी लोकप्रिय छवियां लगभग एक-सी हैं।

आज के दौर में अमिताभ बच्चन द्वारा तीन दशक पूर्व रचा आक्रोश ही बूढ़ा हो गया है, क्योंकि युवा वर्ग मस्ती मंत्र का जाप करता है और उसने भ्रष्ट व्यवस्था को अपने हित में ही साध लिया है, अत: उसे आक्रोश की जरूरत ही नहीं है। अमिताभ बच्चन द्वारा प्रस्तुत आक्रोश भी उनके अगले चरण (‘शहंशाह’, ‘कुली’ इत्यादि) में अराजकता का प्रतीक हो गया था। समाज में आज मध्यम अवस्था के व्यक्ति और उम्रदराज लोग ही व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश की मुद्रा में हैं। टेक्नोलॉजी और विज्ञान ने भी औसत आयु बढ़ा दी है और पारंपरिक रूप से परिभाषित बुढ़ापा अब दिल्ली की तरह दूर हो गया है।

Friday 17 June 2011

आम आदमी का फ्राय होता भेजा


टेक्नोलॉजी के भरपूर दोहन के लिए आजकल सुपरहीरो या तर्क के परे के एक्शन नायक की फिल्में बनाई जाती हैं और आम आदमी को नायक के रूप में लेकर कम फिल्में बनती हैं, क्योंकि प्रमुख दर्शक वर्ग हर उम्र के बच्चों का है। सागर बेल्लारी की ‘भेजा फ्राय 2’ का नायक साधारण आम आदमी है, जिसने अपनी मासूमियत और मूल्यों की हमेशा रक्षा की है तथा वह पुराने फिल्मी गीतों को सदैव गुनगुनाता रहता है तथा महान संगीतकारों के जीवन की जानकारियों के आधार पर उसने अपने बैंक अकाउंट इत्यादि के अंक चुने हैं।

फिल्मकार के मन में पुराने फिल्म माधुर्य के लिए बहुत आदर है और शायद अनचाहे ही उसने माधुर्य और मासूमियत तथा मूल्यों को जोड़ दिया है। सिनेमा के संगीत स्वर्णयुग में प्रतिभाशाली संगीतकारों की धुनों के लिए सार्थक शब्द रचने वाले गीतकारों ने भी माधुर्य और मासूमियत को खूब बढ़ाया है। उस स्वर्णकाल में रचे गीतों को आज तक गुनगुनाने के लिए दिल में सादगी की आवश्यकता है। कोई कपटी आदमी कैसे दोहराएगा ‘किसी की मुस्कराहटों पे हो निसार.., जीना इसी का नाम है’ या ‘सबकुछ सीखा हमने, न सीखी होशियारी। सच है दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी’ या ‘हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गया।’ उस युग में सैकड़ों मधुर गीत रचे गए हैं।

बहरहाल, ‘भेजा फ्राय 2’ का नायक माधुर्य और मूल्यों के प्रति इस कदर समर्पित है कि निर्जन टापू से निकलने के अवसर को ठुकरा देता है क्योंकि वहां उसका एक दोस्त बेहोश पड़ा है। वह अपने लंपट चाचा से भी इतना रुष्ट है कि उनसे स्वयं को बचाने की बात भी नहीं करता। उसे ताउम्र निर्जन टापू में पड़े रहने से भी डर नहीं लगता क्योंकि माधुर्य और मूल्य जिनके पास होते हैं, वे तन्हाई से नहीं डरते। वे एकाकीपन को साध लेते हैं। उन्हें भीड़ की जरूरत नहीं है।

विनय पाठक ने इस भूमिका को जिया है, शायद यथार्थ जीवन में भी वह वैसे ही हैं। फिल्मकार ने इस फिल्म में भाग एक की सहजता को खो दिया है। हास्य भी उतना निर्मल आनंद नहीं देता और श्रेष्ठि समाज का खोखलापन भी बहुत गहराई से उजागर नहीं होता। शायद इसका कारण यह है कि केवल एक सीधी-सी बात कहने के लिए एक लंबा हिस्सा जोड़ा गया है।

एक व्यक्ति टेलीविजन चैनल के आतंक से इतना दुखी है कि वह अपने रेडियो के साथ निर्जन टापू में बस गया है। बात सही भी है और रेडियो- माधुर्य के वहन के प्रति आदरांजलि भी है, परंतु पूरा प्रसंग बहुत लंबा और अस्वाभाविक है। बहरहाल, सुपरहीरो एक्शन फिल्मों के दौर में आम आदमी की बात करना एक तरह से आरके लक्ष्मण को भी आदर देना है।

