न्यायशास्त्र का एक बुनियादी नियम है: अपराधी को दिया जाने वाला दंड हमेशा उसके अपराध के अनुरूप होना चाहिए। लेकिन किसी बलात्कारी को उसके अपराध के लिए कारावास की सजा सुना देने से इस नियम की पुष्टि नहीं होती।
तो फिर क्यों न उसे उसके पुरुषत्व से ही वंचित कर दिया जाए, ताकि वह आगे से इस अपराध को दोहरा पाने की स्थिति में ही नहीं रहे। यह सुझाव दिल्ली उच्च न्यायालय का है।
उच्च न्यायालय ने सुझाया है कि इस तरह का कोई कानून लागू करने के बाद बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगाने में काफी मदद मिल सकती है। अब यह किसी संसद सदस्य की जिम्मेदारी है कि वह विधेयक का मसौदा प्रस्तुत करे, ताकि अगले सत्र तक उसे अमल में लाया जा सके।
बहुत संभव है कि इस विधेयक को किसी के भी विरोध का सामना न करना पड़े और सभी पार्टियों द्वारा सर्वसम्मति से इसका समर्थन किया जाए। इससे भी अच्छा यह होगा कि कानून मंत्री ही अपने स्तर पर कुछ पहल करें। इस तरह के कानून से सरकार की प्रतिष्ठा में वृद्धि ही होगी।
मुझे तो कोई संदेह नहीं कि यह कानून लागू होने से बलात्कार की घटनाओं में खासी कमी आएगी। यह उतना ही आवश्यक है, जैसे हत्या के अपराध में मृत्युदंड की सजा सुनाई जाना। वास्तव में नए कानून का असर मृत्युदंड से भी ज्यादा हो सकता है, क्योंकि हकीकत तो यही है कि पुरुष मृत्यु से भी अधिक अपना पुरुषत्व गंवा देने से घबराते हैं!
एक थैरेपी यह भी
हमारे देश के कई लोगों का यह मानना है कि गाय के दूध के साथ ही गोमूत्र का सेवन करना भी हमारी सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है। इसी तरह अरबवासियों का यह मानना है कि ऊंटनी के दूध के साथ ही उसके मूत्र का सेवन करने से कई बीमारियां हवा हो जाती हैं।
अभी तक मुझे इस बारे में पता नहीं था। जब मैंने प्राइवेट आई का नया अंक देखा तो मुझे इस रोचक खोज के बारे में विस्तार से जानकारी मिली।
जेद्दा में किंग फहद मेडिकल रिसर्च सेंटर में हुई एक वार्ता में डॉ फतेन अब्दुर्रहमान खुर्शीद ने इसके बारे में तफसील से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वे ऊंटों के मूत्र पर सात साल से प्रयोग कर रहे थे और अब उन्हें कोई संदेह नहीं है कि कैंसर का इलाज करने में ऊंट का मूत्र प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने जो दवाई तैयार की है, वह ऊंटनी के दूध और मूत्र का मिश्रण है। इस दवाई का सफल परीक्षण ल्यूकेमिया से ग्रस्त चूहों पर किया जा चुका है और अब मनुष्यों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है। कैंसर के साथ ही यह दवाई विटिलिगो, एक्जिमा और सोरियासिस जैसे त्वचा संबंधित रोगों के लिए भी कारगर साबित हो सकती है।
मूत्र के सूक्ष्म घटक कैंसर की कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें सफलतापूर्वक नष्ट कर देते हैं। इस दवाई को विभिन्न स्वरूपों में ग्रहण किया जा सकता है, जैसे सीरप, कैप्सूल, मरहम, साबुन या जैल।
उन्होंने बताया कि परीक्षणों से यह स्पष्ट हुआ है कि ऊंट के मूत्र से किसी भी प्रकार के नुकसानदेह साइड इफेक्ट नहीं होते हैं और इसके सेवन से महज एक माह में ही टच्यूमर के आकार को कम किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि ऊंट के मूत्र का स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होना अरब क्षेत्र में सदियों से प्रचलित एक मान्यता भी है, जो समय के साथ अब वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर भी प्रमाणित हो रही है।
