ओसामा बिन लादेन का पाकिस्तान के फौजियों के शहर में मारा जाना ऐतिहासिक महत्व की घटना है। नई सदी के शुरुआती दौर में दहशत का प्रतीक ओसामा मारा गया है, परंतु उसकी आतंकी विचारधारा जारी रहेगी और दहशत की नई शक्लें उभरेंगी। विगत वर्ष पूजा और आरती शेट्टी की अभिषेक शर्मा निर्देशित ‘तेरे बिन लादेन’ एक हास्य-व्यंग्य रचना थी।
कुछ अमेरिकोन्मुखी युवा एक मुर्गी के व्यापारी (जिसकी शक्ल लादेन से मिलती है) को केंद्र में रखकर एक खेल खेलते हैं। उस हास्य फिल्म में लादेन का पाकिस्तान में होना बताया गया था। भले ही वह मखौल था, परंतु अफसाने हकीकत में ढलते हैं।
उस फिल्म में अमेरिका के भीतरी डरों को भी उजागर किया था कि किस तरह एक मामूली-सी बात को बिना तार्किक परीक्षण के सच मानकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पहाड़ी इलाकों में अमेरिकी अंधाधुंध बमबारी करते हैं। अमेरिका स्वयं निर्मित ग्रीन हौवे से किस कदर भयभीत है, यह भी फिल्म में दिखाया गया था। साथ ही इसमें पाकिस्तान के अंदरूनी विघटन के भी संकेत थे।
विगत वर्ष की दूसरी फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ थी। इस हास्य-व्यंग्य फिल्म में अमेरिका की गैरजवाबदार निरंकुश नीतियों के कारण आर्थिक मंदी के प्रभावों का अत्यंत मजेदार और सारगर्भित विवरण था। मंदी के कारण रातोंरात दिवालिया हुआ एक मेहनती आप्रवासी भारतीय वर्र्षो में अर्जित संपत्ति खोने पर अपने बाप-दादा की हवेली बेचने स्वदेश आता है और यहां नेताओं और अपराधियों द्वारा चलाए जा रहे अपहरण कारोबार का शिकार हो जाता है।
इस फिल्म में अपहरण व्यवसाय के सरगना मंत्रीजी की भूमिका ‘तारे जमीं पर’ के लेखक अमोल गुप्ते ने अभिनीत की थी। बवासीर से पीड़ित मंत्री की जहालत जाहिर होती है, जब वह टॉयलेट में बवासीर मंत्र का जाप करता है कि फारिग होने में दर्द न हो। बवासीर की पीड़ा और भ्रष्टाचार द्वारा धन अर्जित करने के असीमित लालच को जोड़कर निर्देशक ने बड़ी सारगर्भित बात हास्य के लहजे में प्रस्तुत की थी और वह बेमिसाल अभिनय की मिसाल थी। हास्य की धार देखते बनती है कि आर्थिक मंदी का प्रभाव अपहरण व्यवसाय पर भी पड़ता है।
फिल्म के एक दृश्य में एक अपहरणकर्ता अपने सरगना से कहता है कि अमेरिकी का अपहरण किया गया है, ओबामा कुछ करेगा। दरअसल ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने से एक आशा जगी थी और विगत कुछ समय में अमेरिका में उनकी लोकप्रियता घट गई है। उनकी छवि भी आर्थिक मंदी से धूमिल पड़ गई थी, परंतु ओसामा बिन लादेन का खात्मा उन्हें शिखर पर पहुंचा देगा और उनके अगला चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाएगी।
ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने से उस देश की विश्वसनीयता का जनाजा भी उठ गया है और अब दुर्भाग्यवश वहां आंतरिक विघटन की प्रक्रिया तेज हो सकती है। कुछ टीवी चैनल संकेत दे रहे हैं कि ओबामा की तरह हमारी सरकार को भी दाऊद को पाकिस्तान में मारना चाहिए। यह एक गैरजिम्मेदार रवैया है, क्योंकि इस तरह की हिमाकत को युद्ध माना जाएगा, जबकि अमेरिका के विमान और कुछ सैनिक पाकिस्तान में हमेशा मौजूद रहते हैं।