आज के दौर में आम आदमी को एक निहायत ही भ्रष्ट एवं मूल्यरहित तंत्र से बचाने के लिए भांति-भांति के आंदोलन रचे जा रहे हैं, परंतु 99 प्रतिशत भ्रष्ट जनता के मन को बदलने और उसके जीवन में माधुर्य और मूल्यों की स्थापना का प्रयास नहीं करते हुए बाबा आंबेडकर के द्वारा बनाए गए संविधान को ही बदलने की चेष्टा हो रही है।

गोयाकि लाक्षणिक इलाज करते हुए एक नए तंत्र को बनाने का प्रयास हो रहा है, जिसमें सीबीआई को शामिल करते हुए इस नई संस्था को संसद और न्यायपालिका से भी ऊपर शक्तिशाली बनाने की चेष्टा है। परम शक्तिपुंज परम भ्रष्टाचार को ही जन्म देता है। अपनी गलतियों के भार से दबी सरकार इतनी सुरक्षात्मक हो गई है कि तानाशाही के संभावित उदय होने के खिलाफ भी कुछ नहीं कह पा रही है। आम आदमी खुद इतना भ्रष्ट है कि भीड़ में शामिल होकर अपने अपराध-बोध से छद्म मुक्ति का प्रयास कर रहा है।

Wednesday 15 June 2011

‘संज्ञा’ आमिर का ‘विशेषण’ बनना

आज आमिर खान और आशुतोष गोवारीकर की ‘लगान’ के प्रदर्शन को दस वर्ष हो चुके हैं और ‘क्लासिक’ कहलाने की दो शर्त्े इस फिल्म ने पूरी कर ली हैं - समयातीत और यूनिवर्सल होना। यह भी गौरतलब है कि फिल्म होते हुए भी वह गैरफिल्मी क्षेत्रों में अपना स्थान बना चुकी है, मसलन व्यवसाय प्रबंधन और प्रचार विज्ञान में भी उसे पढ़ाया जाता है। नई सदी के दस्तक देते ही ‘लगान’ ने सामाजिक प्रतिबद्धता के साथ मनोरंजन के भारतीय सिनेमा के आधारभूत सिद्धांत को मजबूती देते हुए नए विषयों के समावेश का शंखनाद भी किया है।

‘रंग दे बसंती’, ‘तारे जमीं पर’, ‘ए वेडनेसडे’, ‘फंस गए रे ओबामा’, ‘भेजा फ्राय’, ‘मुन्नाभाई’, ‘चक दे इंडिया’, ‘३ इडियट्स’ इत्यादि एक ही श्रंखला की कड़ियां लगती हैं, जिनका उद्गम हम ‘दुनिया न माने’, ‘आवारा’, ‘जागते रहो’, ‘प्यासा’ ‘दो आंखें बारह हाथ’, ‘मदर इंडिया’, ‘बंदिनी’ और ‘गंगा-जमुना’ में देख सकते हैं। सार्थक मनोरंजन की यही परंपरा भारतीय सिनेमा की असली पहचान रही है।

यह महज इत्तफाक ही है कि ‘लगान’ के प्रदर्शन के बाद ही भारतीय क्रिकेट में महानगरों का वर्चस्व समाप्त करते हुए छोटे शहरों और दूरदराज के अंचलों से आए प्रतिभाशाली युवा क्रिकेट खिलाड़ियों ने भारतीय क्रिकेट को शिखर पर पहुंचा दिया। सच तो यह है कि ‘लगान’ क्रिकेट फिल्म नहीं है, वरना अमेरिका में क्यों इसे इतना पसंद किया गया। ‘लगान’ तो एक निहत्थे आम आदमी की शक्तिशाली व्यवस्था से टकराने और विजय प्राप्त करने की कहानी है। यह चिरंतन डेविड गोलियथ परंपरा की कथा है।

1991 से प्रारंभ उदारवाद और बाजार के दबदबे वाले कालखंड में डॉलर सिनेमा के उदय के समय यह भ्रम फैलाया गया कि अब महानगरीय मनोरंजन के दौर में ग्रामीण पृष्ठभूमि की कथा मल्टीप्लैक्स के दर्शक पसंद नहीं करेंगे, गोयाकि भारतीय सिनेमा को गैर-भारतीय बनाए जाने की साजिश को ध्वस्त करते हुए इस फिल्म ने सभी वर्गो के दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

