एकता कपूर की अजय देवगन और इमरान हाशमी अभिनीत फिल्म ‘वंस अपॉन ए टाइम इन मुंबई’ कथित तौर पर हाजी मस्तान और दाऊद इब्राहिम के जीवन से प्रेरित है। हालांकि अदालत ने हाजी मस्तान के परिवार के दावे को निरस्त कर दिया है। मीडिया के तंदूर से इस फिल्म के बारे में अनेक गरम-गरम खबरें आ रही हैं।
यह भी एक लोकप्रिय प्रचारित बात रही है कि सलीम-जावेद की लिखी ‘दीवार’ भी हाजी मस्तान से प्रेरित थी। सच्चई यह है कि सलीम-जावेद ने ‘मदर इंडिया’ से मां के पात्र को लिया और दिलीप कुमार की ‘गंगा जमना’ से दो भाइयों के चरित्र लिए और ग्रामीण परिवेश के इन पात्रांे को महानगर में स्थापित किया। लेखकों पर मार्लिन ब्रांडों अभिनीत ‘वॉटरफ्रंट’ का भी गहरा प्रभाव है। इसी कारण नायक डॉक पर काम करने वाला व्यक्ति है।
जिन दिनों ‘दीवार’ का प्रदर्शन हुआ, उन दिनों अपराध सरगना हाजी मस्तान का बहुत दबदबा था। अत: फिल्म के साथ उनका नाम भी जोड़ दिया गया, जबकि सचमुच ऐसा नहीं था। ज्ञातव्य है कि मारियो पूजो और फ्रांसिस फोर्ड कपोला की ‘गॉडफादर’ को भी संगठित अपराध की विश्वसनीय प्रस्तुति करने वाली फिल्म माना जाता है, जबकि फिल्म की सफलता के बाद अमेरिका के अपराधी ‘गॉडफादर’ के पात्रों की तरह कपड़े पहनने लगे और बातचीत तथा व्यवहार में भी नकल करने लगे।
हमारे यहां भी ‘शोले’ की विराट सफलता के बाद डाकुओं ने न केवल जींस पहनना शुरू किया, वरन भाषा और शैली में भी गब्बर सिंह की नकल करने लगे। इतना ही नहीं उत्तरप्रदेश और बिहार के कुछ नेताओं ने भी गब्बर के अंदाजे बयां को रिहर्सल करके अपना लिया। गब्बर के संवाद भारतीय जनजीवन की भाष का हिस्सा बन गए- जो डर गया वो मर गया, अरे ओ सांबा कितने आदमी थे, इत्यादि।
कमसिन उम्र में फिल्में दिलोदिमाग पर छाई रहती हैं।
जब इसी तरह का आदमी अपराध सरगना हो जाता है, तो अपनी ‘ताकत’ का इस्तेमाल करके अपने प्रिय सितारे से मिलता है। ‘डी’ कंपनी के दबदबे के दौर में अनेक सितारों को दुबई जाकर अपराध सरगना से मिलना पड़ा और कुछ ने उनकी महफिल में ‘मुजरा’ तक कर डाला। उनके इशारों पर पूंजी निवेशकों ने फिल्म में धन भी लगाया। अपराध सरगना ने कभी स्वयं अपना धन नहीं लगाया, क्योंकि पूंजी निवेश नहीं, वरन मुनाफे में हिस्सेदारी लेना उन्हें पसंद है।
एक तुकबंदी करने वाले सरगना ने कुछ फिल्मी गीत भी लिख डाले। संगठित अपराध और मुंबइया फिल्म उद्योग के नजदीकी ‘रिश्तों’ की बात असत्य है। उनका रिश्ता तो नेताओं से ज्यादा नजदीकी का रहा है, जिनके प्रश्रय के कारण वे पनपे। सच तो यह है कि संगठित अपराधी आम जनता से हफ्ता वसूल करते हैं और नेता को उनका हिस्सा भेजते हैं। अभिनेता-सरगना के बीच का रिश्ता डर का है और सरगना तथा नेता लूट के भागीदार हैं।
उस दौर में हाजी मस्तान की प्रेमिका सोना नाम की जूनियर कलाकार थी, जिसकी शक्ल मधुबाला से बहुत मिलती थी, परंतु अबू सलेम और मोनिका बेदी की तरह उनके संबंधों का भौंडा प्रदर्शन नहीं हुआ। दाऊद और मंदाकिनी का इश्क भी प्रचारित है। संगठित अपराध के लोग फिल्मी ग्लैमर से प्रभावित रहे हैं और फिल्मी प्रेमिका उनके लिए स्टेटस सिंबल रही हैं। फिल्में अपराधियों के बचपन का कुटैव रही हैं। अत: अपने जीवन से प्रेरित फिल्मों से वे गौरव महसूस करते हैं और बकौल फ्रांसिस फोर्ड कपोला के अनचाहे ही अपराध फिल्में उन्हें महिमामंडित भी करती हैं।
