Friday 22 April 2011

कब तक महात्मा और मिरेकल का इंतजार करें?

कब तक महात्मा और मिरेकल का इंतजार करें?
दैनिक भास्कर के परदे के पीछे कॉलम से.
 विगत दिनों भारतीय रेल दो अलग-अलग कारणों से सुर्खियों में रही। युवा प्रतिभाशाली खिलाड़ी अरुणिमा के साथ हुई दुर्घटना और राजधानी एक्सप्रेस में रात ढाई बजे आग लगने पर सजग कर्मचारी और अनुशासित मुसाफिरों ने एक-दूसरे की मदद की और बिना किसी की जान के नुकसान के एक बड़ी मुसीबत से बच निकले। अरुणिमा की दुर्घटना के समय सब उनींदे रहे या संवेदनहीन बने रहे, परंतु आग लगते ही भाईचारा और सजगता देखने को मिली। प्राय: भगदड़ के



कारण अनेक लोग कुचल दिए जाते हैं। हम कब जागते हुए सोते हैं और कब उनींदे होते हुए सजग हो जाते हैं, यह हमें ही पता नहीं चलता। सजगता और नैतिकता की लहर सतह के नीचे प्रवाहित रहती है और संकट के समय सतह पर कुछ समय के लिए प्रवाहित रहती है। सामान्य परिस्थितियों में हम अपनी मूल प्रवृत्तियों पर कोई अंकुश नहीं रख पाते। यह समझना और भी कठिन है कि आज के संकट उन्हें दिखते नहीं हैं या गफलत अब स्थायी स्वभाव हो गया है। संकट के इस दौर में व्यवस्था और न्याय से विश्वास हट गया है और विघटन की प्रक्रिया तेज हो रही है। आम आदमी क्यों इसे अनदेखा कर रहा है?



दरअसल उसे दुविधा हो रही है कि वह अपनी आस्था किस खूंटी पर टांगे। उभरते हुए से महात्माओं का कद भी छोटा है। पैर भी कीचड़ में सने हैं और जर्जर गणतंत्र के खिलाफ नए किस्म की तानाशाही को कैसे स्वीकार करें।

वर्र्षो पूर्व बनी एक हॉलीवुड फिल्म में युद्ध में आहत सिपाही एक ट्रेन के डिब्बे में देखता है कि एक बूढ़ा, बीमार और शायद नशे में डूबा व्यक्ति बार-बार गिर जाता है।



सिपाही अपने प्लास्टर बंधे हाथ से उसे बैठाता है। एक स्टेशन पर दो गुंडे घुस आते हैं और रेल चलते ही बारी-बारी से यात्रियों को अपमानित करते हैं और उनके पर्स, अंगूठियां इत्यादि उतरवा लेते हैं। जब गुंडे एक कमसिन लड़की के साथ अभद्रता करने लगते हैं, तब सिपाही अपने प्लास्टर बंधे हाथ से न केवल उन पर आक्रमण करता है वरन् उनकी हड्डियां तोड़ देता है और इस प्रयास में वह बेइंतहा दर्द से गुजरता है।



वह मुसाफिरों से कहता है कि हम चालीस लोग एकजुट थे और दो टुच्चे गुंडों के हाथ में नौ इंची रामपुरी चाकू से डर रहे थे। जैसे ही रेल रुकती है, वह बीमार बूढ़ा नीचे गिर जाता है और मुसाफिर उस पर से कूदकर जल्दी-जल्दी कंपार्टमेंट से बाहर निकलते हैं क्योंकि पुलिस आकर पिटे हुए गुंडों को लेकर पंचनामा बनाएगी और वे सरकारी लफड़े में नहीं पड़ना चाहते।



आम आदमी की यह उदासीनता ही उसकी विपत्तियों के लिए जिम्मेदार है। आम जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना तथा सांस्कृतिक पुनर्जागरण से ही भ्रष्टाचार मिटेगा। हमने ही तंत्र में दीमक लगाया है और हमें ही उसे साफ करना है। कब तक अवतार का इंतजार करेंगे तथा कब तक अपनी आस्था के लिए खूंटी खोजते रहेंगे? महान के आविर्भाव का इंतजार क्यों करें?

2 comments:

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