Thursday, 2 June 2011

इक रिदाएतीरगी और ख्वाबे कायनात

दो जून को राज कपूर की तेइसवीं पुण्यतिथि है। उनके जीवन, प्रेम और फिल्मों पर बहुत कुछ लिखा जा चुका है और पुनरावलोकन आज भी जारी है। दो मई को उन्हें दिल्ली जाकर दादासाहब फाल्के पुरस्कार ग्रहण करना था और समारोह के दो दिन पूर्व वे दिल्ली पहुंचे थे। मुंबई से निकलने की पूर्वसंध्या पर शम्मी कपूर, रणधीर कपूर और रवींद्र पीपट उनसे मिलने पहुंचे।

उन दिनों यह खाकसार वहां कंपल्सरी ब्लाइंड की तरह मौजूद होता था। उस समय तक ‘हिना’ के तीन गीत रिकॉर्ड हो चुके थे और पटकथा के भी आधे-अधूरे तीन संस्करण बन चुके थे। उन्होंने उस रात रणधीर कपूर को पांच हजार की टोकन अनुबंध राशि देते हुए कहा कि ‘हिना’ का निर्देशन वही करेंगे। उनकी देखरेख रहेगी, लेकिन शूट रणधीर ही करेंगे, जैसा कि आधी ‘राम तेरी गंगा मैली’ में भी किया गया था। उन्होंने विस्तार से पूरी फिल्म समझाई।

इसके बाद उन्होंने रवींद्र पीपट को भी पांच हजार रुपए दिए। उन्हें आबिद सूरती की कहानी बहुत पसंद थी। उसे भी सविस्तार सुनाया। यहां तक कि उस फिल्म के पहले पोस्टर की डिजाइन क्या होगी, यह भी बताया। यह वही कहानी थी, जिसे वे कुछ वर्ष पूर्व शम्मी कपूर से निर्देशित कराना चाहते थे, लेकिन शम्मी उस वक्त ‘इरमा ला डूस’ से प्रेरित ‘मनोरंजन’ बना रहे थे।

इस लंबी रात के अंत में उन्होंने कहा कि ‘हिना’ को प्रेम के इंद्रधनुष की तरह रचना चाहते हैं, जो सरहदों के ऊपर दोनों मुल्कों को जोड़ता है। ज्ञातव्य है कि इसके तकरीबन दो दशक पूर्व मनमोहन देसाई की फिल्म ‘छलिया’ की शूटिंग के समय उन्हें एक अखबारी कतरन हाथ लगी थी, जिसमें यूएनओ का एक भारतीय मूल का युवा कार चालक बरसात की रात झेलम में बहता हुआ पाकिस्तान जा पहुंचा था, जहां एक खानाबदोश कुनबे ने उसकी जान बचाई थी। वह अपनी याददाश्त खो चुका था और यूएनओ के अफसर की शिनाख्त के बाद पाकिस्तान की जेल से रिहा हुआ था।

राज कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ के निर्माण के समय ख्वाजा अहमद अब्बास को ‘हिना’ की पटकथा लिखने के लिए कहा और ‘बॉबी’ के रजत जयंती समारोह में अब्बास साहब ने उन्हें पटकथा सौंपी, जिसका दूसरा संस्करण जैनेंद्र जैन ने लिखा और तीसरा संस्करण पाकिस्तान की लेखिका हसीना मोइन ने लिखा था। उस समय फिल्म के नायक के तौर पर रणधीर कपूर को चुना गया था, लेकिन उनके भाग्य में तो यह लिखा था कि वे वर्षों बाद ऋषि कपूर और जेबा बख्तियार अभिनीत ‘हिना’ को निर्देशित करें। उस छोटी-सी अखबारी कतरन से प्रेरित कथा कोई तीन दशक बाद १९९१ में प्रदर्शित हुई।

अगले दिन शाम की फ्लाइट से दिल्ली जाना था। सामान एयरपोर्ट जा चुका था और श्रीमती कृष्णा कपूर बेचैन थीं कि एयरपोर्ट पहुंचने में ‘कहीं देर न हो जाए!’ राज साहब इत्मीनान से तैयार हुए और निकलने के पहले वे अपने कुत्ते की पीठ सहला रहे थे। उन्होंने महसूस किया कि कुत्ता कुछ अस्वस्थ है। उन्होंने तुरंत कुत्तों के अपने जाने-पहचाने डॉक्टर को फोन लगाया और हिदायत दी कि फौरन आकर उपचार करें। यह सब देखकर श्रीमती कृष्णा कपूर की बेचैनी बढ़ रही थी। उन्हें यह सब अनावश्यक लग रहा था, परंतु ‘जोकर’ के तीसरे भाग में एक कुत्ता नायक के फुटपाथ सर्कस का भागीदार था और उसके कांजी हाउस भेजे जाने पर नायक तड़प उठा था।

राज कपूर ने इत्मीनान से अपने घर और बगीचे को निहारा और कुछ अनिच्छुक से कार में बैठे। क्या उन्हें इलहाम हो गया था कि अब वे शायद न लौटें। उनके जाते ही बीमार कुत्ते ने अजीब-सी करुण चीत्कार निकाली। उन्हें मौत की गंध इतने पहले कैसे आ गई? उस रात तारों को देखकर कुछ अजीब-सा लगा था।

‘इक रिदाएतीरगी है और ख्वाबे कायनात,

डूबते जाते हैं तारे भीगती जाती है रात।’

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