Tuesday 17 May 2011

सितारा तिकड़ियों का जमावड़ा


विगत अनेक दशकों में प्राय: फिल्म उद्योग में तीन समकालीन सितारों का उदय होता है और उनकी प्रतिद्वंद्विता के कारण उद्योग तीन खेमों में बंट जाता है। अगर ये सितारे एक-दूसरे से टकराना नहीं भी चाहें तो खेमेबाज लोग अपने निहित स्वार्थो के लिए सितारों का अहंकार और अपनी अफवाहों से उन्हें भिड़ाते रहते हैं। उनकी भिड़ंत से ही कुछ चाटुकारों को व्यक्तिगत लाभ होता है। अपने दौर की हसीनाओं के कारण भी कई बार सितारे टकराते हैं।
आजादी के बाद दिलीप कुमार, राज कपूर और देव आनंद की तिकड़ी थी और आपस में घोर प्रतिद्वंद्विता के बावजूद उनमें गहरा मेलजोल था तथा सार्वजनिक मंच पर उनका दोस्ताना देखते बनता था। दिलीप कुमार और राज कपूर दावतों में एक-दूसरे से पश्तो में बात करते और चमचों का मखौल उड़ाते हुए अपनी प्रेमिकाओं का जिक्र करते थे। इसके बाद धर्मेद्र, मनोज कुमार और जीतेंद्र की तिकड़ी आई, परंतु अंतराल वाले समय में राजेंद्र कुमार, सुनील दत्त और शम्मी कपूर रहे।
दरअसल लोकप्रिय तिकड़ियों के कालखंड का कोई सख्त वॉटर टाइट भेद नहीं रह पाता, युवा तिकड़ी के दौर में पुरानी तिकड़ी भी सक्रिय रहती है। देव आनंद तो पीढ़ियों को पार करते हुए आज भी स्वयं को केंद्र में रखकर फिल्म बना रहे हैं, जबकि उनके पहले दो दशकों की फैन्स अब तक दादियां और नानियां बन चुकी हैं और अनेकों की तस्वीरों पर चंदन की माला पड़ चुकी है।
राजेश खन्ना, अमिताभ बच्चन और विनोद खन्ना की तिकड़ी में अपनी विलक्षण अभिनय प्रतिभा के कारण अमिताभ आज भी सक्रिय हैं। राजेश खन्ना धूमकेतु की तरह चढ़े और शीघ्र ही लोप भी हो गए। इस तिकड़ी के दौर में मिट्टीपकड़ ऋषि कपूर ने अपना किला संभाले रखा और आज भी चरित्र भूमिकाओं में उनका जवाब नहीं है। अनिल कपूर, सनी देओल और जैकी श्राफ की तिकड़ी में शरीर को चुस्त नहीं रखने के कारण जैकी लंबी पारी नहीं खेल पाए। इसके बाद आमिर, सलमान और शाहरुख खान आए। यह तिकड़ी बीस वर्ष बाद भी शिखर पर है। नई चुनौती लेकर आए हैं रणबीर कपूर, इमरान खान और ‘बैंड बाजा बारात’ वाले रणवीर सिंह।
हर तिकड़ी के सदस्य अपनी स्वतंत्र शैली का निर्वाह करते रहे हैं और दर्शक भी अपनी पसंद की नुमाइंदगी इनमें खोज लेते हैं। हर तिकड़ी के बाहर हर दशक में कुछ अत्यंत प्रतिभाशाली कलाकार लोकप्रिय रहे हैं, जैसे दिलीप, राज, देव के दौर में बलराज साहनी, अमिताभ वाले दौर में संजीव कुमार और मौजूदा खान दौर में अजय देवगन और ऋतिक रोशन। इसी तरह शशि कपूर भी तीन दशक तक जमे रहे।
गुरुदत्त के फिल्मकार स्वरूप ने कभी उनकी अभिनय क्षमता का सही मूल्यांकन नहीं होने दिया। मनोज कुमार निहायत कमजोर अभिनेता थे, परंतु उनकी लोकप्रिय निर्देशन क्षमता ने उन्हें बचाए रखा। यह आश्चर्यजनक है कि प्राय: तीन ही उभरे, दो या चार नहीं और अधिकांश प्रेम कहानियों में त्रिकोण ही रहा है।
सितारों की इन तिकड़ियों के बीच प्रतिस्पर्धा रही है, परंतु एक दौर में एक-दूसरे के प्रति सम्मान और सद्भाव था, जो हर दौर में क्रमश: घटता गया है और अब एक-दूसरे से भय और नफरत ही रह गई है। समाज के विभिन्न अंगों में भी हम आपसी व्यवहार में भावनाओं का परिवर्तन देखते हैं। आश्चर्य है कि जानकारियों के बढ़ने के साथ भय कम नहीं हो रहा है। ज्ञान निर्भयता प्रदान करता है।

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