‘लगान’ में हम भारतीय समाज की भीतरी बुनावट में निहित संकीर्णता और खतरों को भी देख सकते हैं कि किस तरह एक दलित प्रतिभाशाली को टीम में लिए जाने के विरोध को नायक असफल करता है। इतना ही नहीं, अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में एक सहृदय अंग्रेज महिला की मदद को शामिल करते हुए फिल्म को साम्राज्यवाद के खिलाफ आम जनता की विजय को अंग्रेज जाति के विरोध के स्वर से भी मुक्त रखा गया है और विराट मानवीय संदर्भ को ही सशक्त रखा गया है।

‘लगान’ में प्रस्तुत घोर भारतीयता संकीर्ण नहीं है। यह आमिर खान का आत्मविश्वास और साहस ही है कि लगभग चार घंटे की महाकाव्य की तरह रची फिल्म को उन्होंने वितरकों के दबाव को नजरअंदाज करके अपने मूल स्वरूप में ही प्रदर्शित किया। तकनीकी गुणवत्ता कहीं भी ‘लगान’ की भावना प्रधानता को आहत नहीं करती, क्योंकि दर्शक को चौंकाने में उनका विश्वास नहीं है - वे सीधे दिल की बात दिल तक पहुंचाते हैं।

नई सदी का पहला दशक आमिर खान दशक के नाम से दर्ज होता है, क्योंकि ‘लगान’ से ‘पीपली लाइव’ तक उन्होंने सार्थक मनोरंजन रचा है और साथ ही वह ‘गजनी’ तथा ‘थ्री इडियट्स’ की केंद्रीय शक्ति भी रहे हैं। इस दशक में आमिर की ‘लगान’, ‘गजनी’, ‘थ्री इडियट्स’ और सलमान अभिनीत ‘वांटेड’ व ‘दबंग’ जैसी फिल्मों ने एकल सिनेमा की व्यवसाय क्षमता को उजागर करके भारतीय सिनेमा की ताकत को बढ़ाया है।

Tuesday 14 June 2011

सनसनीखेज खुलासाः मंगल ग्रह पर दिखे 'गांधी'!

यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा मंगल गृह से प्राप्त की गई तस्वीरों में राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के चेहरे से मिलती हुई एक तस्वीर पाई गई है. यह तस्वीर यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी द्वारा मंगल ग्रह पर भेजे गए ऑरबिट यान ने भेजी है.
अंतरिक्ष से भेजे गए चित्रों का अध्ययन करने वाले एक इटैलियन मात्तेओ लांनेओ ने यह सनसनीखेज खुलासा किया है. यहाँ एक चट्टान पर यह प्रतिकृति बनी हुई है. अध्ययन के दौरान उसने पाया कि एक चट्टान पर उभरी आकृति किसी इंसानी चेहरे से मिलती जुलती है. चेहरे पर मूछ, बिना बालों वाला सिर और भौंह उभरी हुई है. मिलान करने पर उसने पाया कि यह भारत के महान नेता महात्मा गाँधी से मिलती हुई आकृति है.
ऐसा पहली बार नहीं हुआ है कि स्पेस से प्राप्त तस्वीरों में मानवीय आकृति दिखाई पड़ी है. इससे पहले भी 1976 में अमेरिकन वाइकिंग द्वारा भेजी गई मंगल ग्रह की एक तस्वीर में मानवीय चेहरे से मिलती जुलती आकृति देखी गई थी.
गौरतलब है कि मार्स एक्सप्रेस अंतरिक्ष में अपनी आठवीं सालगिरह मन रहा है।

यह कैसा स्वयंवर है?

