बीते शुक्रवार को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के दो स्कूलों से शर्मसार करने वाली घटनाएं सामने आईं। पहली घटना नोएडा के सेक्टर-33 स्थित एक स्कूल की है, जहां बच्चों ने आरोप लगाया है कि एक शिक्षक उनके कपड़े उतरवाकर अश्लील हरकतें करता था। दूसरा मामला गाजियाबाद के नगर-3 स्थित एक प्ले स्कूल का है, जिसमें एक डांस टीचर द्वारा बच्चों से अश्लील हरकत करने का मामला प्रकाश में आया है। ये दोनों घटनाएं बताती हैं कि हमारे समाज में बच्चों का यौन शोषण कहीं भी हो सकता है और कोई भी यह कर सकता है।
देश के पर्यटन केंद्र बच्चों के शिकार के ठिकाने के तौर पर पहले से मशहूर हो ही रहे थे, अब यह अपराध खुले आकाश से लेकर चारदीवारियों के पीछे हर जगह हो रहा है। यकीन नहीं होता है, लेकिन हकीकत यही है कि देश का हर दूसरा मासूम किसी न किसी यौन उत्पीड़न का शिकार है। महिला और बाल विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक देश में आधे से ज्यादा बच्चे (53.22 फीसदी) यौन उत्पीड़न के शिकार हैं।
देश भर में बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामले लगातार इसलिए भी बढ़े हैं, क्योंकि इस पर अंकुश लगाने के लिए देश में कोई खास कानून नहीं है। ऐसे मामलों की सुनवाई भारतीय न्याय संहिता (आईपीसी) के तहत होती है, जिसमें महिलाओं के साथ बलात्कार के मामलों पर तो कठोर कार्रवाई की व्यवस्था है, लेकिन बच्चों के साथ यौन अपराध पर ठोस कार्रवाई में यह कारगर नहीं हो पाता, क्योंकि बाल यौन उत्पीड़न के कई रूप हैं और कई तो मौजूदा कानून के तहत अपराध में भी नहीं गिने जाते। खासकर लड़कों के साथ हुए यौन अपराध के मामलों को इस कानून के तहत गंभीरता से नहीं लिया जाता। लेकिन यह देखा गया है कि लड़के और लड़कियों का यौन शोषण लगभग बराबर ही होता है। स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों में यौन शोषण के लगातार बढ़ते मामले और पर्यटन इलाकों में भी ऐसे मामलों के सामने आने से अलग से कानून की मांग रही है। कानून मंत्रालय ने इस पर लगाम कसने के उद्देश्य से एक मसौदा तैयार किया है।
प्रस्तावित विधेयक में बाल यौन अपराध की संगीनता को देखते हुए इसे पांच स्तरों में बांटा गया है, जिसमें मौखिक छींटाकशी से लेकर अप्राकृतिक यौन उत्पीड़न तक को शामिल किया गया है। इसके तहत तीन साल से लेकर उम्रकैद की सजा के प्रावधान किए गए हैं। शारीरिक या मानसिक रूप से विकलांग बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न को गंभीर अपराध की श्रेणी में रखा गया है। प्रस्तावित विधेयक में बाल यौन अपराध लिंग भेदभाव से परे है। इसमें इस बात का पूरा खयाल रखा गया है कि पीड़ितों की पहचान गोपनीय रहे और उन्हें जल्द से जल्द न्याय मिले। कानून के लागू होने की सूरत में देश के प्रत्येक जिले में विशेष अदालत और अभियोजन पक्ष का होना सुनिश्चित किया जाएगा। इसके तहत पीड़ितों से एक महीने के अंदर सारे सबूतों का संज्ञान लिया जाएगा और हर हाल में एक साल के अंदर सुनवाई पूरी होगी।
इतना ही नहीं, आजकल जिस तरह से इंटरनेट पर बच्चों के यौन उत्पीड़न के मामले बढ़ रहे हैं, उसे भी मसौदे में शामिल किया गया है। पिछले दिनों मुंबई में एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि इंटरनेट का उपयोग करने वाले प्रत्येक 10 में 7 बच्चे यौन उत्पीड़न का शिकार बन सकते हैं। जिस तरह से इंटरनेट का उपयोग देशभर में बढ़ रहा है, उसे देखते हुए इसकी चपेट में आने वाले बच्चों की संख्या बढ़ेगी। प्रस्तावित कानून के तहत बाल यौन उत्पीड़न मामले की सुनवाई करने वाली विशेष अदालतों में ही इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट के तहत आने वाले बाल यौन उत्पीड़न मामलों की सुनवाई होगी।
प्रस्तावित मसौदे में 18 साल से कम उम्र के बच्चों के साथ यौन उत्पीड़न के मामलों को अपराध माना जाएगा, हालांकि इसमें इसका प्रावधान भी है कि 16 साल से अधिक उम्र का बच्चा आपसी सहमति से किसी से भी वैध शारीरिक संबंध बना सकता है। बाल यौन उत्पीड़न के ज्यादातर मामलों में अपराधी निकट संबंधी, परिचित और जान पहचान वाले लोग होते हैं। ऐसे में जरूरी है कि माता-पिता में बाल यौन उत्पीड़न को लेकर जागरूकता हो और वे अपने बच्चों को मानसिक तौर पर इसका विरोध करना सिखाएं।मसौदे के मुताबिक बाल यौन उत्पीड़न के आरोपियों को खुद के निदरेष होने का सबूत देना होगा। इस लिहाज से यह कानून एक कारगर कदम हो सकता है।
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