Saturday 28 May 2011

इन पांच रचनाओं ने हर दौर को अपना कायल बना लिया



साहित्य और सिनेमा के बारे में अक्सर ये बात कही जाती है कि हम जिस लायक होते हैं हमें उसी स्तर का साहित्य और सिनेमा देखने को मिलता है। आज भारतीय सिनेमा दुनिया की सबसे बड़ी फिल्म इंडस्ट्री है जहां हर साल औसतन एक हजार फिल्में बनती हैं।





इस श्रृंखला में हम आपको भारतीय सिने जगत की ऐसी दस फिल्मों से रूबरू कराने जा रहे हैं जिन्होने न सिर्फ उस दौर को आइना दिखाने का क ाम किया है बल्कि, भारतीय सिनेमा को वह बुलंदी दी जिसने आने वाले दौर के फिल्म निर्माताओं के सामने आदर्श का काम किया। पेश है ऐसी ही पांच फिल्मों की झलकियां.....
प्यासा (1957) : यह फिल्म 19 फरवरी 1957 को रिलीज हुई। गुरू दत्त, वहिदा रहमान, माला सिन्हा और जॉनी वॉकर अभिनीत इस फिल्म के निर्माता और निर्देशक खुद गुरू दत्त ही थे। यह फिल्म एक असफल और मजबूर लेखक की कहानी को बयां करती है।
मदर इंडिया (१९५७) : साहूकार के चंगुल में फंसे एक परिवार की दिल छू लेने वाली इस कहानी को फिल्म के निर्माता-निर्देशक महबूब खान ने खुद ही लिखा था। नरगिस, सुनील दत्त, राजेंद्र कुमार और राज कु मार अभिनीत यह फिल्म 25 अक्टूबर 1957 को रिलीज की गई।
जागते रहो (१९५६) : गांव से काम की तलाश में गांव से शहर आए एक किसान की मजबूरी और शहर के तथाकथित बड़े लोगों के जीवन के छुपे हुए पहलुओं को उजागर करने वाली इस फिल्म में राज कपूर ने मुख्य भूमिका अदा की थी।

दो बीघा जमीन (१९५३) : एक किसान की दो बीघा जमीन पर साहूकार की बुरी नजर और उसे बचाने के लिए एक गरीब किसान के संघर्ष को बयां करने वाली इस फिल्म की कहानी सलिल चौधरी ने लिखी थी। फिल्म के निर्माता-निर्देशन बिमल रॉय थे जबकि इस फिल्म में बलराजी साहनी, निरूपा राव, जगदीप, मीना कुमारी और रतन कुमार ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थीं।
नया दौर (१९५७) : आजादी के बाद आए औद्योगीकरण और उससे गरीब खासतौर तांगेवालों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव को दिखाने वाली इस फिल्म में दिलीप कुमार, वैजयंतीमाला और जीवन ने मुख्य भूमिकाएं निभाई थी। फिल्म का निर्माण और निर्देशन बी आर चोपड़ा ने किया था।

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