विगत वर्र्षो में टेलीविजन पर स्वयंवर को लेकर गढ़े गए तमाशों में किए गए विवाह शीघ्र ही टूट गए या टूटने की कगार पर पहुंच गए और आज भी एक स्वयंवर तमाशा जारी है। फिल्मों में भी स्वयंवर की तर्ज पर किसी अनाम क्षेत्र की रीति कहकर स्वयंवर की तरह के व्यवहार प्रस्तुत हुए हैं, मसलन ‘राम तेरी गंगा मैली’ में एक पहाड़ी लड़की ‘सुन साहिबा सुन, मैंने तुझे चुन लिया, तू भी मुझे चुन..’ गाकर शहरी लड़के के गले में हार डालकर उसे वर लेती है। यह फिल्मकार अपनी सुविधानुसार कर लेते हैं। गनीमत है कि अभी तक बस्तर की जनजातियों में प्रचलित ‘घोटुल’ पर किसी फिल्मकार की निगाह नहीं पड़ी है।

कलर्स द्वारा आयोजित ‘बिग बॉस’ में भी सारा खान के विवाह को दिखाया गया था और मेहंदी सूखने के पहले ही वह विवाह टूट गया। रीति-रिवाजों के नाम पर नए तमाशे गढ़ना मनोरंजन जगत का पुराना खेल है। इसी तरह आजकल सूफी संगीत के नाम पर किसी भी रचना में चंद शब्द डालकर उसे सूफी का नाम देकर बेचा जा रहा है, जबकि कुछ विशेषज्ञों की राय है कि सूफी शैली की कविता तो है, परंतु संगीत नहीं है। आज छोटे कस्बों में फिल्म की लोकप्रिय धुनों पर भजन रचे जाते हैं और आश्चर्य नहीं कि ‘मुन्नी’ और ‘शीला’ की तर्ज पर भी भजन रचे जा रहे हों।

इन सब तथाकथित लोकप्रिय बातों की जड़ में यह तथ्य है कि जनता तमाशे पसंद करती है और बाजार की ताकतें जानती हैं कि भीषण प्रचार के दम पर कोई भी लोकप्रियता गढ़ी जा सकती है। अब इसी तर्ज पर भ्रष्टाचार विरोधी तूफान रचे जा रहे हैं और इस पर तालियां बजाने वाले तकरीबन सभी लोग अवसर मिलते ही स्वयं रिश्वत ले लेते हैं। भ्रष्टाचार को जायज नहीं ठहराया जा सकता, परंतु उसके आधार पर तमाशा रचने से बेहतर है कि समाज में नैतिक मूल्यों की स्थापना का प्रयास हर आम आदमी स्वयं करे। परिवार नामक आधारभूत संस्था में ही परिवार का कोई सदस्य किसी अपने भ्रष्ट का विरोध करे और परिवार की गोपनीयता में ही यह काम हो सकता है। तमाशा बनाने और तालियों के पीटने से बात नहीं बन सकती।

भ्रष्टाचार के दम पर साम्राज्य रचने वाले उद्योगपतियों और पूंजीपतियों को यह बात खूब सुहाती है कि गंभीर आर्थिक प्रश्न और सामाजिक समस्याओं का तमाशीकरण हो जाए और उनका अपना खेल जारी रहे। क्या बाजार की वही ताकतें इस तरह के तमाशों को भी प्रोत्साहित कर रही हैं, जो सरकारों को भी परदे के पीछे से चला रही हैं? गोयाकि कुछ चुनिंदा लोग ‘देश-देश’ खेल रहे हैं और हम सब किसी वृहद तमाशे के जूनियर कलाकार हैं और महज भीड़ की भूमिकाएं निभा रहे हैं।

उनकी जड़ पर आक्रमण करने की कोई कोशिश हम कर ही नहीं रहे हैं और तमाशीकरण पर खुश हो रहे हैं। हर गली-चौराहे पर और सुबह सैर के लिए बनाए बाग-बगीचों में चटखारे लेकर हम बतियाते चले जा रहे हैं और अपने ही परिवार में भ्रष्टाचार द्वारा अर्जित वस्तुओं का बेहिचक भोग लगा रहे हैं। यह लगभग मृत्युभोज में आनंद लेने वाली बात की तरह है।

हमारी ही चिताएं धधक रही हैं, हम ही सुपुर्दे खाक किए जा रहे हैं और हम ही अपने मृत्युभोज का आनंद उठा रहे हैं, क्योंकि हमें सदियों से सिखाया गया है कि यह दुनिया के द्वारा देखा गया स्वप्न मात्र है और हम उसी विराट तमाशे का हिस्सा हैं। न हम जन्मे हैं और न हम मरेंगे। गिरीश कर्नाड के नाटक ‘हयवदन’ में राजकुमारों से भरी सभा में राजकुमारी स्वयंवर का हार एक घोड़े के गले में डाल देती है,