पाकिस्तान ने सतत सैन्य सहायता लेकर अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता खो दी है। दरअसल पाकिस्तान के आंतरिक विघटन की जड़ में उसका गैरधर्मनिरपेक्ष होना है, जिस कारण वहां कठमुल्ला एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे। हमारी थोड़ी-सी दोषपूर्ण धर्मनिरपेक्षता भी धर्र्माधता से बेहतर है और उसे खंडित करके भारत को पाकिस्तान की तरह बनाने के षड्यंत्र में कुछ लोग शामिल हैं।
कुछ अमेरिकोन्मुखी युवा एक मुर्गी के व्यापारी (जिसकी शक्ल लादेन से मिलती है) को केंद्र में रखकर एक खेल खेलते हैं। उस हास्य फिल्म में लादेन का पाकिस्तान में होना बताया गया था। भले ही वह मखौल था, परंतु अफसाने हकीकत में ढलते हैं।
उस फिल्म में अमेरिका के भीतरी डरों को भी उजागर किया था कि किस तरह एक मामूली-सी बात को बिना तार्किक परीक्षण के सच मानकर अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पहाड़ी इलाकों में अमेरिकी अंधाधुंध बमबारी करते हैं। अमेरिका स्वयं निर्मित ग्रीन हौवे से किस कदर भयभीत है, यह भी फिल्म में दिखाया गया था। साथ ही इसमें पाकिस्तान के अंदरूनी विघटन के भी संकेत थे।
विगत वर्ष की दूसरी फिल्म ‘फंस गए रे ओबामा’ थी। इस हास्य-व्यंग्य फिल्म में अमेरिका की गैरजवाबदार निरंकुश नीतियों के कारण आर्थिक मंदी के प्रभावों का अत्यंत मजेदार और सारगर्भित विवरण था। मंदी के कारण रातोंरात दिवालिया हुआ एक मेहनती आप्रवासी भारतीय वर्र्षो में अर्जित संपत्ति खोने पर अपने बाप-दादा की हवेली बेचने स्वदेश आता है और यहां नेताओं और अपराधियों द्वारा चलाए जा रहे अपहरण कारोबार का शिकार हो जाता है।
इस फिल्म में अपहरण व्यवसाय के सरगना मंत्रीजी की भूमिका ‘तारे जमीं पर’ के लेखक अमोल गुप्ते ने अभिनीत की थी। बवासीर से पीड़ित मंत्री की जहालत जाहिर होती है, जब वह टॉयलेट में बवासीर मंत्र का जाप करता है कि फारिग होने में दर्द न हो। बवासीर की पीड़ा और भ्रष्टाचार द्वारा धन अर्जित करने के असीमित लालच को जोड़कर निर्देशक ने बड़ी सारगर्भित बात हास्य के लहजे में प्रस्तुत की थी और वह बेमिसाल अभिनय की मिसाल थी। हास्य की धार देखते बनती है कि आर्थिक मंदी का प्रभाव अपहरण व्यवसाय पर भी पड़ता है।
फिल्म के एक दृश्य में एक अपहरणकर्ता अपने सरगना से कहता है कि अमेरिकी का अपहरण किया गया है, ओबामा कुछ करेगा। दरअसल ओबामा के राष्ट्रपति चुने जाने से एक आशा जगी थी और विगत कुछ समय में अमेरिका में उनकी लोकप्रियता घट गई है। उनकी छवि भी आर्थिक मंदी से धूमिल पड़ गई थी, परंतु ओसामा बिन लादेन का खात्मा उन्हें शिखर पर पहुंचा देगा और उनके अगला चुनाव जीतने की संभावना बढ़ जाएगी।
ओसामा बिन लादेन के पाकिस्तान में मारे जाने से उस देश की विश्वसनीयता का जनाजा भी उठ गया है और अब दुर्भाग्यवश वहां आंतरिक विघटन की प्रक्रिया तेज हो सकती है। कुछ टीवी चैनल संकेत दे रहे हैं कि ओबामा की तरह हमारी सरकार को भी दाऊद को पाकिस्तान में मारना चाहिए। यह एक गैरजिम्मेदार रवैया है, क्योंकि इस तरह की हिमाकत को युद्ध माना जाएगा, जबकि अमेरिका के विमान और कुछ सैनिक पाकिस्तान में हमेशा मौजूद रहते हैं।
पाकिस्तान ने सतत सैन्य सहायता लेकर अपनी अस्मिता और स्वतंत्रता खो दी है। दरअसल पाकिस्तान के आंतरिक विघटन की जड़ में उसका गैरधर्मनिरपेक्ष होना है, जिस कारण वहां कठमुल्ला एक राजनीतिक शक्ति के रूप में उभरे। हमारी थोड़ी-सी दोषपूर्ण धर्मनिरपेक्षता भी धर्र्माधता से बेहतर है और उसे खंडित करके भारत को पाकिस्तान की तरह बनाने के षड्यंत्र में कुछ लोग शामिल हैं।
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