जैकब ने आत्मकथा में दावा किया कि सैम ने ढाका पर नियंत्रण करने से मना किया था, जबकि वह आपरेशन का मुख्य हिस्सा था। उन्होंने लिखा, मैं हैरान था। मुझे सैम की नीति समझ नही आ रही थी। ढाका पर नियंत्रण कर हम पूरे पूर्वी पाकिस्तान पर नियंत्रण कर सकते थे लेकिन सैम ने ऐसा करने से मना कर दिया।
उन्होंने पाकिस्तानी नौसेना के संदेश को भी प्रसारित करने का आदेश दे दिया जिसे गुप्त रूप से रिकॉर्ड किया गया था। प्रसारण के बाद से पाकिस्तान ने अपना कोड बदल दिया और आगे संदेशों को सुनना मुश्किल हो गया। जैकब ने आगे लिखा, सैम के तत्कालीन चीफ एयर मार्शल पीसी लाल से भी अच्छे संबंध नहीं थे।
उन्होंने बांग्लादेश में पाकिस्तानी पोस्ट पर हवाई हमले की नीति बनाने के लिए लाल से बात करने से इंकार कर दिया था। नंबर चार को भाग्यशाली मानने वाले सैम ने सेना को चार दिसंबर को ही हमला करने का आदेश दे दिया जबकि योजना कुछ और थी। उनका मानना था कि पाकिस्तानी सेना म्यांमार भागने वाली है जबकि यह बात आधारहीन थी।
जैकब ने लिखा है कि मानेक शॉ को केवल ‘यस मैन’ पसंद थे। उन्होंने बताया कि तत्कालीन ईस्टर्न आर्मी कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जेएस अरोड़ा खुद तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सलाहकार डीपी धर को ड्रिंक्स सर्व करते थे।
जैकब के अनुसार मानेक शॉ के तत्कालीन एयर चीफ प्रमुख से भी ठीक संबंध नहीं थे और दोनों के बीच बातचीत भी नहीं होती थी। लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल दीपेंद्र सिंह, जो १९६९ से १९७३ के बीच मानेक शॉ के सहायक रहे, ने कहा कि जैकब में काफी अहम है और उनका मानना है कि युद्ध उन्हीं की वजह से जीता गया। जबकि 1971 में जीत मानेक शॉ की रणनीति के ही कारण मिली थी।
आपका मत
क्या वाकई पूर्व लेफ्टनेंट जनरल जेएफआर जैकब की पुस्तक में लिखी बातों पर यकीन किया जाए कि मानेक शॉ
की रणनीति के कारण भारतीय सेना को कई झटके लगे। क्या वाकई फील्ड मार्शल सैम मानेक शॉ ने १९७१ की जंग में कई रणनीतिक गलतियां की थीं? आप भी दे सकते हैं इस पर अपना मत।
No comments:
Post a Comment