Monday 13 June 2011

COMPLET FILMOGRAPHY OF ALFRED HITCHCOCK

Director (67 titles)
1976 Family Plot
 
1972 Frenzy
 
1969 Topaz
 
1966 Torn Curtain
 
1964 Marnie
 
1963 The Birds
 
1962 The Alfred Hitchcock Hour (TV series)
 
1955-1961 Alfred Hitchcock Presents (TV series)
Bang! You're Dead (1961)
The Horse Player (1961)
The Crystal Trench (1959)
Arthur (1959)
 
1960 Psycho
 
1960 Startime (TV series)
 
1958 Vertigo
 
1957 Suspicion (TV series)
Four O'Clock (1957)
 
1956 The Wrong Man
 
1954 Rear Window
 
1953 I Confess
 
1950 Stage Fright
 
1948 Rope
 
1946 Notorious
 
1945 Spellbound
 
1945 Watchtower Over Tomorrow (short) (uncredited)
 
1944 The Fighting Generation (documentary short) (uncredited)
 
1944 Lifeboat
 
1944 Aventure malgache (short)
 
1944 Bon Voyage (short)
 
1942 Saboteur
 
1941 Suspicion
 
1940 Rebecca
 
1939 Jamaica Inn
 
1936 Sabotage
 
1936 Secret Agent
 
1935 The 39 Steps
 
1932 Number 17
 
1931 Mary
 
1931 The Skin Game
 
1930 Murder!
 
1930 An Elastic Affair (short)
 
1930 Elstree Calling (some sketches)
 
1929 Blackmail
 
1929 The Manxman
 
1929 Sound Test for Blackmail (documentary short)
 
1928 Champagne
 
1928 Easy Virtue
 
1927/I The Ring
 
1926 Fear o' God
 
1923 Always Tell Your Wife (short) (uncredited)
 
1922 Number 13 (unfinished)
 
Hide HideProducer (28 titles)
1976 Family Plot (producer - uncredited)
 
1972 Frenzy (producer)
 
1969 Topaz (producer - uncredited)
 
1966 Torn Curtain (producer - uncredited)
 
1964 Marnie (producer - uncredited)
 
1964 The Alfred Hitchcock Hour (TV series) (executive producer - 1 episode)
The Sign of Satan (1964) (executive producer)
 
1963 The Birds (producer - uncredited)
 
1962 Alcoa Premiere (TV series) (executive producer - 1 episode)
The Jail (1962) (executive producer)
 
Alfred Hitchcock Presents (TV series) (producer - 7 episodes, 1955-1962) (executive producer - 1 episode, 1956)
The Sorcerer's Apprentice (1962) (producer)
The Glass Eye (1957) (producer - uncredited)
Mink (1956) (executive producer)
Shopping for Death (1956) (producer)
The Cheney Vase (1955) (producer)
 
1960 Psycho (producer - uncredited)
 
1959 North by Northwest (producer - uncredited)
 
Suspicion (TV series) (executive producer - 41 episodes, 1957-1958) (producer - 1 episode, 1958)
The Death of Paul Dane (1958) (executive producer)
The Imposter (1958) (executive producer)
The Devil Makes Three (1958) (executive producer)
Return from Darkness (1958) (executive producer)
Eye for an Eye (1958) (executive producer)
 
1958 Vertigo (producer - uncredited)
 
1956 The Wrong Man (producer - uncredited)
 
1956 The Man Who Knew Too Much (producer - uncredited)
 
1955 The Trouble with Harry (producer - uncredited)
 
1955 To Catch a Thief (producer)
 
1954 Rear Window (producer - uncredited)
 
1954 Dial M for Murder (producer - uncredited)
 
1953 I Confess (producer - uncredited)
 
1951 Strangers on a Train (producer - uncredited)
 
1950 Stage Fright (producer - uncredited)
 
1949 Under Capricorn (producer - uncredited)
 
1948 Rope (producer - uncredited)
 
1946 Notorious (producer - uncredited)
 
1944 Lifeboat (producer)
 
1932 Lord Camber's Ladies (producer)
 
1922 Number 13 (producer - uncredited)
 
Hide HideActor (36 titles)
1972 Frenzy
Spectator at Opening Rally (uncredited)
 
