Tuesday, 24 May 2011

गाय कन्याएं और भारतीय लोग


आमिर खान की इमरान खान अभिनीत फिल्म ‘देल्ही बैली’ में पूर्णा जगन्नाथन नामक भारतीय मूल की अमेरिकी टेलीविजन अभिनेत्री ने नायिका की भूमिका निभाई है। पूर्णा के पिता भारतीय विदेश सेवा में कार्यरत रहे, अत: उन्हें ब्राजील, आयरलैंड, अर्ज्ेटीना, पाकिस्तान इत्यादि देशों में रहने का अनुभव है और अभिनय के साथ ही वह अपनी सलाहकार कंपनी ‘काऊगल्र्स एंड इंडियंस’ भी चलाती हैं।

यह संभव है कि पूर्णा भारत से अधिक समय विदेशों में रही हों, जिसका प्रभाव उनके व्यक्तित्व पर भी अवश्य पड़ा होगा। उनके द्वारा अपनी कंपनी के नाम चयन से कुछ अनुमान लगाया जा सकता है, जिसका अनुवाद होगा- ‘गाय कन्याएं और भारतीय’।

महानगरों के वाचाल लोग बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान और मध्य प्रदेश के इलाके को हिकारत से काऊ बेल्ट अर्थात गैया क्षेत्र कहते हैं और डॉलर सिनेमा के छोटे से प्रभाव काल में दंभी फिल्मकार भी गाय क्षेत्र के दर्शकों को हिकारत से ही देखते थे, परंतु ‘गजनी’, ‘वांटेड’ और ‘दबंग’ की विराट व्यावसायिक सफलता और उसमें एकल सिनेमाघरों के योगदान से वे चकित और शर्मसार हैं।

दरअसल यह दृष्टिकोण अपनी छद्म आधुनिकता का दंभ है और संघर्षरत उभरते लोगों का अपमान भी है। उन्हें जिस महानगरीय प्रगति का दंभ है, वह कितनी खोखली है, यह जानने के लिए उन्हें चीन के संपूर्णत: विकसित बीजिंग से दूरदराज बसे क्षेत्रों को देखना चाहिए या उसकी जानकारी हासिल करनी चाहिए।

बहरहाल, पूर्णा मुंबइया फिल्म उद्योग की पारंपरिक सितारा नायिकाओं की तरह नहीं हैं। इस उद्योग में कमसिन उम्र की लड़कियां प्रवेश करती हैं, परंतु पूर्णा पूर्णत: वयस्क हैं और वयस्क फिल्म से ही प्रारंभ कर रही हैं। इस क्षेत्र में कम उम्र अधिक पूंजी मानी जाती है, परंतु पूर्णा संभवत: प्रतिभा की पूंजी पर निवेश या कहें कि प्रवेश कर रही हैं।

आमिर खान ने सेंसर बोर्ड के समक्ष वयस्क फिल्म के प्रमाण पत्र के लिए आवेदन किया, जबकि अमूमन फिल्म निर्माता आपत्तियां उठने पर इस तरह का प्रमाण पत्र मजबूरी में स्वीकार करते हैं क्योंकि इनका सैटेलाइट प्रदर्शन देर रात होने के कारण कम धन प्राप्त होता है।

आमिर की फिल्म में सेक्स इत्यादि के दृश्य नहीं हैं, परंतु वयस्क प्रमाण पत्र उन्होंने संवादों में अपशब्दों के इस्तेमाल के कारण मांगा है। आजकल रोजमर्रा के जीवन में अपशब्दों का इस्तेमाल बहुत होता है और गौरतलब यह है कि अंग्रेजी में बोले अपशब्दों पर उतनी आपत्ति नहीं ली जाती, जितनी हिंदुस्तानी भाषा में दी गई गालियों पर ली जाती है।

आजकल भद्रलोक की प्रकाशन संस्थाओं द्वारा प्रकाशित अंग्रेजी भाषा की किताबों में पात्र प्राय: अपशब्द जड़ित भाषा में बात करते हैं। कुछ अंग्रेजी भाषा में लिखी किताबों में प्रचुर मात्रा में हिंदी शब्दों का इस्तेमाल हो रहा है। उसी तरह हिंदी भाषा के अखबारों में न केवल अंग्रेजी के शब्दों का इस्तेमाल होता है, वरन एक या दो पृष्ठ भी अंग्रेजी में होते हैं।

गोयाकि इस अभिव्यक्ति के अधिकतम दौर में भाषाएं गलबहियां करती नजर आ रही हैं और उन्होंने छद्म शास्त्रीयता के कौमार्य को तिलांजलि दे दी है। गौरतलब यह है कि इस कालखंड में अनेक क्षेत्रों में लोग पूर्वनिर्धारित परिभाषाओं से परे जा रहे हैं और कुछ धारणाओं के टांके उधड़ गए हैं, सिलाई की जगह ही नष्ट हो रही है।

यह शरारत और गुदगुदी का दौर है। बहरहाल, ‘देल्ही बैली’ की कथा की जानकारी नहीं है, परंतु फिल्म के नाम के चयन में शायद अनचाहे ही एक व्यंग्य आ गया है। देश की राजधानी का पेट विराट है, दिल और दिमाग से ज्यादा खाने पर जोर है। राष्ट्रीय अपच का द्योतक हो गया है यह टाइटिल।

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