यह भी एक लोकप्रिय प्रचारित बात रही है कि सलीम-जावेद की लिखी ‘दीवार’ भी हाजी मस्तान से प्रेरित थी। सच्चई यह है कि सलीम-जावेद ने ‘मदर इंडिया’ से मां के पात्र को लिया और दिलीप कुमार की ‘गंगा जमना’ से दो भाइयों के चरित्र लिए और ग्रामीण परिवेश के इन पात्रांे को महानगर में स्थापित किया। लेखकों पर मार्लिन ब्रांडों अभिनीत ‘वॉटरफ्रंट’ का भी गहरा प्रभाव है। इसी कारण नायक डॉक पर काम करने वाला व्यक्ति है।
जिन दिनों ‘दीवार’ का प्रदर्शन हुआ, उन दिनों अपराध सरगना हाजी मस्तान का बहुत दबदबा था। अत: फिल्म के साथ उनका नाम भी जोड़ दिया गया, जबकि सचमुच ऐसा नहीं था। ज्ञातव्य है कि मारियो पूजो और फ्रांसिस फोर्ड कपोला की ‘गॉडफादर’ को भी संगठित अपराध की विश्वसनीय प्रस्तुति करने वाली फिल्म माना जाता है, जबकि फिल्म की सफलता के बाद अमेरिका के अपराधी ‘गॉडफादर’ के पात्रों की तरह कपड़े पहनने लगे और बातचीत तथा व्यवहार में भी नकल करने लगे।
हमारे यहां भी ‘शोले’ की विराट सफलता के बाद डाकुओं ने न केवल जींस पहनना शुरू किया, वरन भाषा और शैली में भी गब्बर सिंह की नकल करने लगे। इतना ही नहीं उत्तरप्रदेश और बिहार के कुछ नेताओं ने भी गब्बर के अंदाजे बयां को रिहर्सल करके अपना लिया। गब्बर के संवाद भारतीय जनजीवन की भाष का हिस्सा बन गए- जो डर गया वो मर गया, अरे ओ सांबा कितने आदमी थे, इत्यादि।
कमसिन उम्र में फिल्में दिलोदिमाग पर छाई रहती हैं।
जब इसी तरह का आदमी अपराध सरगना हो जाता है, तो अपनी ‘ताकत’ का इस्तेमाल करके अपने प्रिय सितारे से मिलता है। ‘डी’ कंपनी के दबदबे के दौर में अनेक सितारों को दुबई जाकर अपराध सरगना से मिलना पड़ा और कुछ ने उनकी महफिल में ‘मुजरा’ तक कर डाला। उनके इशारों पर पूंजी निवेशकों ने फिल्म में धन भी लगाया। अपराध सरगना ने कभी स्वयं अपना धन नहीं लगाया, क्योंकि पूंजी निवेश नहीं, वरन मुनाफे में हिस्सेदारी लेना उन्हें पसंद है।
एक तुकबंदी करने वाले सरगना ने कुछ फिल्मी गीत भी लिख डाले। संगठित अपराध और मुंबइया फिल्म उद्योग के नजदीकी ‘रिश्तों’ की बात असत्य है। उनका रिश्ता तो नेताओं से ज्यादा नजदीकी का रहा है, जिनके प्रश्रय के कारण वे पनपे। सच तो यह है कि संगठित अपराधी आम जनता से हफ्ता वसूल करते हैं और नेता को उनका हिस्सा भेजते हैं। अभिनेता-सरगना के बीच का रिश्ता डर का है और सरगना तथा नेता लूट के भागीदार हैं।
उस दौर में हाजी मस्तान की प्रेमिका सोना नाम की जूनियर कलाकार थी, जिसकी शक्ल मधुबाला से बहुत मिलती थी, परंतु अबू सलेम और मोनिका बेदी की तरह उनके संबंधों का भौंडा प्रदर्शन नहीं हुआ। दाऊद और मंदाकिनी का इश्क भी प्रचारित है। संगठित अपराध के लोग फिल्मी ग्लैमर से प्रभावित रहे हैं और फिल्मी प्रेमिका उनके लिए स्टेटस सिंबल रही हैं। फिल्में अपराधियों के बचपन का कुटैव रही हैं। अत: अपने जीवन से प्रेरित फिल्मों से वे गौरव महसूस करते हैं और बकौल फ्रांसिस फोर्ड कपोला के अनचाहे ही अपराध फिल्में उन्हें महिमामंडित भी करती हैं।
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