सलमान खान और करीना कपूर अभिनीत फिल्म ‘बॉडीगार्ड’ के जरिए राज बब्बर बरसों बाद अभिनय क्षेत्र में वापसी कर रहे हैं। इसकी शूटिंग आजकल पटियाला में चल रही है। ज्ञातव्य है कि नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा, दिल्ली से प्रशिक्षित राज बब्बर को बलदेव राज चोपड़ा की फिल्म ‘इंसाफ का तराजू’ के जरिए बॉलीवुड में पहली सफलता मिली, जिसमें उन्होंने खलनायक की भूमिका निभाई थी। बाद में केवल अपनी प्रतिभा के दम पर अनेक फिल्में बतौर नायक अभिनीत कीं। उन्हें बचपन से अभिनय का शौक था और मात्र तीस रुपए माहवार पर एक नाटक कंपनी में साफ-सफाई का काम इस उम्मीद पर करते रहे कि अभिनय का अवसर मिलेगा। उन्होंने लंबे समय तक संघर्ष किया और आर्थिक अभाव उनके उत्साह को कभी कम नहीं कर पाया। इसी जुझारूपन के साथ उन्होंने राजनीति में भी प्रवेश किया और वर्तमान में वे फिरोजाबाद से चुनकर आए सांसद हैं।
राज बब्बर पहले समाजवादी नेता हैं, जिन्होंने अमर सिंह की नीतियों के खिलाफ मुलायम सिंह को अपना विरोध दर्ज कराया था तथा बाद में अपना त्याग पत्र देकर कांग्रेस के टिकट पर फिरोजाबाद से मुलायम सिंह की बहू को चुनाव हराकर अमर सिंह के बर्खास्त होने का पथ प्रशस्त किया था। उन्होंने छात्र जीवन में भी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई थी और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से भी जुड़े रहे। आज वे सतर्क-सक्रिय सांसद हैं। फिल्म उद्योग से राजनीति में आने वाले वे एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें इस क्षेत्र की समझ रही है।
हॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म ‘डेथविश’ से प्रेरित बीआर चोपड़ा की ‘आज की आवाज’ में उन्होंने सशक्त अभिनय किया था। वे इतने कुशल अभिनेता हैं कि नायक की भूमिकाएं करते समय ही उन्होंने पहलाज निहलानी की गोविंदा, चंकी पांडे अभिनीत ‘आंखें’ में खलनायक की भूमिका अत्यंत कुशलता से निभाई। इस समय फिल्मोद्योग में पिता की सशक्त भूमिका का हिस्सा बिल्कुल सूना है, क्योंकि अमिताभ बच्चन अब दादा-नाना लगते हैं। इसके साथ ही अमरीश पुरी की मृत्यु के बाद सशक्त खलनायक के क्षेत्र में भी कोई नहीं है।
राज बब्बर हर तरह की भूमिका कर सकते हैं। ‘बॉडीगार्ड’ की शूटिंग में भी अपना काम इतनी खूबी से कर रहे हैं कि पहले टेक में ही शॉट पसंद कर लिया जाता है। जन्मजात अभिनेता विभिन्न भूमिकाओं में उतनी ही सहजता से प्रवेश करता है, जैसे कोई व्यक्ति कपड़े बदलता है। सच तो यह है कि जीवन-मृत्यु भी मात्र चोला बदलना ही है और इसी बारे में शेक्सपीयर की यह उक्ति बार-बार कही जाती है कि दुनिया एक रंगमंच है, जहां हम अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाकर पटाक्षेप कर जाते हैं। रंगमंच से आए अभिनेता के लिए जीवन के विभिन्न आयामों का अर्थ समझना आसान होना चाहिए। उसे एक ही जीवन में कितने जीवनों का अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिलता है। सांप अपना केंचुल लंबे अंतराल में बदलता है, परंतु अभिनेता को यह अवसर बार-बार मिलता है और व्यस्त सिने कलाकार एक ही दिन में दो अलग फिल्मों में अलग-अलग भूमिकाएं करता है।