विभिन्न प्रयोगों के बाद एबीसी (अरब बायोटेक्नोलॉजी कंपनी) की साबा जसीम ने यह भी बताया कि ऊंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य प्राणियों की तुलना में कहीं अधिक होती है। ऊंट के मूत्र से निर्मित इस दवाई को यूके पेटेंट ऑफिस से पंजीकृत भी किया जा चुका है।
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का भी यही मानना था कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वमूत्र सेवन किया जाना चाहिए। उनकी इस धारणा के दुनियाभर में कई समर्थक भी हैं। जहां तक मेरा सवाल है तो मेरे लिए इस तरह की तमाम खोजें रोचक जरूर हो सकती हैं, लेकिन वास्तव में किसी भी तरह के मूत्र के सेवन के बारे में विचार करना भी मेरे लिए संभव नहीं है।
सरदार या असरदार
मेरे मित्र और भोपाल के पूर्व अतिरिक्त कलेक्टर ओपी शर्मा ने मुझे एक मजेदार बात बताई। उन्होंने बताया कि किसी भी हिंदी शब्द के आगे ‘अ’ उपसर्ग लगाने से उसका अर्थ नकारात्मक हो जाता है, जैसे : विश्वास का अविश्वास, शांति का अशांति, कुशल का अकुशल, ज्ञान का अज्ञान, शिक्षित का अशिक्षित इत्यादि।
लेकिन सरदार एकमात्र ऐसा शब्द है, जिसके आगे ‘अ’ लगा देने से उसका अर्थ सशक्त और सकारात्मक हो जाता है, क्योंकि ‘अ’ उपसर्ग लगाने के बाद सरदार और असरदार हो जाता है।
बीवी के प्यार से होशियार
रामलाल ने अपने मित्र शामलाल से कहा: ‘मैं बहुत खुशनसीब हूं।’ शामलाल ने उससे पूछा कि उसे यह खुशफहमी क्यों है, तो उसने जवाब दिया: ‘जब भी मैं काम से घर लौटता हूं तो मेरी पत्नी बहुत प्यार से मुझे अपनी बांहों में लेकर मेरा स्वागत करती है।
ऐसे कितने लोग हैं, जिन्हें उनकी पत्नी का इतना प्यार मिल पाता है?’ शामलाल ने सोच-समझकर जवाब दिया: ‘यह तुम्हारी पत्नी का प्यार नहीं, बल्कि उसकी सतर्कता है।
वास्तव में वह यह जांच-पड़ताल कर लेना चाहती है कि कहीं तुम्हारे मुंह से शराब की गंध तो नहीं आ रही है या तुम्हारे शरीर पर कहीं लिपस्टिक का निशान तो नहीं है। लिहाजा, अपनी बीवी के प्यार से होशियार!’
तो फिर क्यों न उसे उसके पुरुषत्व से ही वंचित कर दिया जाए, ताकि वह आगे से इस अपराध को दोहरा पाने की स्थिति में ही नहीं रहे। यह सुझाव दिल्ली उच्च न्यायालय का है।
उच्च न्यायालय ने सुझाया है कि इस तरह का कोई कानून लागू करने के बाद बलात्कार की घटनाओं पर रोक लगाने में काफी मदद मिल सकती है। अब यह किसी संसद सदस्य की जिम्मेदारी है कि वह विधेयक का मसौदा प्रस्तुत करे, ताकि अगले सत्र तक उसे अमल में लाया जा सके।
बहुत संभव है कि इस विधेयक को किसी के भी विरोध का सामना न करना पड़े और सभी पार्टियों द्वारा सर्वसम्मति से इसका समर्थन किया जाए। इससे भी अच्छा यह होगा कि कानून मंत्री ही अपने स्तर पर कुछ पहल करें। इस तरह के कानून से सरकार की प्रतिष्ठा में वृद्धि ही होगी।
मुझे तो कोई संदेह नहीं कि यह कानून लागू होने से बलात्कार की घटनाओं में खासी कमी आएगी। यह उतना ही आवश्यक है, जैसे हत्या के अपराध में मृत्युदंड की सजा सुनाई जाना। वास्तव में नए कानून का असर मृत्युदंड से भी ज्यादा हो सकता है, क्योंकि हकीकत तो यही है कि पुरुष मृत्यु से भी अधिक अपना पुरुषत्व गंवा देने से घबराते हैं!
