‘खामोश पानी’ जैसी सार्थक फिल्म की लेखिका परोमिता वोहरा ने ‘पार्टनर्स इन क्राइम’ नामक वृत्तचित्र बनाया है, जिसके लिए उन्हें साधन और धन जुटाया दिल्ली की मैजिक लैन्टर्न फॉउंडेशन ने और यह वृत्तचित्र उनकी साइट www.magiclanternfoundation.org पर उपलब्ध है। इस वृत्तचित्र को बनाने का उद्देश्य सृजन और कॉपीराइट नियम पर रोशनी डालना और संसद में प्रस्तुत नए एक्ट और बाजार में हो रही व्यापक चोरी की ओर ध्यान दिलाना है। टेक्नोलॉजी ने सांस्कृतिक स्वतंत्रता प्रदान की है या सृजन अधिकारों की चोरी के लिए पगडंडियां रची हैं।
यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि व्यवस्था में मौजूद सड़ांध को बुहारने के नाम पर विविध मुखौटे लगाकर कितनी मासूमियत से संविधान को तोड़ने की साजिश हो रही है। संविधान से ऊपर कुछ शक्तियों के ठिए बनाने का प्रयास हो रहा है, गोयाकि महान बाबा आंबेडकर रचित संविधान की अवहेलना की जा रही है। इसी समय परोमिता वोहरा ने संगीत क्षेत्र में अराजकता की बात उठाई है।
परोमिता ने ‘मुन्नी गीत’ के उद्गम तक जाने का प्रयास किया है। ‘दबंग’ के प्रदर्शन के समय इस गीत को पाकिस्तान के लोकगीत की नकल बताया जा रहा था, परंतु वोहरा ने दावा प्रस्तुत किया है कि यह मध्यप्रदेश में जन्मा गीत है। 1970 में रजिया बेगम नामक लोक गायिका ने अनेक मंचों पर प्रस्तुत किया ‘लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए’ और इसके अनेक भोजपुरी, पाकिस्तानी संस्करण बने।
यहां तक कि हमेशा सोने से लदे रहने वाले महान बप्पी लहरी ने भी एक गीत रचा और ‘दबंग’ के दिनों स्वयं को इस गीत का मौलिक रचियता भी बताने के प्रयास किए। वोहरा ने यह भी खोजा है कि नौटंकी कलाकार रामपत और रानी बाला ने इस शरारती मुन्नी का एक पूरी तरह अश्लील संस्करण भी रचा है, जो गांवों और कस्बों में बिना झिझक रस लेकर सुनाया गया है।
‘दबंग’ के इस गीत के बोल लिखने का श्रेय फिल्म के निर्देशक अभिनव कश्यप ने लिया है और ललित (जतिन-ललित टीम के छिटके हुए सदस्य) ने धुन बनाने के लिए नाम और दाम कमाए हैं। मूल सृजनकर्ता रजिया बेगम को न कोई श्रेय मिला और न ही कानी कौड़ी मिली है। इसी को सामने रखकर परोमिता वोहरा ने क्रिएटिविटी और कॉपीराइट की बात प्रस्तुत की है।
20 फरवरी 2009 को राकेश मेहरा की ‘दिल्ली 6’ नामक फिल्म प्रदर्शित हुई। इसमें प्रसून जोशी का लिखा और एआर रहमान के संगीत से सजा गीत ‘ससुराल गेंदा फूल’ बहुत लोकप्रिय हुआ था और विगत कई महीनों से इसी नाम का पारिवारिक सीरियल भी दिखाया जा रहा है। 21 फरवरी 2009 को इसी कॉलम में लिखा गया था, यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि फिल्म में छत्तीसगढ़ के कवि गंगाराम तिवारी और संगीतकार भुलावाराम यादव की रचना ‘सास गारी देवे, ननद मुहा लेवे देवर बाबू मोर’ गीत के बोल और धुन में थोड़ा-सा फेरबदल किया गया है। इसमें छत्तीसगढ़ के महान लोकगीत का इस्तेमाल किया गया है और मूल लेखक, संगीतकार और गायिकाएं जोशी बहनों का नाम क्रेडिट में नहीं दिया गया है। जोशी बहनों ने रायपुर आकाशवाणी के लिए 1970 में इसे रिकॉर्ड किया था।
यह संभव है कि रहमान की संगीत प्रशिक्षण संस्था में छत्तीसगढ़ के किसी युवा ने यह सदियों पुराना लोकगीत गाया हो और किसी सहायक के माध्यम से यह गेंदा फूल ससुराल पहुंच गया। बहरहाल, ‘पार्टनर्स इन क्राइम’ नामक वृत्तचित्र से मौलिकता के मुद्दे पर नए सिरे से बात की जा सकती है।