बहरहाल, राज बब्बर का भविष्य राजनीति और अभिनय दोनों क्षेत्रों में बहुत उज्ज्वल और चुनौतीभरा है, क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों में समर्पित व्यक्तियों का अभाव है। आज राजनीति के क्षेत्र में समस्याएं विराट हैं और सजगता की आवश्यकता है। फिल्मों में भी चरित्र भूमिकाओं में नया कुछ करने का अवसर नायकों से अधिक है, क्योंकि नायक सफल छवियों की मजबूत जंजीरों से जकड़े रहते हैं। इसी तरह सांसदों को भी पार्टी का अनुशासन एक ओर खींचता है और उनका देशप्रेम दूसरी ओर। राज बब्बर ने संघर्ष भरा जीवन जिया है और वे मिट्टी से जुड़े मिट्टीपकड़ पहलवान हैं।
राज बब्बर पहले समाजवादी नेता हैं, जिन्होंने अमर सिंह की नीतियों के खिलाफ मुलायम सिंह को अपना विरोध दर्ज कराया था तथा बाद में अपना त्याग पत्र देकर कांग्रेस के टिकट पर फिरोजाबाद से मुलायम सिंह की बहू को चुनाव हराकर अमर सिंह के बर्खास्त होने का पथ प्रशस्त किया था। उन्होंने छात्र जीवन में भी राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाई थी और जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से भी जुड़े रहे। आज वे सतर्क-सक्रिय सांसद हैं। फिल्म उद्योग से राजनीति में आने वाले वे एकमात्र व्यक्ति हैं, जिन्हें इस क्षेत्र की समझ रही है।
हॉलीवुड की प्रसिद्ध फिल्म ‘डेथविश’ से प्रेरित बीआर चोपड़ा की ‘आज की आवाज’ में उन्होंने सशक्त अभिनय किया था। वे इतने कुशल अभिनेता हैं कि नायक की भूमिकाएं करते समय ही उन्होंने पहलाज निहलानी की गोविंदा, चंकी पांडे अभिनीत ‘आंखें’ में खलनायक की भूमिका अत्यंत कुशलता से निभाई। इस समय फिल्मोद्योग में पिता की सशक्त भूमिका का हिस्सा बिल्कुल सूना है, क्योंकि अमिताभ बच्चन अब दादा-नाना लगते हैं। इसके साथ ही अमरीश पुरी की मृत्यु के बाद सशक्त खलनायक के क्षेत्र में भी कोई नहीं है।
राज बब्बर हर तरह की भूमिका कर सकते हैं। ‘बॉडीगार्ड’ की शूटिंग में भी अपना काम इतनी खूबी से कर रहे हैं कि पहले टेक में ही शॉट पसंद कर लिया जाता है। जन्मजात अभिनेता विभिन्न भूमिकाओं में उतनी ही सहजता से प्रवेश करता है, जैसे कोई व्यक्ति कपड़े बदलता है। सच तो यह है कि जीवन-मृत्यु भी मात्र चोला बदलना ही है और इसी बारे में शेक्सपीयर की यह उक्ति बार-बार कही जाती है कि दुनिया एक रंगमंच है, जहां हम अपनी-अपनी भूमिकाएं निभाकर पटाक्षेप कर जाते हैं। रंगमंच से आए अभिनेता के लिए जीवन के विभिन्न आयामों का अर्थ समझना आसान होना चाहिए। उसे एक ही जीवन में कितने जीवनों का अनुभव प्राप्त करने का अवसर मिलता है। सांप अपना केंचुल लंबे अंतराल में बदलता है, परंतु अभिनेता को यह अवसर बार-बार मिलता है और व्यस्त सिने कलाकार एक ही दिन में दो अलग फिल्मों में अलग-अलग भूमिकाएं करता है।
बहरहाल, राज बब्बर का भविष्य राजनीति और अभिनय दोनों क्षेत्रों में बहुत उज्ज्वल और चुनौतीभरा है, क्योंकि दोनों ही क्षेत्रों में समर्पित व्यक्तियों का अभाव है। आज राजनीति के क्षेत्र में समस्याएं विराट हैं और सजगता की आवश्यकता है। फिल्मों में भी चरित्र भूमिकाओं में नया कुछ करने का अवसर नायकों से अधिक है, क्योंकि नायक सफल छवियों की मजबूत जंजीरों से जकड़े रहते हैं। इसी तरह सांसदों को भी पार्टी का अनुशासन एक ओर खींचता है और उनका देशप्रेम दूसरी ओर। राज बब्बर ने संघर्ष भरा जीवन जिया है और वे मिट्टी से जुड़े मिट्टीपकड़ पहलवान हैं।
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