रजनीकांत के अस्पताल में भर्ती होते ही उनके असंख्य प्रशंसकों ने उनके लिए पूजा, हवन, प्रार्थना करनी शुरू कर दी। कुछ ऐसे ही नजारे उस समय देखने को मिले थे, जब ‘कुली’ की शूटिंग के दौरान गंभीर रूप से घायल होने के बाद अमिताभ बच्चन अस्पताल में जिंदगी के लिए जूझ रहे थे। यह भारतीय मन अत्यंत भावुक और भीरू है, जो अनास्था के दौर में आस्था के नए ठौर-ठिकाने खोजता रहता है, क्योंकि जीवन के विरोधाभासों, विसंगतियों और अस्थिरता के दौर को वह तर्क से नहीं समझ पाता। दरअसल वह तर्क से भयाक्रांत भी है।
यह गौरतलब है कि आज देश में एक भी राजनीतिक नेता या कद्दावर साहित्यकार नहीं है, जिसके अस्वस्थ होने पर अवाम पूजा और प्रार्थना में जुट जाए। पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के अस्वस्थ होने के समय भी असंख्य लोगों ने पूजा और प्रार्थना की थी। आम आदमी चमत्कार के प्रति आकर्षित होता है या फिर वह आदर देता है, उस व्यक्ति को जो अनेक लोगों की सहायता को हमेशा तत्पर रहता है। स्वार्थ केंद्रित नेता जमात के प्रति कैसे आदर पैदा हो सकता है?
रजनीकांत कोई अभूतपूर्व प्रतिभा वाले कलाकार नहीं हैं और न ही देखने में पारंपरिक रूप से उन्हें सुंदर कहा जा सकता है, परंतु उनकी स्क्रीन छवि अत्यंत चतुराई से गढ़ी गई है और यथार्थ जीवन में आम मजबूर और बीमार की सहायता वह निरंतर करते रहे हैं। वह एकमात्र अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने प्रशंसकों के सामने अपना विग उतारा और गंजेपन पर उन्हें कोई खेद नहीं है। व्यक्तित्व में ईमानदारी का एक प्रयास भी आम आदमी का दिल जीत लेता है।
दर्शक से भावात्मक तादात्म्य बनाने का कोई फॉमरूला नहीं है। दिल से निकली बात दिल तक जाने कैसे पहुंच जाती है।
लोकप्रियता का रसायन समझा नहीं जा सकता। यह बात जरूर उभरकर आती है कि दूसरों का दर्द किसी-किसी को भीतर से द्रवित कर देता है और उसे दूर करने की छोटी-सी कोशिश भी एक रहस्यमय संवाद को जन्म देती है। रजनीकांत द्वारा अभिनीत सारे चरित्र लाउड हैं, परंतु उनमें ईमानदारी का एक अंश है और सारे अतिरेक के ताम-झाम के बीच वह अंश चमकता है। इसी अंश को उनके यथार्थ जीवन में आम आदमी देख लेता है और इसी अंश के सेतु पर स्क्रीन छवि और व्यक्ति मिलते हैं।
यह लोकप्रियता के रसायन के उजागर से नियम हैं, परंतु सतह के भीतर अनेक बातें प्रवाहित रहती हैं। जीवन में आस्था की तलाश अनेक कमजोरियों, कुरीतियों और अंधविश्वास को भी जगाती है और धूर्त लोग इसी का शोषण कर लेते हैं। आदमी के लिए रची गई व्यवस्था इतनी क्रूर और निरंकुश बन जाती है कि व्यवस्था के लिए आदमी को ही तोड़ दिया जाता है। अनेक लोकप्रिय और सफल लोग अंधविश्वास को पालते हैं। हमारे क्रिकेट के धनाढ्य सितारे भी अंधविश्वासी हैं।
लोकप्रियता और प्रेम का रसायन एक-सा रहस्यमय है और दोनों के बीच दिल की धड़कन महत्वपूर्ण सूत्र है। हाल ही में विज्ञापन की दुनिया में सृजन का काम करने वाली अनुजा चौहान ने ‘द जोया फैक्टर’ नामक किताब में क्रिकेट सितारों के अंधविश्वास और कमजोरियों का विवरण देते हुए एक अच्छी प्रेम-कथा रची है। इस मनोरंजक किताब पर फिल्म की संभावनाएं कुछ फिल्मकार खोज रहे हैं।
यह गौरतलब है कि आज देश में एक भी राजनीतिक नेता या कद्दावर साहित्यकार नहीं है, जिसके अस्वस्थ होने पर अवाम पूजा और प्रार्थना में जुट जाए। पुट्टपर्थी के सत्य साईं बाबा के अस्वस्थ होने के समय भी असंख्य लोगों ने पूजा और प्रार्थना की थी। आम आदमी चमत्कार के प्रति आकर्षित होता है या फिर वह आदर देता है, उस व्यक्ति को जो अनेक लोगों की सहायता को हमेशा तत्पर रहता है। स्वार्थ केंद्रित नेता जमात के प्रति कैसे आदर पैदा हो सकता है?
