Source: भास्कर न्यूज नेट
कैलिफोर्निया 43 साल के डेनियल किश पूरी तरह नेत्रहीन हैं। जब वे 13 महीने के थे, तब रेटिनोब्लास्टोमा नामक बीमारी के कारण उनकी आंखें निकाल ली गई थीं। बावजूद इसके किश साइकिल चलाने से लेकर वे तमाम काम कर लेते हैं, जो दृष्टिहीनों के लिए असंभव माने जाते हैं। दरअसल, वे डॉल्फिन और चमगादड़ों की तरह प्रतिध्वनि की तकनीक का प्रयोग करते हैं।
वे अपने मुंह से टिकटिकटिक जैसी आवाज निकालते हैं, जो इमारत, कुर्सी, पेड़ या किसी भी अन्य चीज से टकराकर वापस लौटती हैं, तो उनके मस्तिष्क में पूरा दृश्य बन जाता है। यह तकनीक ‘इकोलोकेशन’ कहलाती है। पेशे से मनोवैज्ञानिक, डेनियल की इस क्षमता के बारे में हाल में यूनि. ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो के शोधकर्ताओं ने जांच की और वे यह जानकर हैरान रह गए, जब डेनियल प्रतिध्वनि को सुनते हैं, तो उनके मस्तिष्क में श्रवण की बजाय दृष्टि से संबंधित हिस्सा सक्रिय रहता है। दूसरे शब्दों में, वे कानों से बखूबी ‘देखते’ हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, मस्तिष्क की इस अद्भुत गतिविधि का कारण फिलहाल अज्ञात है, लेकिन डेनियल का मानना है कि हर दृष्टिहीन इस तकनीक का प्रयोग कर दुनिया देख सकता है।
‘वर्ल्ड एक्सेस फॉर द ब्लाइंड’ नामक समाजसेवी संस्था के अध्यक्ष के तौर पर वे प्रशिक्षण देने के लिए काफी देशों में जा चुके हैं। मई 2008 में भारत भी आए थे और कोलकाता में वर्कशॉप में दृष्टिहीनों को इसका प्रशिक्षण दिया था। इकोलोकेशन तकनीक विदेशी दृष्टिबाधितों, खासतौर पर ब्रिटिश लोगों के बीच काफी प्रचलित है।
वे अपने मुंह से टिकटिकटिक जैसी आवाज निकालते हैं, जो इमारत, कुर्सी, पेड़ या किसी भी अन्य चीज से टकराकर वापस लौटती हैं, तो उनके मस्तिष्क में पूरा दृश्य बन जाता है। यह तकनीक ‘इकोलोकेशन’ कहलाती है। पेशे से मनोवैज्ञानिक, डेनियल की इस क्षमता के बारे में हाल में यूनि. ऑफ वेस्टर्न ओंटारियो के शोधकर्ताओं ने जांच की और वे यह जानकर हैरान रह गए, जब डेनियल प्रतिध्वनि को सुनते हैं, तो उनके मस्तिष्क में श्रवण की बजाय दृष्टि से संबंधित हिस्सा सक्रिय रहता है। दूसरे शब्दों में, वे कानों से बखूबी ‘देखते’ हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार, मस्तिष्क की इस अद्भुत गतिविधि का कारण फिलहाल अज्ञात है, लेकिन डेनियल का मानना है कि हर दृष्टिहीन इस तकनीक का प्रयोग कर दुनिया देख सकता है।
‘वर्ल्ड एक्सेस फॉर द ब्लाइंड’ नामक समाजसेवी संस्था के अध्यक्ष के तौर पर वे प्रशिक्षण देने के लिए काफी देशों में जा चुके हैं। मई 2008 में भारत भी आए थे और कोलकाता में वर्कशॉप में दृष्टिहीनों को इसका प्रशिक्षण दिया था। इकोलोकेशन तकनीक विदेशी दृष्टिबाधितों, खासतौर पर ब्रिटिश लोगों के बीच काफी प्रचलित है।
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