1969 Topaz
Man in Wheelchair at Airport (uncredited)
 
1966 Torn Curtain
Man in Hotel Lobby with Baby (uncredited)
 
1964 Marnie
Man Leaving Hotel Room (uncredited)
 
1963 The Birds
Man Walking Dogs Out of Pet Shop (uncredited)
 
1956 The Wrong Man
Prologue Narrator (voice) (uncredited)
 
1955 The Trouble with Harry
Man Walking Past Sam's Outdoor Exhibition (uncredited)
 
1954 Rear Window
Man Winding Clock in Songwriter's Apartment (uncredited)
 
1954 Dial M for Murder
Man at Tony's Table at the Dinner in Photograph (uncredited)
 
1950 Stage Fright
Man Staring at Eve on Street (uncredited)
 
1949 Under Capricorn
Man at Governor's Reception (uncredited)
 
1948 Rope
Man Walking in Street After Opening Credits (uncredited)
 
1946 Notorious
Man Drinking Champagne at Party (uncredited)
 
1945 Spellbound
Man Leaving Elevator (uncredited)
 
1942 Saboteur
Man in Front of NY Drugstore (uncredited)
 
1941 Suspicion
Man Mailing Letter (uncredited)
 
1941 Mr. & Mrs. Smith
Man Passing David Smith on Street (uncredited)
 
1940 Foreign Correspondent
Man with Newspaper on Street (uncredited)
 
1940 Rebecca
Man Outside Phone Booth (uncredited)
 
1938 The Lady Vanishes
Man in London Railway Station (uncredited)
 
1937 The Girl Was Young
Photographer Outside Courthouse (uncredited)
 
1935 The 39 Steps
Passerby Near the Bus (uncredited)
 
1930 Murder!
Man on Street (uncredited)
 
1929 Blackmail
Man on Subway (uncredited)
 
1928 Easy Virtue
Man with Stick Near Tennis Court (uncredited)
 
1927 The Lodger: A Story of the London Fog
Extra in Newspaper Office (uncredited)
 
Hide HideWriter (22 titles)
2006 Gas (short) (story)
 
2005 Don't Give Me the Finger (short) (play / as Sir Alfred Hitchcock)
 
1993 Lifepod (TV movie) (short story)
 
1946 Notorious (screenplay contributor - uncredited)
 
1944 Lifeboat (story idea - uncredited)
 
1943 Forever and a Day (uncredited)
 
1942 Saboteur (story - uncredited)
 
1932 Number 17 (scenario)
 
1931 East of Shanghai (adaptation)
 
1931 The Skin Game (adaptation)
 
1930 Murder! (adaptation)
 
1930 The Shame of Mary Boyle (adaptation)
 
1929 Blackmail (adaptation)
 
1928 Champagne (writer)
 
1928 The Farmer's Wife (uncredited)
 
1927/I The Ring (written by)
 
1923 White Shadows (writer)
 
1923 Woman to Woman (writer)
 
Hide HideMiscellaneous Crew (13 titles)
1935 Sanders of the River (director of the first stages - uncredited)
 
1922 The Man from Home (title designer)
 
1922 The Spanish Jade (title designer)
 
1922 Love's Boomerang (title designer)
 
1922 Tell Your Children (title designer)
 
1922 Three Live Ghosts (title designer - uncredited)
 
1921 The Bonnie Brier Bush (title designer)
 
1921 Dangerous Lies (title designer)
 
1921 The Princess of New York (title designer)
 
1921 The Mystery Road (title designer)
 
1921 Appearances (title designer)
 
1921 The Great Day (title designer)
 
1921 The Call of Youth (title designer)
 
Hide HideArt Director (9 titles)
1923 White Shadows
 
1925 Die Prinzessin und der Geiger (assistant director)
 
1924 The Passionate Adventure (assistant director)
 
1924 Dangerous Virtue (assistant director)
 
1923 White Shadows (assistant director)
 
1923 Woman to Woman (assistant director)
 
Hide HideEditor (3 titles)
1941 Target for Tonight (documentary) (US version - uncredited)
 
1940 Men of the Lightship (documentary short) (US version - uncredited)
 
1923 White Shadows
 
Hide HideThanks (13 titles)
2011 The Circle of Men (short) (special thanks)
 
2010 Tru Luv (short) (special thanks)
 
2009 Adjusted (short) (special thanks)
 
2009/I Indigo (short) (in memory of)
 
