Monday 23 May 2011

सिनेमाई गुमशुदा सपने


खबर है कि ‘युवराज’ के हादसे को पूरी तरह भुलाकर सलमान खान ने सुभाष घई की प्रस्तावित फिल्म करने का मन बना लिया है। कई वर्ष पूर्व सुभाष घई दिलीप कुमार के साथ ‘मदरलैंड’ नामक फिल्म बनाने वाले थे और उन्होंने शाहरुख खान के साथ ‘शिखर’ नामक फिल्म की भी घोषणा की थी, जिसके लिए एआर रहमान और आनंद बक्षी ने गीत भी बनाए थे। सुभाष घई ने बयान दिया है कि सलमान खान के साथ बनाई जाने वाली फिल्म का ‘मदरलैंड’ और

‘शिखर’ से कुछ लेना-देना नहीं है। यह नई पटकथा है। एक दौर में सुभाष घई ने अमिताभ बच्चन के साथ ‘देवा’ नामक फिल्म की अट्ठाइस दिन तक शूटिंग करने के बाद फिल्म को निरस्त करके उसमें नष्ट हुए धन के भार के साथ 9 महीने में ‘राम लखन’ बना ली थी। उस समय तक अनिल कपूर और जैकी श्रॉफ बड़े सितारे नहीं थे। इस भव्य ‘देवा’ के मुहूर्त पर ही रणधीर कपूर ने आशंका जताई थी कि घई और बच्चन के अहंकार टकराएंगे और संभवत: फिल्म नहीं बन पाए।

बहरहाल फिल्म उद्योग में कई प्रस्तावित फिल्में नहीं बन परई और उनकी कथा के बारे में कभी कोई बात प्रकाशित नहीं हुई। हमारे यहां बनी या अधबनी या निरस्त फिल्मों की पटकथा के प्रकाशन की कोई परंपरा नहीं है, जबकि हॉलीवुड में यह होता रहा है। दरअसल प्रकाशन व्यवसाय की मजबूरी यह है कि हिंदी का पाठक किताबें खरीदता नहीं है और सारा व्यवसाय संस्थागत बिक्री पर टिका हुआ है।

पहलाज निहलानी ने सनी देओल और ऐश्वर्या राय को लेकर बहुत धूमधाम से ‘इंडियंस’ नामक फिल्म का मुहूर्त किया था और अनिल शर्मा ने ‘महाराजा’ नामक फिल्म की घोषणा की थी। अमिताभ बच्चन ने अपनी निर्माण संस्था के तहत उन दिनों ‘दिल’, ‘बेटा’ इत्यादि की सफलता पर सवार इन्दर कुमार के निर्देशन में आमिर खान और माधुरी अभिनीत ‘रिश्ते’ का मुहूर्त किया था, परंतु फिल्म नहीं बनी। शेखर कपूर की आमिर खान, रेखा और अन्य अनेक सितारों से जड़ी ‘टाइम मशीन’ की दस रीलें बना ली गई थीं, परंतु फिल्म पूरी नहीं हुई और विगत एक दशक में वे कई बार ‘पानी’ की घोषणा कर चुके हैं, परंतु एक बूंद भी अभी तक शूट नहीं हुई है।

पांचवें दशक में राजकपूर नरगिस को लेकर ‘अजंता’ बनाना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने अपने कैमरामैन राधू करमरकर को कलर फोटोग्राफी का ज्ञान अर्जित करने लंदन भी भेजा था। इसी कथा पर कई वर्ष बाद उनके उस समय के सहायक लेख टंडन ने वैजयंती माला अभिनीत ‘आम्रपाली’ बनाई थी, जिसमें शंकर-जयकिशन ने अत्यंत मधुर संगीत दिया था। सलीम खान का कहना है कि शंकर-जयकिशन ‘बरसात’ 1949 से लेकर ‘जोकर’ 1970 तक हमेशा सृजन शिखर पर रहे और उनके कॅरियर में कोई बांझ दौर आया ही नहीं। जयकिशन की अकाल मृत्यु से ही माधुर्य का अनवरत सिलसिला टूटा।

बहरहाल हिंदुस्तानी फिल्म के इतिहास में निरस्त फिल्में और आधी बनी फिल्मों पर अकल्पनीय धन नष्ट हुआ है और यह जानकर नहीं किया गया। सारे सपने सच भी नहीं होते। फिल्म निर्माण में साधन और प्रतिभा दोनों ही लगते हैं और कई बार बहुत छोटी-सी बात के कारण बड़ी-सी फिल्म बन नहीं पाती। प्राय: अहंकार की टकराहट भी अधूरी फिल्मों का कारण रहा है।

कई बार घोषणा के समय का सितारा फिल्म की कुछ रीलों के बनने के समय तक अपनी लोकप्रियता खो देता है और फिल्म आर्थिक रूप से खतरा बन जाती है। इतना ही नहीं, अनेक मधुर गीत के फिल्मांकन के बाद फिल्म के रद्द होने से संगीतकार की रचना का नाश हो जाता है। राजेश खन्ना की स्वयं निर्मित होने वाली कमाल अमरोही निर्देशित ‘मजनून’ में राखी पर फिल्मांकित एक महान रचना नष्ट हो गई। शेखर कपूर की ‘तारा रम पम’ के लिए रहमान के बनाए पांच गीत कोल्ड स्टोरेज में पड़े हैं।

सिनेमा संगीत शोध के पुरोधा पंकज राग ने इस तरह की नष्ट सामग्री की तलाश की, परंतु कुछ भी संभव नहीं हो सका, क्योंकि हमारे निर्माता कभी सजग नहीं रहे, कभी उन्होंने अपनी विरासत नहीं सहेजी। राज कपूर की ‘संगम’ के लिए विएना में फिल्मांकित गीत ‘कभी न कभी कोई न कोई आएगा, सोते भाग जगाएगा’ कहीं भी उपलब्ध नहीं।

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