संशोधित बिल गीतकार और संगीतकार तथा उनकी आगामी पीढ़ियों को रॉयल्टी का अधिकार देता है, जैसा कि पश्चिम के देशों में है, जहां गीत फिल्मों में नहीं होते वरन उनका अपना बाजार ही अलग है। भारत में फिल्म गीत के निर्माण में फिल्मकार का भी योगदान होता है। अनेक हिट मुखड़े फिल्मकारों ने बनाए हैं। फिल्म का छायांकन और प्रचार भी बहुत कुछ निर्भर करता है। ‘मुन्नी’ सचमुच में सफल थी, परंतु उसी की तर्ज पर ‘शीला’ की सफलता बाजार और प्रचार की ताकतों ने गढ़ी है। फिल्म संगीत बेचने वाली सारी कंपनियों का कैरेक्टर ढीला है।
यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि व्यवस्था में मौजूद सड़ांध को बुहारने के नाम पर विविध मुखौटे लगाकर कितनी मासूमियत से संविधान को तोड़ने की साजिश हो रही है। संविधान से ऊपर कुछ शक्तियों के ठिए बनाने का प्रयास हो रहा है, गोयाकि महान बाबा आंबेडकर रचित संविधान की अवहेलना की जा रही है। इसी समय परोमिता वोहरा ने संगीत क्षेत्र में अराजकता की बात उठाई है।
परोमिता ने ‘मुन्नी गीत’ के उद्गम तक जाने का प्रयास किया है। ‘दबंग’ के प्रदर्शन के समय इस गीत को पाकिस्तान के लोकगीत की नकल बताया जा रहा था, परंतु वोहरा ने दावा प्रस्तुत किया है कि यह मध्यप्रदेश में जन्मा गीत है। 1970 में रजिया बेगम नामक लोक गायिका ने अनेक मंचों पर प्रस्तुत किया ‘लौंडा बदनाम हुआ नसीबन तेरे लिए’ और इसके अनेक भोजपुरी, पाकिस्तानी संस्करण बने।
यहां तक कि हमेशा सोने से लदे रहने वाले महान बप्पी लहरी ने भी एक गीत रचा और ‘दबंग’ के दिनों स्वयं को इस गीत का मौलिक रचियता भी बताने के प्रयास किए। वोहरा ने यह भी खोजा है कि नौटंकी कलाकार रामपत और रानी बाला ने इस शरारती मुन्नी का एक पूरी तरह अश्लील संस्करण भी रचा है, जो गांवों और कस्बों में बिना झिझक रस लेकर सुनाया गया है।
‘दबंग’ के इस गीत के बोल लिखने का श्रेय फिल्म के निर्देशक अभिनव कश्यप ने लिया है और ललित (जतिन-ललित टीम के छिटके हुए सदस्य) ने धुन बनाने के लिए नाम और दाम कमाए हैं। मूल सृजनकर्ता रजिया बेगम को न कोई श्रेय मिला और न ही कानी कौड़ी मिली है। इसी को सामने रखकर परोमिता वोहरा ने क्रिएटिविटी और कॉपीराइट की बात प्रस्तुत की है।
20 फरवरी 2009 को राकेश मेहरा की ‘दिल्ली 6’ नामक फिल्म प्रदर्शित हुई। इसमें प्रसून जोशी का लिखा और एआर रहमान के संगीत से सजा गीत ‘ससुराल गेंदा फूल’ बहुत लोकप्रिय हुआ था और विगत कई महीनों से इसी नाम का पारिवारिक सीरियल भी दिखाया जा रहा है। 21 फरवरी 2009 को इसी कॉलम में लिखा गया था, यह सचमुच आश्चर्य की बात है कि फिल्म में छत्तीसगढ़ के कवि गंगाराम तिवारी और संगीतकार भुलावाराम यादव की रचना ‘सास गारी देवे, ननद मुहा लेवे देवर बाबू मोर’ गीत के बोल और धुन में थोड़ा-सा फेरबदल किया गया है। इसमें छत्तीसगढ़ के महान लोकगीत का इस्तेमाल किया गया है और मूल लेखक, संगीतकार और गायिकाएं जोशी बहनों का नाम क्रेडिट में नहीं दिया गया है। जोशी बहनों ने रायपुर आकाशवाणी के लिए 1970 में इसे रिकॉर्ड किया था।
यह संभव है कि रहमान की संगीत प्रशिक्षण संस्था में छत्तीसगढ़ के किसी युवा ने यह सदियों पुराना लोकगीत गाया हो और किसी सहायक के माध्यम से यह गेंदा फूल ससुराल पहुंच गया। बहरहाल, ‘पार्टनर्स इन क्राइम’ नामक वृत्तचित्र से मौलिकता के मुद्दे पर नए सिरे से बात की जा सकती है।
संशोधित बिल गीतकार और संगीतकार तथा उनकी आगामी पीढ़ियों को रॉयल्टी का अधिकार देता है, जैसा कि पश्चिम के देशों में है, जहां गीत फिल्मों में नहीं होते वरन उनका अपना बाजार ही अलग है। भारत में फिल्म गीत के निर्माण में फिल्मकार का भी योगदान होता है। अनेक हिट मुखड़े फिल्मकारों ने बनाए हैं। फिल्म का छायांकन और प्रचार भी बहुत कुछ निर्भर करता है। ‘मुन्नी’ सचमुच में सफल थी, परंतु उसी की तर्ज पर ‘शीला’ की सफलता बाजार और प्रचार की ताकतों ने गढ़ी है। फिल्म संगीत बेचने वाली सारी कंपनियों का कैरेक्टर ढीला है।
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