रजनीकांत कोई अभूतपूर्व प्रतिभा वाले कलाकार नहीं हैं और न ही देखने में पारंपरिक रूप से उन्हें सुंदर कहा जा सकता है, परंतु उनकी स्क्रीन छवि अत्यंत चतुराई से गढ़ी गई है और यथार्थ जीवन में आम मजबूर और बीमार की सहायता वह निरंतर करते रहे हैं। वह एकमात्र अभिनेता हैं, जिन्होंने अपने प्रशंसकों के सामने अपना विग उतारा और गंजेपन पर उन्हें कोई खेद नहीं है। व्यक्तित्व में ईमानदारी का एक प्रयास भी आम आदमी का दिल जीत लेता है।
दर्शक से भावात्मक तादात्म्य बनाने का कोई फॉमरूला नहीं है। दिल से निकली बात दिल तक जाने कैसे पहुंच जाती है।
लोकप्रियता का रसायन समझा नहीं जा सकता। यह बात जरूर उभरकर आती है कि दूसरों का दर्द किसी-किसी को भीतर से द्रवित कर देता है और उसे दूर करने की छोटी-सी कोशिश भी एक रहस्यमय संवाद को जन्म देती है। रजनीकांत द्वारा अभिनीत सारे चरित्र लाउड हैं, परंतु उनमें ईमानदारी का एक अंश है और सारे अतिरेक के ताम-झाम के बीच वह अंश चमकता है। इसी अंश को उनके यथार्थ जीवन में आम आदमी देख लेता है और इसी अंश के सेतु पर स्क्रीन छवि और व्यक्ति मिलते हैं।
यह लोकप्रियता के रसायन के उजागर से नियम हैं, परंतु सतह के भीतर अनेक बातें प्रवाहित रहती हैं। जीवन में आस्था की तलाश अनेक कमजोरियों, कुरीतियों और अंधविश्वास को भी जगाती है और धूर्त लोग इसी का शोषण कर लेते हैं। आदमी के लिए रची गई व्यवस्था इतनी क्रूर और निरंकुश बन जाती है कि व्यवस्था के लिए आदमी को ही तोड़ दिया जाता है। अनेक लोकप्रिय और सफल लोग अंधविश्वास को पालते हैं। हमारे क्रिकेट के धनाढ्य सितारे भी अंधविश्वासी हैं।
लोकप्रियता और प्रेम का रसायन एक-सा रहस्यमय है और दोनों के बीच दिल की धड़कन महत्वपूर्ण सूत्र है। हाल ही में विज्ञापन की दुनिया में सृजन का काम करने वाली अनुजा चौहान ने ‘द जोया फैक्टर’ नामक किताब में क्रिकेट सितारों के अंधविश्वास और कमजोरियों का विवरण देते हुए एक अच्छी प्रेम-कथा रची है। इस मनोरंजक किताब पर फिल्म की संभावनाएं कुछ फिल्मकार खोज रहे हैं।
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