Tuesday 17 January 2012

दमित इच्छाएं और गंद का बाजार

अनेक कहावतें जानवरों की प्रवृत्तियों को देखकर गढ़ी गई हैं। दरअसल सारे ज्ञान का आदि और अंत प्रकृति से ही होता है। मनुष्य ने जंगलों का अधिग्रहण किया है। समुद्र किनारे की जमीन को पाटकर उस पर इमारतें बनाई हैं। जानवरों ने इस मायने में मनुष्य के संसार में प्रवेश किया है कि उनकी प्रवृत्तियां मानव स्वभाव का हिस्सा बन गई हैं। हमारे बसाए हुए सीमेंट के बीहड़ों में चहुंओर हिंसक जानवरनुमा इंसान स्वच्छंद घूमते हैं।

बहरहाल ‘भेडिय़ा धसान’ फिल्म जगत में खूब प्रचलित है, अर्थात किसी सफलता को दोहराने का प्रयास कल्पनाहीन फिल्मकार करते रहते हैं। देश-विदेश की फिल्मों की नकल के साथ ही सफल फिल्मों को थोड़ा-सा परिवर्तन करके बनाने का प्रयास किया जाता है। विगत वर्ष एकता कपूर और मिलन लूथरिया की ‘द डर्टी पिक्चर’ की तर्ज पर कुछ करने की बेचैनी कई लोगों को है।

सस्ती सनसनीखेज अश्लील-सी बी-ग्रेड फिल्में बनाने का काम कांति शाह करते रहे हैं। उन्होंने मिथुन चक्रवर्ती के साथ ‘गुंडा’ नामक एक्शन फिल्म भी बनाई थी। ‘रॉकस्टार’ के दर्शकों को याद होगा कि फिल्म की मनमौजी युवा नायिका ‘जंगली जवानी’ नामक अश्लील फिल्म देखने जाती है। हर शहर की किसी संकरी-सी गली में एक ठाठिया सिनेमाघर होता है, जहां इस तरह की फिल्में प्रदर्शित होती हैं। ऐसी फिल्मों के असंख्य दर्शक भी हैं, अन्यथा इस तरह की फिल्में बने ही नहीं। बाजार में माल बिकता है, इसलिए बनाया भी जाता है। 

बहरहाल, एक फिल्मकार कांति शाह के जीवन से प्रेरणा लेकर एक काल्पनिक फिल्म बना रहा है, जिसके नायक का नाम उसने शांति शाह रखा है। स्पष्ट है कि इस ‘शाहनामे’ के नाम पर कुछ ऐसी अश्लील-सी चीजें फिल्म में होंगी, जो सेंसर की सुई की नोंक से निकल जाए। सिल्क स्मिता के जीवन से प्रेरित यथार्थ के नाम पर ‘डर्टी’ क्लीन होकर निकल गया। इसके कुछ संवाद सुनकर कांति का चेहरा भी शर्म से लाल हो जाता। यह रास्ता अनेक लोगों ने अपनाया है।

शेखर कपूर ने यथार्थ चित्रण के लिए फूलन देवी प्रेरित फिल्म में अपशब्द और अश्लील को भी श्रेष्टि समाज द्वारा स्वीकार करने योग्य बना दिया था, जिसे उच्च न्यायालय ने भी हरी झंडी दिखाई थी। बहरहाल, शेखर कपूर की फिल्म में बहुत गहराई थी, परंतु वह देखी गई ‘उत्तेजक दृश्यों’ के लिए, जो दरअसल विद्रूप जगाते थे। इस तरह की फिल्म के लिए कांति शाह की भूमिका के लिए नामी कलाकार लेना जरूरी है। 

‘द डर्टी पिक्चर’ में मल्लिका शेरावत या राखी सावंत होती तो उसे अधिक दर्शक नहीं मिलते, परंतु पारंपरिक छवि वाली विद्या बालन के आते ही ‘अनदेखे को देखने’ की जिज्ञासा दर्शकों में जगी। इसी तरह दक्षिण के बुढिय़ाते सुपर सितारे की भूमिका में गंभीर चरित्र चित्रण के लिए पहचाने जाने वाले नसीरुद्दीन शाह को लेना भी फिल्म के प्रति लगाव पैदा करने में सफल हुआ। 

मनोरंजन उद्योग में स्थापित छवि को भुनाने के साथ ही छवि के विपरीत भूमिका करना भी दर्शकों में उन्माद जगाता है। फॉर्मूले की मशीन में इस तरह का तेल समय-समय पर डालना ही पड़ता है। कांति शाह ने किसी और उद्देश्य से धर्मेंद्र पर फिल्माए एक दृश्य को अपनी ‘जंगली जवानी’ नुमा किसी फिल्म में ठूंस दिया। सनी देओल ने इस धोखाधड़ी से दु:खी होकर कांति की जमकर पिटाई कर दी। सुना है कि इस प्रस्तावित फिल्म में इस तथाकथित तथ्य को डाला जा रहा है।

दरअसल धर्मेंद्र अपनी बिंदास दरियादिली में कुछ निर्माताओं को अतिथि भूमिका करके उपकृत करते थे। बहरहाल, इस प्रस्तावित फिल्म के निर्माता मिलन लूथरिया से इस कदर प्रभावित हैं कि न केवल उनकी ‘द डर्टी पिक्चर’ का पुरुष संस्करण बनाने का प्रयास कर रहे हैं, वरन् फिल्म का शीर्षक ‘ये है मुंबई’ भी मिलन की ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ से प्रेरित लगता है। ‘भेडिय़ा धसान’ भी इस प्रयास का नाम हो सकता था। दरअसल सफलता की कोई डुप्लीकेट मशीन नहीं होती और न ही कोई जेरॉक्स कॉपी चलती है। जनता की अदालत में मूल दस्तावेज दिखाने पड़ते हैं। 

अब अगर विद्या बालन भी ‘डर्टी’ को दोहराएं तो सफल नहीं हो सकतीं। सच तो यह है कि विद्या बालन ने ‘नो वन किल्ड जेसिका’ में बेहतर अदाकारी की थी, जबकि पटकथा रानी मुखर्जी की सहायता कर रही थी। मनुष्य की दमित इच्छाओं और कुटैव ने बाजार को कई दुकानें प्रदान की हैं।

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