Friday, 13 May 2011

हीरोइन के ड्रीम रोल में ऐश

मधुर भंडारकर की फिल्म ‘हीरोइन’ (नायिका) अब ऐश्वर्या राय बच्चन अभिनीत करने जा रही हैं। मधुर इसे करीना कपूर के साथ बनाना चाहते थे, परंतु चारों खान सितारों के साथ फिल्मों के कारण करीना मधुर की फिल्म के लिए समय नहीं निकाल पा रही थीं। ऐश्वर्या राय को पटकथा इतनी पसंद आई कि उन्होंने संजय दत्त की ‘सत्ते पे सत्ता’ नामक फिल्म को कुछ समय के लिए टाल दिया है।

कहा जा रहा है कि मधुर की फिल्म हॉलीवुड अभिनेत्री मर्लिन मुनरो के जीवन से प्रेरित है और उन्होंने उनके जीवन की गुत्थियों का भारतीयकरण किया है। एक फिल्म सितारे के जीवन पर श्याम बेनेगल स्मिता पाटिल अभिनीत ‘भूमिका’ फिल्म बना चुके हैं। एक सफल फिल्म नायिका का जीवन एक त्रासद फिल्म की संभावना लिए होता है। आजकल एकता कपूर के लिए निर्देशक मिलन लूथरिया दक्षिण की सेक्स सिंबल रही सिल्क स्मिता के जीवन और आत्महत्या पर आधारित फिल्म विद्या बालन के साथ बना रहे हैं। प्रचारित सेक्सी सितारों का जीवन बुद्धिजीवियों को भी आकर्षित करता रहा है। ब्रिजिट बारडोट के विफल आत्महत्या प्रयास पर सिमोन द बोउवा जैसी लेखिका ने लिखा है।

मर्लिन मुनरो, मीना कुमारी, माइकल जैक्सन इत्यादि तमाम सफल और संतृप्त लोगों में एक समानता तो यह है कि उनका बचपन अत्यंत त्रासद अभावों और असुरक्षा से भरा रहा और जीवन भर वे लोग खोए हुए बचपन को तलाशते रहे। दूसरी समानता इनकी प्रेम की तलाश है। अनगिनत लंपट लोगों की टपकती लार और इच्छाओं के घोड़ों के बेलाग सरपट भागते रेलों के बीच एक बूंद सच्चे प्यार के लिए ताउम्र तड़पते रहते हैं ये लोग। इनके द्वारा गढ़ी गई मादक छवियां न केवल इनके प्रशंसकों को भरमाती हैं, वरन ये भी उन्हीं से ठगे जाते हैं।

बहरहाल, छत्तीस वर्ष की उम्र में ५ अगस्त 1962 को मर्लिन अपने शयनकक्ष में मृत पाई गईं और नींद की गोलियों के अधिक खा लेने से इसे आत्महत्या भी माना गया, परंतु पोस्टमार्टम में उनके शरीर में जहर पाया गया। 1973 में प्रकाशित नॉर्मन मेलर की किताब ‘मर्लिन’ में शंका जताई गई है कि वह आत्महत्या नहीं वरन राजनीतिक हत्या थी क्योंकि मर्लिन और रॉबर्ट कैनेडी के बीच प्रेम प्रसंग चल रहा था और अमेरिका के विवाहित एटॉर्नी जनरल की लुकी-छिपी प्रेमकथा का उजागर होना राजनीतिक विवाद खड़ा कर सकता था। भला किसी ‘नचनिया’ के लिए राजनीति के श्रेष्ठि परिवार पर आंच आ सकती है?

ज्ञातव्य है कि 1961 में जॉन एफ कैनेडी के जन्मदिन के अवसर पर न्यूयॉर्क के मेडिसन स्क्वायर गार्डन में आयोजित भव्य समारोह में मर्लिन ने भाग लिया था और ‘हैप्पी बर्थ-डे’ गाया था। मर्लिन ताउम्र अपनी मादक छवि से लड़ती रहीं और स्वयं को बेहतर अभिनेत्री साबित करने का प्रयास करती रहीं। 1950 में उनकी पहली बड़ी फिल्म ‘द एस्फाल्ट जंगल’ थी और 1961 में अंतिम फिल्म ‘द मिसफिट्स’ थी। एक तरह से वह लोकप्रियता के जंगल में स्वयं को अजनबी ही पाती रहीं।

मधुर भंडारकर ने ‘पेज ३’, ‘कारपोरेट’ और ‘फैशन’ जैसी फिल्में बखूबी बनाई थीं और वह संभ्रांत समाज की सतह के नीचे प्रवाहित गंदगी को पकड़ने में समर्थ रहे हैं। एक मादक शरीर वाली महिला सितारे के जीवन के बहाने वह मनोरंजन उद्योग की चमक के परे छाए हुए अंधेरे को प्रस्तुत कर सकते हैं। ऐश्वर्या राय बच्चन भी प्रारंभ से ही अपने सौंदर्य के परे अपनी अभिनय क्षमता दिखाने को बेताब रही हैं। यह उनके लिए अच्छा अवसर है। मादकता और अंतरंगता के दृश्य उनके लिए कठिन होंगे, परंतु अपनी आंखों के इस्तेमाल से भी भड़कती इच्छाओं का प्रस्तुतीकरण हो सकता है।

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