अर्जुन रामपाल शाहरुख खान की महत्वाकांक्षी फिल्म ‘रा.वन’ में प्रमुख खलनायक की भूमिका कर रहे हैं और हाल ही में उन्होंने ऐश्वर्या राय केंद्रित मधुर भंडारकर की फिल्म ‘हीरोइन’ में नायक की भूमिका स्वीकार की है। ज्ञातव्य है कि स्वयं ऐश्वर्या राय द्वारा निर्मित फिल्म ‘दिल का रिश्ता’ में भी अर्जुन उनके नायक रह चुके हैं। दरअसल फरहान अख्तर की ‘रॉक ऑन’ में समानांतर भूमिका के बाद उनकी पहचान बनी और ‘ओम शांति ओम’ में उनकी खलनायकी को प्रशंसा प्राप्त हुई थी।
सातवें दशक में फिल्मों के महत्वपूर्ण पूंजी निवेशक रहे गुलशन राय के सुपुत्र राजीव राय ने अजरुन रामपाल को नायक लेकर दो असफल फिल्में बनाई थीं और किसी भी नवागंतुक का कॅरियर नष्ट करने के लिए दोनों फिल्में काफी थीं, परंतु जुझारू अजरुन डटे रहे। फिल्म उद्योग में टिके रहकर महत्वपूर्ण लोगों से संपर्क बनाए रखने से काम बन जाता है। इस उद्योग में औसत प्रतिभा वालों को भी सही लोगों से सही वक्त पर मेल-मिलाप करते रहने और चुस्त शरीर के दम पर काम मिल ही जाता है।
विगत दो दशक में अभिनेता बनने के लिए कसरती शरीर, घुड़सवारी, तैराकी और नृत्य के लिए यथेष्ट चपलता होना अच्छा अभिनेता होने से बेहतर माना गया है और अभिनय प्रशिक्षण की किसी संस्था में जाने से भी ज्यादा जरूरी है जिम में जाना। मुंबई में बॉडी बिल्डिंग एक बड़ा कारोबार है और जमीनों के आसमानी मूल्यों के होते हुए भी पंद्रह हजार वर्गफुट की जगह पर आधुनिकतम उपकरणों से सुसज्जित जिम में एक घंटे की वर्जिश के लिए पंद्रह सौ रुपए तक देने वालों की कमी नहीं है।
यह तेजी से बदलते हुए भारत की हकीकत है कि मुंबई में वड़ा-पाव स्टॉल से अधिक संख्या में जिम खुले हुए हैं, चायघरों से ज्यादा बार हैं और पान की दुकानों से ज्यादा वाइन की दुकानें हैं। यही सब अनेक छोटे और मध्यम शहरों में भी कम स्केल पर घटित हो रहा है। अनेक मध्यम श्रेणी के उभरते हुए शहर बेकरार हैं महानगर बनने के लिए, इसलिए आपको मुंबई के बच्चे के नाम वाले कई शहर मिल जाएंगे। आज के दौर में बड़ा होना खुश रहने से बेहतर माना गया है।
बहरहाल, अर्जुन रामपाल बॉक्स ऑफिस पर अपना मूल्य बढ़ाते जा रहे हैं और यह इसलिए नहीं हो रहा है कि उनकी किसी फिल्म में मौजूदगी के कारण दो-चार सिनेमा टिकट बिकते हैं, वरन इसलिए हो रहा है कि चुस्त-दुरुस्त शरीर के साथ सुंदर से चेहरे की आवश्यकता है इस स्वप्न उद्योग को। दूसरा कारण यह है कि नायिका केंद्रित फिल्म में काम करने के लिए कोई भी सुपर सितारा तैयार नहीं होता। इन बातों का सारांश यह है कि रिक्त स्थान की पूर्ति मात्र कर देने के लिए भी लोगों की आवश्यकता होती है। अखबारों में शब्द-शक्ति टटोलने के लिए रिक्त स्थान की एक प्रतियोगिता होती है-दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे संकेत होता है कि किसी शब्द के स्पेलिंग में एक अक्षर गायब है और उसे भरिए। फिल्म उद्योग में पात्र चयन में भी कुछ रिक्त स्थान होते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस खेल को खेलने से स्मरण शक्ति मजबूत होती है। ब्रिज और शतरंज खेलने वालों को स्मृति विलोप होने की अल्झाइमर बीमारी नहीं होती।