2008 Artists of the Roundtable (video documentary) (special thanks)
 
2008 Creature Story (short) (special thanks)
 
2007 Wingrave (video) (dedicatee)
 
2004 S1ngles (TV series) (dedicatee - 1 episode)
Ola ena... (2004) (dedicatee)
 
1998 As Long As He Lives (short) (dedicatee)
 
1997 Running Time (special thanks)
 
1983 Psycho II (the producers acknowledge the debt owed to - as Sir Alfred Hitchcock)
 
1977 High Anxiety (dedicated to: the Master of Suspense)
 
Hide HideSelf (31 titles)
1979 AFI Life Achievement Award: A Tribute to Alfred Hitchcock (TV special documentary)
Himself
 
1978 CBS: On the Air (TV mini-series documentary)
Himself
 
1977 The 29th Annual Primetime Emmy Awards (TV special)
Himself - Presenter
 
1976 The Elstree Story (TV documentary)
Himself
 
1974 Tomorrow Coast to Coast (TV series)
Himself
Episode dated 23 December 1974 (1974) … Himself
 
1974 The 46th Annual Academy Awards (TV special)
Himself - Presenter: Jean Hersholt Humanitarian Award
 
1973 The Men Who Made the Movies: Alfred Hitchcock (TV documentary)
Himself
 
1972 V.I.P.-Schaukel (TV series documentary)
Himself
Episode #2.4 (1972) … Himself
 
1972 Aquarius (TV series)
Himself
Alfred the Great (1972) … Himself
 
1970-1972 The Dick Cavett Show (TV series)
Himself
Alfred Hitchcock (1972) … Himself
Episode dated 8 June 1970 (1970) … Himself
 
1972 Film Night (TV series)
Himself
The Master of Suspense (1972) … Himself
 
1969 The Mike Douglas Show (TV series)
Himself - Guest
Episode dated 30 December 1969 (1969) … Himself - Guest
 
1969 London aktuell (TV series documentary)
Himself
Episode #1.1 (1969) … Himself
 
1969 Hollywood: The Selznick Years (TV documentary)
Himself
 
1968 The 40th Annual Academy Awards (TV special)
Himself (Thalberg Award Recipient)
 
1967 Mondo Hollywood (documentary)
Himself
 
1962-1965 The Alfred Hitchcock Hour (TV series)
Himself - Host / Himself
Off Season (1965) … Himself - Host
Night Fever (1965) … Himself - Host
The Second Wife (1965) … Himself - Host
The Monkey's Paw--A Retelling (1965) … Himself - Host
The World's Oldest Motive (1965) … Himself - Host
 
1964 Monitor (TV series documentary)
Himself - Interviewee
Huw Wheldon Meets Alfred Hitchcock (1964) … Himself - Interviewee
 
1964 Telescope (TV series documentary)
Himself
A Talk with Hitchcock (1964) … Himself
 
1963 CBS: The Stars' Address (TV movie)
Himself
 
1955-1962 Alfred Hitchcock Presents (TV series)
Himself - Host / Alfred the Stand-In / Alfred's Brother
Where Beauty Lies (1962) … Himself - Host
The Big Kick (1962) … Himself - Host
First Class Honeymoon (1962) … Himself - Host
The Children of Alda Nuova (1962) … Himself - Host
The Twelve Hour Caper (1962) … Himself - Host
 
1959 Tactic (TV series)
Himself
 
1956 Cinépanorama (TV series documentary)
Himself
Episode dated 27 July 1956 (1956) … Himself
 
1956 Lux Video Theatre (TV series)
Himself - Intermission Guest
The Night of January Sixteenth (1956) … Himself - Intermission Guest
 
1955 The Red Skelton Hour (TV series)
Award for Best Director / Himself
Look Magazine Movie Awards Show (1955) … Himself/Award for Best Director
 
1954 What's My Line? (TV series)
Himself - Mystery Guest #2
Episode dated 12 September 1954 (1954) … Himself - Mystery Guest #2
 
1943 Show-Business at War (documentary short)
Himself (uncredited)
 
1942 Picture People No. 10: Hollywood at Home (documentary short)
Himself
 
1929 Sound Test for Blackmail (documentary short)
Himself
 
Hide HideArchive Footage (72 titles)
2011 Special Collector's Edition (TV series)
 
