Monday, 13 June 2011

तपने से ज्यादा पकने की जल्दी है


विगत पंद्रह वर्षो में आदित्य चोपड़ा ने शाहरुख खान के साथ आधा दर्जन फिल्में बनरई और लगभग इतनी ही फिल्में उनके मित्र और कभी सहायक निर्देशक रहे करण जौहर ने बनाई हैं। अपने गुरु, गाइड और फिलॉसफर आदित्य की तरह करण ने अन्य निर्देशकों को लेकर शाहरुखविहीन फिल्में भी बनाई हैं।

दरअसल ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे’ के समय शाहरुख और काजोल के प्रोत्साहन और सक्रिय सहयोग के कारण ही करण जौहर स्वतंत्र रूप से निर्देशक बने।

कुछ शाहरुखी सफलताओं के बाद करण जौहर ने बयान दिया था कि वे अपने जीवन में बिना शाहरुख खान के किसी फिल्म की कल्पना भी नहीं कर सकते, परंतु अब वे ‘द स्टूडेंट ऑफ द ईयर’ नामक फिल्म निर्देशक डेविड धवन के बेटे और महेश भट्ट की बेटी के साथ बतौर नायक-नायिका बनाने जा रहे हैं। इस फिल्म में शाहरुख खान केवल सह-निर्माता होंगे, क्योंकि कदाचित उनके किसी न किसी रूप में सहयोग के बिना करण जौहर फिल्म नहीं बनाना चाहते। इस फिल्म में ऋषि कपूर एक प्रोफेसर के रूप में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका करने जा रहे हैं कि उनके द्वारा अभिनीत पात्र की मृत्यु ही फिल्म का क्लाइमैक्स भी होगा।

ज्ञातव्य है कि वर्षो पूर्व महेश भट्ट ने नसीरुद्दीन शाह, पूजा भट्ट और अतुल अग्निहोत्री के साथ ‘सर’ नामक फिल्म बनाई थी। इन्हीं अतुल अग्निहोत्री ने कुछ फिल्में बतौर नायक करते हुए सलमान खान की बहन अलवीरा से विवाह किया और फिलहाल वे सलमान खान, करीना कपूर और राज बब्बर के साथ ‘बॉडीगार्ड’ नामक फिल्म का निर्माण कर रहे हैं। कॉलम लिखे जाने तक इस फिल्म की शूटिंग पटियाला में हो रही है।

बहरहाल, उन दिनों कहा जाता था कि महेश भट्ट को इस फिल्म की प्रेरणा हॉलीवुड की ‘टू सर विद लव’ से प्राप्त हुई है और अगर वही फिल्म करण जौहर को भी प्रेरित कर रही है तो कहना होगा कि ‘सर’ के समय उत्पन्न हुई महेश भट्ट की बेटी इस फिल्म की नायिका है, गोयाकि महेश भट्ट पटकथा के साथ बेटी की कुंडली भी लिख रहे थे।

करण जौहर के गुरु आदित्य चोपड़ा रणबीर कपूर के साथ शिमित अमीन के निर्देशन में ‘रॉकेट सिंह- सेल्समैन ऑफ द ईयर’ बना चुके हैं। आजकल शिक्षण संस्थाएं प्राय: सेल्समैन ही गढ़ रही हैं और शिक्षा का व्यावसायिक स्वरूप कुछ ऐसा फैला है कि भारत में हर साल लाखों ग्रेजुएट्स का ‘उत्पादन’ हो रहा है, जिस कारण अखबार व्यवसाय यहां फल-फूल रहा है, जबकि अन्य देशों में कागज पर छपे अखबार का संध्याकाल आ गया है और वेबसाइट पर ज्यादा अखबार पढ़े जा रहे हैं।

विगत पंद्रह-बीस वर्षो में शिक्षण संस्थाओं के परिसर के वातावरण में बहुत अंतर आया है। आज का युवा बहुत महत्वाकांक्षी है और उसे पैसा कमाने लायक होने की जल्दी भी है। वह तपने से ज्यादा पकने में यकीन करता है, क्योंकि उसे बाजार में पहुंचने की जल्दी है। बाजार ने शिक्षा परिसरों में जल्दी पकने का कार्बाइड बिछा रखा है। यह एकमात्र केंद्रीय विचार उसके सारे व्यवहार को नियंत्रित करता है। कई बार संशय होता है कि कहीं यही बात उसके प्रेम को तो रेखांकित नहीं कर रही है। वह प्यार ही क्या कि आप बादलों से गुजरें और उसकी नमी को महसूस न करें और उसकी बिजली को न थामें।

प्रेमचंद गांधी (जयपुर) द्वारा संपादित ‘कुरजां’ में कृष्ण कल्पित की पंक्तियां हैं- ‘जब यूनिवर्सिटी के रास्तों पर, हम फैज के नगमे गाते थे। सिगरेट का धुआं उठता था, तब बादल झूम के आते थे। तुम सुनते -सुनते थे, हम गाते-गाते थे। मैं फैज के नज्मों के जरिए ही, तेरे दिल में उतरा था। मैं सुबह से बैठा रहता था, तुम आते-आते आते थे।’

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