Sunday 12 June 2011

मैडम तुसाद और करीना कपूर


जून के तीसरे सप्ताह में करीना कपूर की मोम की मूर्ति अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त मैडम तुसाद के म्यूजियम में स्थापित की जाने वाली है, जहां अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सलमान खान और ऐश्वर्या राय की मूर्तियां पहले से मौजूद हैं। देश-विदेश के अनेक पर्यटक टिकट खरीदकर इस म्यूजियम में जाते हैं, जहां अनेक नेताओं व कलाकारों की मूर्तियां लगी हैं। क्या पर्यटकों के जाने के बाद रात के सन्नाटे में ये मूर्तियां बतियाती होंगी? विंस्टन चर्चिल की मूर्ति ‘अधनंगे फकीर गांधी’ की मूर्ति से क्या कहती होगी या ऐश्वर्या राय और सलमान खान अपने तूफानी प्यार के दिनों के बारे में क्या बतियाते होंगे?

मैरी ग्रोसहोल्ट्ज जर्मन मूल की फ्रांस में बसी महिला थीं, जिनके चाचा मोम की मूर्तियां बनाते थे और बचपन से ही मैरी ने यह विद्या सीखी। चेहरे के भावों को भी कुशलता से वे मोम की मूर्तियों में कुछ ऐसा उभारती थीं कि लगता था ये बतियाने लगेंगी। मैरी बचपन से ही अपने पड़ोसी एवं विज्ञान शोधकर्ता हैनरी से प्यार करती थीं, परंतु फ्रांस में क्रांति के प्रारंभिक दौर में ही आगामी खतरों का अनुमान लगाने वाले हैनरी मैरी से विवाह कर लंदन जाना चाहते थे, परंतु मैरी अपने परिवार और म्यूजियम को छोड़कर नहीं जाना चाहती थीं और बाद में उन्होंने तुसाद नामक आदतन जुआरी से विवाह किया और उसकी गैरजवाबदारी के कारण उसे छोड़ भी दिया। अनेक वर्ष पश्चात वे लंदन जा पाईं और हैनरी से उनका मिलन हुआ। फ्रांस की क्रांति की पृष्ठभूमि में इस अद्भुत प्रेमकथा को मिचेल मोरान ने ‘मैडम तुसाद’ नामक किताब में लिखा है।

मैरी के प्रयास से फ्रांस की रानी मैरी एन्टोनिरे ने अपने पति और परिवार के साथ उनके म्यूजियम की यात्रा की और प्रशंसा की, जिसके नतीजतन म्यूजियम अत्यंत लोकप्रिय हुआ। राजा की बहन एलिजाबेथ को मोम की मूर्तियां बनाना तुसाद ने सिखाया।

क्रांति के समय राज परिवार से निकटता के बावजूद इस परिवार को मारा नहीं गया, क्योंकि क्रांति के अनेक कर्णधार इसी म्यूजियम में प्राय: बैठकें करते थे। राज परिवार के लोगों के मोम के पुतलों के आधार पर पहचान कर उन्हें कत्ल किया गया और कुछ कटी मुंडियों को म्यूजियम में मोम के मुखौटे गढऩे के लिए लाया भी जाता था। मैडम तुसाद के सभी भाई राजा की सेना में थे और उन्हें परिवार सहित कत्ल किया गया। केवल मैरी को कुछ वर्ष जेल की यातना सहनी पड़ी।

डॉ. गुयालोटाइन ने सिर धड़ से अलग करने के उपकरण की ईजाद की थी और चालीस हजार लोगों के सिर धड़ से भीड़ ने अलग किए और बाद में किए गए शोध से सिद्ध हुआ कि उनमें से नब्बे प्रतिशत लोग निर्दोष आम आदमी थे। अंधी अराजकता की हद यह थी कि सोलह व्यक्तियों के परिवार को केवल इसलिए मार दिया गया कि उनके घर में महारानी के नाम का एक रुमाल मिला, जो उन्हें सड़क पर मिला था। उपकरण ईजाद करने वाले ने उपकरण का नाम बदलने की प्रार्थना की थी, जिसके अस्वीकृत होने पर उन्होंने अपना सरनेम ही बदल दिया। बहरहाल क्रांति के पहिए निर्दोष लोगों को भी कुचल देते हैं।

दरअसल वाकचातुर्य से व्यक्ति भीड़ एकत्रित करता है और उसे एक नशे में गाफिल कर देता है। बाद में भीड़ की प्रशंसा वक्ता को नशे में चूर कर देती है और सारा मामला नियंत्रण के बाहर चला जाता है। वक्ता जानता है कि वह लफ्फाजी से मायाजाल बुन रहा है, फिर हजारों की तालियों से मंत्रमुग्ध होकर वह स्वयं पागल भीड़ का हिस्सा बन जाता है। भीड़ का सामूहिक मनोविज्ञान अजीब ढंग से काम करता है। घर में बैठकर परिवार से स्नेह करने वाला व्यक्ति भीड़ में शामिल होकर हिंसक हो जाता है। आम व्यक्ति का घर में व्यवहार, सड़क पर व्यवहार, सिनेमाघर में प्रतिक्रिया और भीड़ में विवेक खोना अलग-अलग होता है और हर आदमी के पीछे उसके दस स्वरूप विद्यमान होते हैं।

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