बहरहाल, अर्जुन रामपाल को अपने मन का मेहनताना और काम मिल रहा है। आज अभिनय क्षमता की फिल्मों में उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी राजनीति में है। हमारी सामाजिक संरचना कुछ ऐसी हो गई है कि प्रतिभा और परिश्रम की जगह तिकड़मबाजी और बुद्धि के बदले लफ्फाजी तथा सत्य के बदले चीख-चीखकर बोला हुआ झूठ जीत जाता है।
सातवें दशक में फिल्मों के महत्वपूर्ण पूंजी निवेशक रहे गुलशन राय के सुपुत्र राजीव राय ने अजरुन रामपाल को नायक लेकर दो असफल फिल्में बनाई थीं और किसी भी नवागंतुक का कॅरियर नष्ट करने के लिए दोनों फिल्में काफी थीं, परंतु जुझारू अजरुन डटे रहे। फिल्म उद्योग में टिके रहकर महत्वपूर्ण लोगों से संपर्क बनाए रखने से काम बन जाता है। इस उद्योग में औसत प्रतिभा वालों को भी सही लोगों से सही वक्त पर मेल-मिलाप करते रहने और चुस्त शरीर के दम पर काम मिल ही जाता है।
विगत दो दशक में अभिनेता बनने के लिए कसरती शरीर, घुड़सवारी, तैराकी और नृत्य के लिए यथेष्ट चपलता होना अच्छा अभिनेता होने से बेहतर माना गया है और अभिनय प्रशिक्षण की किसी संस्था में जाने से भी ज्यादा जरूरी है जिम में जाना। मुंबई में बॉडी बिल्डिंग एक बड़ा कारोबार है और जमीनों के आसमानी मूल्यों के होते हुए भी पंद्रह हजार वर्गफुट की जगह पर आधुनिकतम उपकरणों से सुसज्जित जिम में एक घंटे की वर्जिश के लिए पंद्रह सौ रुपए तक देने वालों की कमी नहीं है।
यह तेजी से बदलते हुए भारत की हकीकत है कि मुंबई में वड़ा-पाव स्टॉल से अधिक संख्या में जिम खुले हुए हैं, चायघरों से ज्यादा बार हैं और पान की दुकानों से ज्यादा वाइन की दुकानें हैं। यही सब अनेक छोटे और मध्यम शहरों में भी कम स्केल पर घटित हो रहा है। अनेक मध्यम श्रेणी के उभरते हुए शहर बेकरार हैं महानगर बनने के लिए, इसलिए आपको मुंबई के बच्चे के नाम वाले कई शहर मिल जाएंगे। आज के दौर में बड़ा होना खुश रहने से बेहतर माना गया है।
बहरहाल, अर्जुन रामपाल बॉक्स ऑफिस पर अपना मूल्य बढ़ाते जा रहे हैं और यह इसलिए नहीं हो रहा है कि उनकी किसी फिल्म में मौजूदगी के कारण दो-चार सिनेमा टिकट बिकते हैं, वरन इसलिए हो रहा है कि चुस्त-दुरुस्त शरीर के साथ सुंदर से चेहरे की आवश्यकता है इस स्वप्न उद्योग को। दूसरा कारण यह है कि नायिका केंद्रित फिल्म में काम करने के लिए कोई भी सुपर सितारा तैयार नहीं होता। इन बातों का सारांश यह है कि रिक्त स्थान की पूर्ति मात्र कर देने के लिए भी लोगों की आवश्यकता होती है। अखबारों में शब्द-शक्ति टटोलने के लिए रिक्त स्थान की एक प्रतियोगिता होती है-दाएं से बाएं और ऊपर से नीचे संकेत होता है कि किसी शब्द के स्पेलिंग में एक अक्षर गायब है और उसे भरिए। फिल्म उद्योग में पात्र चयन में भी कुछ रिक्त स्थान होते हैं। विशेषज्ञ कहते हैं कि इस खेल को खेलने से स्मरण शक्ति मजबूत होती है। ब्रिज और शतरंज खेलने वालों को स्मृति विलोप होने की अल्झाइमर बीमारी नहीं होती।
बहरहाल, अर्जुन रामपाल को अपने मन का मेहनताना और काम मिल रहा है। आज अभिनय क्षमता की फिल्मों में उतनी आवश्यकता नहीं है, जितनी राजनीति में है। हमारी सामाजिक संरचना कुछ ऐसी हो गई है कि प्रतिभा और परिश्रम की जगह तिकड़मबाजी और बुद्धि के बदले लफ्फाजी तथा सत्य के बदले चीख-चीखकर बोला हुआ झूठ जीत जाता है।
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