Sunday 12 June 2011

घायल मन का पागल पंछी उड़ने को बेकरार..


बारह अप्रैल 1973 को बलराज साहनी ने एमएस सथ्यू की फिल्म ‘गर्म हवा’ के संवाद डब किए और तेरह अप्रैल को हृदयगति रुकने से साठ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु हो गई। फिल्म की कहानी विभाजन की त्रासदी को प्रस्तुत करती है- ‘आगरा में एक मुस्लिम परिवार का जूता बनाने का कारखाना है, दो भाइयों का अच्छा-खासा खाता-पीता परिवार है।

एक विवाद की तैयारी चल रही है और विभाजन के भयावह साये पूरे शहर पर छा जाते हैं। शादी की शहनाई मातम के सुर में रोने लगती है। छोटा भाई अपने परिवार के साथ पाकिस्तान पलायन का निर्णय लेता है। देश के साथ अनेक परिवारों में विभाजन होने लगता है। हालात बड़े भाई को भी पाकिस्तान की ओर ढकेलते हैं।

तांगे पर सामान लद गया है और मुखिया फैसले करते हैं कि लाख जद्दोजहद हो, हम अपनी माटी नहीं छोड़ेंगे।’ बलराज साहनी रावलपिंडी में जन्मे थे। अंग्रेजी साहित्य में एमए किया था, कुछ समय हार्वर्ड व शांति निकेतन में रहे थे। गांधीजी के साथ आंदोलन में भाग लिया था। उनके लिए ‘गर्म हवा’ में काम करना निजी अनुभवों की जुगाली की तरह था। उन्होंने परिवार के मुखिया की भूमिका में वही दर्द पेश किया, जो उनके विचार से विभाजन पर महात्मा गांधी ने महसूस किया होगा।

शायद इस महान प्रयास के बाद इच्छा शक्ति ही समाप्त हो गई और उन्होंने किसी नाथूराम गोडसे का इंतजार नहीं किया। बलराज साहनी ने सैंतीस साल की उम्र में फिल्म जगत में कदम रखा। वह निहायत ही खूबसूरत दिलीप, राज और देव आनंद का दौर था। इप्टा में नाटक करते हुए वे फिल्मों में आए। 1951 में गुरुदत्त के लिए ‘बाजी’ लिखी, अब्बास की ‘धरती के लाल’ में काम किया, पर ख्याति मिली बिमल राय की ‘दो बीघा जमीन’ और ‘काबुलीवाला’ से।

‘हम लोग’ नामक फिल्म के लिए उन्हें जेल से स्टूडियो लाया जाता था, क्योंकि कम्युनिस्ट होने के नाते वे कुछ समय राजनीतिक बंदी रहे। ‘गर्म कोट’ उनकी महान फिल्म थी। नूतन के साथ ‘सीमा’ में वे एक महिला सुधारगृह संचालक की भूमिका में सराहे गए थे। ‘सीमा’ फिल्म का यह गीत ही बलराज का परिचय है- ‘घायल मन का पागल पंछी उड़ने को बेकरार, पंख हैं कोमल आंख हैं धुंधली जाना है सागर पार’। - प्रसिद्ध फिल्म समीक्षक और आलोचक

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