एक थैरेपी यह भी
हमारे देश के कई लोगों का यह मानना है कि गाय के दूध के साथ ही गोमूत्र का सेवन करना भी हमारी सेहत के लिए फायदेमंद साबित होता है। इसी तरह अरबवासियों का यह मानना है कि ऊंटनी के दूध के साथ ही उसके मूत्र का सेवन करने से कई बीमारियां हवा हो जाती हैं।
अभी तक मुझे इस बारे में पता नहीं था। जब मैंने प्राइवेट आई का नया अंक देखा तो मुझे इस रोचक खोज के बारे में विस्तार से जानकारी मिली।
जेद्दा में किंग फहद मेडिकल रिसर्च सेंटर में हुई एक वार्ता में डॉ फतेन अब्दुर्रहमान खुर्शीद ने इसके बारे में तफसील से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि वे ऊंटों के मूत्र पर सात साल से प्रयोग कर रहे थे और अब उन्हें कोई संदेह नहीं है कि कैंसर का इलाज करने में ऊंट का मूत्र प्रभावी भूमिका निभा सकता है।
उन्होंने जो दवाई तैयार की है, वह ऊंटनी के दूध और मूत्र का मिश्रण है। इस दवाई का सफल परीक्षण ल्यूकेमिया से ग्रस्त चूहों पर किया जा चुका है और अब मनुष्यों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है। कैंसर के साथ ही यह दवाई विटिलिगो, एक्जिमा और सोरियासिस जैसे त्वचा संबंधित रोगों के लिए भी कारगर साबित हो सकती है।
मूत्र के सूक्ष्म घटक कैंसर की कोशिकाओं पर आक्रमण कर उन्हें सफलतापूर्वक नष्ट कर देते हैं। इस दवाई को विभिन्न स्वरूपों में ग्रहण किया जा सकता है, जैसे सीरप, कैप्सूल, मरहम, साबुन या जैल।
उन्होंने बताया कि परीक्षणों से यह स्पष्ट हुआ है कि ऊंट के मूत्र से किसी भी प्रकार के नुकसानदेह साइड इफेक्ट नहीं होते हैं और इसके सेवन से महज एक माह में ही टच्यूमर के आकार को कम किया जा सकता है।
उन्होंने यह भी कहा कि ऊंट के मूत्र का स्वास्थ्य के लिए उपयोगी होना अरब क्षेत्र में सदियों से प्रचलित एक मान्यता भी है, जो समय के साथ अब वैज्ञानिक परीक्षणों के आधार पर भी प्रमाणित हो रही है।
विभिन्न प्रयोगों के बाद एबीसी (अरब बायोटेक्नोलॉजी कंपनी) की साबा जसीम ने यह भी बताया कि ऊंट की रोग प्रतिरोधक क्षमता अन्य प्राणियों की तुलना में कहीं अधिक होती है। ऊंट के मूत्र से निर्मित इस दवाई को यूके पेटेंट ऑफिस से पंजीकृत भी किया जा चुका है।
हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई का भी यही मानना था कि अच्छे स्वास्थ्य के लिए स्वमूत्र सेवन किया जाना चाहिए। उनकी इस धारणा के दुनियाभर में कई समर्थक भी हैं। जहां तक मेरा सवाल है तो मेरे लिए इस तरह की तमाम खोजें रोचक जरूर हो सकती हैं, लेकिन वास्तव में किसी भी तरह के मूत्र के सेवन के बारे में विचार करना भी मेरे लिए संभव नहीं है।
सरदार या असरदार
मेरे मित्र और भोपाल के पूर्व अतिरिक्त कलेक्टर ओपी शर्मा ने मुझे एक मजेदार बात बताई। उन्होंने बताया कि किसी भी हिंदी शब्द के आगे ‘अ’ उपसर्ग लगाने से उसका अर्थ नकारात्मक हो जाता है, जैसे : विश्वास का अविश्वास, शांति का अशांति, कुशल का अकुशल, ज्ञान का अज्ञान, शिक्षित का अशिक्षित इत्यादि।
लेकिन सरदार एकमात्र ऐसा शब्द है, जिसके आगे ‘अ’ लगा देने से उसका अर्थ सशक्त और सकारात्मक हो जाता है, क्योंकि ‘अ’ उपसर्ग लगाने के बाद सरदार और असरदार हो जाता है।
बीवी के प्यार से होशियार
रामलाल ने अपने मित्र शामलाल से कहा: ‘मैं बहुत खुशनसीब हूं।’ शामलाल ने उससे पूछा कि उसे यह खुशफहमी क्यों है, तो उसने जवाब दिया: ‘जब भी मैं काम से घर लौटता हूं तो मेरी पत्नी बहुत प्यार से मुझे अपनी बांहों में लेकर मेरा स्वागत करती है।
ऐसे कितने लोग हैं, जिन्हें उनकी पत्नी का इतना प्यार मिल पाता है?’ शामलाल ने सोच-समझकर जवाब दिया: ‘यह तुम्हारी पत्नी का प्यार नहीं, बल्कि उसकी सतर्कता है।
वास्तव में वह यह जांच-पड़ताल कर लेना चाहती है कि कहीं तुम्हारे मुंह से शराब की गंध तो नहीं आ रही है या तुम्हारे शरीर पर कहीं लिपस्टिक का निशान तो नहीं है। लिहाजा, अपनी बीवी के प्यार से होशियार!’
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