Tuesday 17 May 2011

बंद किए जिस्म के दरवाजे हसरत की एक खिड़की..

रहमान, गुरुदत्त और देव आनंद प्रभात स्टूडियो पूना से जुड़े थे और उन्होंने एक साथ रहकर संघर्ष किया तथा सपने देखे। लाहौर में 23 जून, 1923 को जन्मे रहमान जाने कैसे जबलपुर और इंदौर में कुछ समय रहकर 1944 में बनी फिल्म ‘चांद’ में अभिनय का अवसर पा गए। 1949 में बनी उनकी फिल्म ‘बड़ी बहन’ सफल रही।

देव आनंद ने अपने वादे के अनुसार सितारा बनते ही गुरुदत्त को निर्देशन का अवसर दिया। वहीं, गुरुदत्त ने रहमान को ‘प्यासा’, ‘साहब बीवी और गुलाम’ तथा ‘चौदहवी का चांद’ में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिकाएं दीं। रहमान को समालोचकों तथा आम दर्शक ने खूब सराहा। रमेश सहगल की ‘क्राइम एंड पनिशमेंट’ से प्रेरित, राज कपूर अभिनीत ‘फिर सुबह होगी’ में रहमान की समानांतर भूमिका थी तथा उसमें एक मजेदार कव्वाली- ‘उस यार से तौबा..’ पर कदम से कदम मिलाकर राज कपूर के साथ उन्होंने ठुमके भी लगाए।

‘साहब बीवी और गुलाम’ में नित्य कोठे पर जाने वाला अय्याश जमींदार पत्नी से कहता है कि हवेली की दूसरी पत्नियों की तरह गहने बनवाओ और तुड़वाओ, तब विद्रोहिणी कहती है- ‘जो दूसरी पत्नियों के पास है, क्या वह तुमने मुझे दिया?’ उसका तात्पर्य बच्चों से था, साथ ही संकेत पति की नामर्दगी की तरफ था। रहमान के चेहरे पर हताशा देखते ही बनती है। वे अद्भुत अभिनेता थे। मर्दानगी का अभिनय आसान है। बहरहाल, इस प्रतिभाशाली इंसान और अद्भुत अभिनेता को मात्र पचपन साल की उम्र में ही कैंसर हो गया।

सलीम साहब ने बताया कि जब वे उनसे मिलने गए, तो रहमान ने आग्रह किया कि हमेशा की तरह आज भी उन्हें शराब पीना चाहिए। उन्होंने अपने गले में फनेल डाला और उसमें शराब बूंद-बूंद कर डाली। मुंह का कैंसर था, जिसकी वजह से गले में छेद कर नली के द्वारा उन्हें पीने भर की चीजें दी जाती थीं।

रहमान ने उन्हें बताया कि वे इस बीमारी के कारण अपनी जीवनशैली नहीं बदलेंगे और मौत को प्यार से गले लगाएंगे। उनके मिजाज में सामंतवादी ठसक के साथ, मासूम सा सनकीपन शामिल था। ‘दिल जिनका जवां है, वो सदा इश्क करेंगे।’

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