2011 Amateur Night (documentary)
Himself
 
2010 Moguls & Movie Stars: A History of Hollywood (TV mini-series documentary)
 
2010 The Psycho Legacy (video documentary)
Himself
 
2009 The Master's Touch: Hitchcock's Signature Style (video documentary)
Himself
 
2009 Dans le labyrinthe de Marienbad (video documentary short)
 
2009 Hollywood on the Tiber (documentary)
Himself
 
2009 Legenden (TV series documentary)
 
2009 Alfred Hitchcock in East London (documentary)
Himself
 
2009 London Tonight (TV series)
 
2009 Paul Merton Looks at Alfred Hitchcock (TV documentary)
Himself
 
2008 You Must Remember This: The Warner Bros. Story (video documentary)
Himself - Interviewee
 
2008 Mike Douglas: Moments & Memories (video)
Himself
 
2007 Spine Tingler! The William Castle Story (documentary)
Himself
 
2007 Cámara negra. Teatro Victoria Eugenia (TV documentary short)
Himself
 
2007 Who Is Norman Lloyd? (documentary)
 
2007 British Film Forever (TV mini-series documentary)
 
2007 Cannes, 60 ans d'histoires (TV documentary)
Himself
 
2007 Rick Stein in du Maurier Country (TV documentary)
Himself (uncredited)
 
2007 Hoge bomen: Pioniers (TV series documentary)
 
2006 Interactive Film Quiz (Video Game)
Himself (uncredited)
 
2006 Hitchcocked! (TV documentary)
Himself
 
2006 Billy Wilder Speaks (TV documentary)
Himself
 
2006 Silent Britain (TV documentary)
Himself
 
2006 Un écran nommé désir (TV documentary)
Himself
 
2006 Ein 'Mord!' in zwei Sprachen: Alfred Hitchcock im Gespräch mit François Truffaut (video short)
Himself (voice) (archive sound)
 
2005 The Sky Is Falling: Making 'The War of the Worlds' (video documentary short)
Photo
 
2005 Filmmakers in Action (documentary)
Himself (uncredited)
 
2005 Shepperton Babylon (TV documentary)
Himself
 
2004 Personal History: Foreign Hitchcock (video documentary short)
Himself
 
2004 The Hitchcocks on Hitch (video short)
Himself
 
2004 Cary Grant: A Class Apart (TV documentary)
Himself (1966 interview)
 
2004 101 Biggest Celebrity Oops (TV special documentary)
Himself - #85: Psycho: The Remake
 
2004 Fantástico 30 Anos - Grandes Reportagens (video documentary)
Himself
 
2003 The 100 Greatest Scary Moments (TV documentary)
Himself
 
2003 Living Famously (TV series)
 
2002 Reel Radicals: The Sixties Revolution in Film (TV documentary)
Himself (Psycho (1960) trailer footage) (uncredited)
 
2002 Who Is Alan Smithee? (TV documentary)
Himself (uncredited)
 
2001 Hitchcock: Alfred the Great (TV documentary)
Himself (uncredited)
 
1998-2001 Biography (TV series documentary)
 
2001 Legends (TV series documentary)
 
2001 The Story of 'Frenzy' (video documentary)
Himself
 
2001 Plotting 'Family Plot' (video documentary)
Himself
 
2001 Screenwriter John Michael Hayes on 'Rear Window' (video documentary short)
Himself (uncredited)
 
2001 Cinéma, de notre temps (TV series documentary)
 
2000 The Trouble with Marnie (TV documentary)
Himself
 
2000 All About 'The Birds' (video documentary)
Himself
 
1999 Hitchcock: Shadow of a Genius (TV documentary)
Himself
 
1999 Reputations (TV series documentary)
 
1999 Hitchcock: The Early Years (video documentary short)
Himself
 
1999 The 20th Century: A Moving Visual History (TV mini-series documentary)
Himself
 
1998 American Masters (TV series documentary)
 
1998 The Best of Hollywood (TV documentary)
Himself
 
1997 François Chalais, la vie comme un roman (TV documentary)
Himself
 
1997 The Making of 'Psycho' (video documentary)
Himself
 
1995 Cinema Europe: The Other Hollywood (TV mini-series documentary)
 
1995 Citizen Langlois (documentary)
Himself
 
1995 Tales from the Crypt (TV series)
 
1995 The Universal Story (TV documentary)
Himself (archive sound)
 
1995 Family Portraits (TV mini-series documentary)
 
1985-1989 Alfred Hitchcock Presents (TV series)
 
1988 Jack the Ripper: The Final Solution (video documentary short)
Himself
 
1988 AFI Life Achievement Award: A Tribute to Jack Lemmon (TV special documentary)
Himself
 
1984 Terror in the Aisles (documentary)
Himself
 
1984 Ingrid (documentary)
Himself