Friday 15 July 2011

पॉटर पागलपन का शिखर

फिल्म आलोचक पीटर ब्राड शॉ गार्जियन में हैरी पॉटर श्रंखला की अंतिम कड़ी के बारे में लिखते हैं कि फिल्म रहस्यमय, सनसनीखेज और दर्शकों को संतोष देने वाली है, जो बॉक्स ऑफिस पर नए कीर्तिमान रचेगी। विगत दस सालों में जेके रोलिंग द्वारा लिखी किताबों पर आधारित यह श्रंखला लगभग 20 घंटे का जादुई सिनेमा है। गौरतलब है कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी के शिखर कालखंड में और नई सदी के पहले दशक में विश्व सिनेमा में सुपरमैन, बैटमैन, जेम्स बॉन्ड इत्यादि सभी प्रकार की फिल्मों में सबसे अधिक व्यवसाय हैरी पॉटर श्रंखला की फिल्मों ने किया है।

1968 से प्रारंभ सुपर हीरो तथा विज्ञान फंतासी के दौर की यह शिखर सफलता है, जिसने आम आदमी की छवि के नायक वाले सिनेमा को गौण कर दिया है। भारतीय सिनेमा में यह दशक आमिर खान और राजकुमार हीरानी का रहा तथा कृष श्रंखला, डॉन श्रंखला इत्यादि से अधिक व्यवसाय ‘३ इडियट्स’ का रहा और नंबर दो पर सलमान अभिनीत ‘दबंग’ रही अर्थात भारतीय सिनेमा में आज भी विज्ञान फंतासी आम आदमी के सिनेमा से आगे नहीं निकल पाई है, जिसका मुख्य कारण भारतीय दर्शक संरचना है, जिसमें सभी आयु वर्ग के दर्शक आज भी शामिल हैं, जबकि विदेशों में पांच से पंद्रह का समूह निर्णायक हो चुका है।

दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि बाजार युग में मनोरंजन जगत भी मार्केटिंग और प्रचार द्वारा शासित है। यह हमेशा महत्वपूर्ण रहा है, परंतु अब यह कोरस या पाश्र्व संगीत की तरह नहीं, वरन मुख्य आवाज हो गया है। विशेषज्ञों की प्रतिभाशाली टीम ने पूरे विश्व में पॉटरमेनिया अत्यंत कुशलता से गढ़ा है। किताबें, फिल्में, पोशाकें और हैरी पॉटर के खिलौनों से बाजार लदा पड़ा है और मनोरंजन उद्योग के इतिहास में वॉल्ट डिज्नी का मासूम-सा मिकी माउस और निरापद वॉल्ट डिज्नी थीम पार्क शिखर से अपदस्थ हो रहा है और हैरी पॉटर का काल्पनिक संसार प्रमुख स्थान पा रहा है।
 

यथार्थ की दुनिया से विमुख टेक्नोलॉजी की रची ऑल्टरनेट दुनिया बच्चों के दिमागी भूगोल की राजधानी हो गई है। इतना ही नहीं, कुछ नादान उस निरी कल्पना को इतिहास समझने की भूल भी कर सकते हैं। मनोरंजन मार्केटिंग में ‘पॉटरमेनिया’ सबसे बड़ी सफलता मानी जा सकती है।

दरअसल समाजशास्त्र के विद्वानों को हैरी पॉटर के संसार द्वारा लाए गए प्रभाव और परिवर्तन का गहन अध्ययन करना चाहिए क्योंकि इसके जादू का संबंध भावी पीढ़ी से जुड़ा है। अरसे पहले एक फिल्म बनी थी, जिसमें छुट्टियों के पर्यटन का आनंद और प्रभाव एक व्यवसायी संगठन अपनी दुकान में आए ग्राहकों को देने का वादा करता है। आप कुर्सी पर बैठें और मनपसंद स्थान के दृश्य लगातार छोटे परदे पर देखें और वहां की ध्वनियों को सुनें।

बिना हिले-डुले ही पर्यटन का आनंद आपके अवचेतन में भर दिया जाएगा। इस फिल्म में लोगों को काल्पनिक उपग्रह की ‘यात्रा’ भी कराई जाती है और नशे में गाफिल व्यक्ति को मालूम ही नहीं पड़ता कि सचमुच उसे उपग्रह भेज दिया गया है और वहां उससे नि:शुल्क मजदूरी कराई जा रही है। उसे विज्ञान फंतासी का ‘गिरमिटिया’ बना दिया गया है। उस फिल्म में नायक चोरी-छुपे उपग्रह से यथार्थ संसार में वापस आने में सफल होता है और पर्दाफाश करता है।

बहरहाल, आज अनेक कमसिन उम्र के लोग पॉटरमेनिया में इस कदर यकीन करने लगे हैं कि यथार्थ से संपर्क टूट सकता है। दरअसल यह बात हैरी पॉटर फिल्मों तक सीमित नहीं है, वरन सब प्रकार के नशों से जुड़ी है। सिनेमा टेक्नोलॉजी ने जादू को विश्वसनीयता प्रदान कर दी है। इस श्रंखला ने सिनेमा शक्ति का विकास रेखांकित किया है।

श्रंखला की अंतिम फिल्म में इसकी याद को लंबी उम्र देने के लिए श्रंखला की विगत फिल्मों के पात्र, घटनाएं इत्यादि के साथ लेखक के शॉट्स भी शामिल हैं ताकि दर्शक के मन में छवियां हमेशा के लिए अंकित हो जाएं। निर्देशक ने अंतिम भाग होने की चुनौती को बखूबी निभाया है।सवाल यह उठता है कि आम आदमी की छवि वाले नायकों के सिनेमा का क्या भविष्य है? यह आकलन तो गलत होगा कि यह धारा खत्म हो गई है और यह सोचना भी भ्रामक है कि पॉटरमेनिया जैसा कुछ नहीं हो पाएगा। यह भी गलत है कि मिकी माउस दफन हो जाएगा। मनोरंजन जगत समाज की तरह अपनी परिवर्तनशीलता के साथ परिवर्तनरहित मूल्यों को अक्षुण्ण रखता है।

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