Thursday, 26 May 2011

मुझको यारो माफ करना मैं नशे में हूं


मुंबई में यह खबर बहुत चटखारे लेकर सुनी-सुनाई और फैलाई जा रही है कि तमाम सुपर सितारों और सफल फिल्मकारों की पत्नियां अलग-अलग दलों में विभाजित हैं और हर दल में अपने मित्रों और निकट के लोगों के साथ नशीली दवाओं का सीमित मात्रा में उपयोग करती हैं। इसके साथ ही अत्यंत कम प्रचलित तथ्य यह भी है कि सितारा खिलाड़ियों और अत्यंत समृद्ध औद्योगिक घरानों की महिलाएं भी सीमित मात्रा में ड्रग्स का उपयोग करती हैं।

कुछ वर्ष पूर्व एक आकलन यह भी प्रकाशित हुआ था कि विगत दो दशकों में भारतीय समाज में शराब पीने वाली महिलाओं का प्रतिशत काफी हद तक बढ़ा है। पहले केवल जनजातियों की महिलाएं ठर्रा पीती थीं और अब तो निहायत ही निम्न आय वर्ग की महिलाएं भी पीती हैं।

गौरतलब यह है कि मध्यम शिक्षित वर्ग की घरलू कार्य में व्यस्त महिलाएं एवं दफ्तरों में नौकरी करने वाली महिलाएं भी शराब का सेवन करने लगी हैं। इसके साथ ही छोटे शहरों और कस्बों से नजदीक के बड़े शहर में उच्च शिक्षा पाने या नौकरी करने वाली युवा लड़कियां कुकुरमुत्ते की तरह उभर आए प्राइवेट महिला छात्रावासों में भी शराब का सेवन करने लगी हैं।

दरअसल समाज में खुलेपन की लहर 1969-70 से ही प्रारंभ हो चुकी थी, जिस वर्ष यह बात सामने आई कि देश में काला धन जायज धन के लगभग बराबर हो चुका है। उसी दौर में कुछ बोल्ड किस्म की पत्रिकाओं के प्रकाशन के साथ ही प्रतिष्ठित प्रकाशनों में भी किसी न किसी बहाने नारी शरीर प्रदर्शन की तस्वीरें प्रकाशित होने लगी थीं। क्या समाज में पनपे काले धन का सामाजिक जीवन में खुलेपन की लहर से सीधा संबंध है? यह सही नहीं हो सकता क्योंकि जिन देशों में भ्रष्टाचार और उससे जन्मा काला धन अत्यंत कम है, वहां भी जीवन में खुलापन रहा है।

विक्टोरियन मूल्यों का चश्मा कब का तड़क चुका है और पश्चिम में इसको अभिव्यक्ति और जीवन की स्वतंत्रता के साथ जोड़ा गया है। हमारे यहां स्वतंत्रता सीमित और चुनिंदा लोगों को ही उपलब्ध रही है। दरअसल उन्मुक्त जीवन की चाह स्वाभाविक और सार्वभौमिक है।

सारे सामाजिक नियम, पूर्वग्रह, कुंठाएं एवं वर्जनाओं का निर्धारण मनुष्य की आर्थिक स्थिति ही करती रही है। राजिंदर सिंह बेदी का महान उपन्यास ‘एक चादर मैली सी’ जीवनयापन के कारण एक मानवीय रिश्ते में परिवर्तन की कहानी है कि किस तरह एक विधवा को अपने बच्चे समान देवर से विवाह करना पड़ता है क्योंकि सीमित आय में दो परिवारों का गुजारा संभव नहीं है। नैतिकता या उसके नाम पर रची छद्म नैतिकता आर्थिक जरूरतों के सामने अत्यंत लचीली और परिवर्तनशील हो जाती है। नैतिकता का स्थान केवल गरीब आदमी के लिए है और समर्थ के सामने यह मोम हो जाती है।

बहरहाल सितारों की पत्नियों का जीवन सचमुच कष्टप्रद है, क्योंकि पति न केवल व्यस्त है वरन फुर्सत के क्षणों में भी वह चमचों से घिरा रहता है और उसे अपनी प्रशंसा के समूह गीत ही पसंद हैं। वह सत्य का एक सुर भी सहन नहीं कर सकता। अपने जीवन की ऊब को कम करने के लिए नशीले पदार्थ का सेवन शायद किया जाता है और जीवन के यथार्थ से पलायन की इच्छा अनेक लोगों को होती है। ड्रग्स के सेवन से कुछ समय तक व्यक्ति स्वयं ही सुपर सितारा हो जाता है।

No comments:

Post a Comment