सलीम साहब से मुझे मौलाना अबुल कलाम आजाद का अप्रैल १९४६ में शोरिष कश्मीरी को उर्दू पत्रिका ‘चट्टान’ के लिए दिया साक्षात्कार मिला, जो ‘चट्टान’ के अतिरिक्त केवल एक बार पत्रकार द्वारा लिखी किताब में उपलब्ध था। आज पैंसठ वर्ष बाद भी आजाद साहब की प्रतिभा और दूरदृष्टि का अनुमान होता है और उनके आदर में नतमस्तक होना पड़ता है।
आज इतनी पुरानी बात का जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि पाकिस्तान के मौजूदा विघटन की कल्पना उस समय ही आजाद ने कर ली थी। आज भारत में अनेक लोग ओसामा बिन लादेन की तरह दाऊद पर आक्रमण की सलाह दे रहे हैं और विज्ञान फंतासी की पटकथा की तरह इसे शॉट-दर-शॉट बताने वालों की कमी नहीं है। इन पाकिस्तानी विरोधियों को चाणक्य नीति का भी स्मरण कराएं तो कहना होगा विघटन की कगार पर पाकिस्तान पर किया आक्रमण उसे पुन: एकता के सूत्र में बांध देगा क्योंकि हर देश अपने अंतर्विरोध उस समय भुला देता है, जब बाहरी आक्रमण होता है। गांधीजी के परम अनुयायी मौलाना आजाद सच्चे मुसलमान थे और उनका कहना था कि विभाजन कभी भी हिंदू-मुस्लिम तनाव को कम नहीं कर सकता और पाकिस्तान का जन्म कोई निदान नहीं, वरन समस्याओं को जन्म देगा। विभाजन की राजनीति कुरान के अर्थ और प्रचार दोनों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाएगी। धर्म के नाम पर ही धर्म को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया जाता है।
मौलाना साहब को जिन्ना का साथ देने वाले उलेमाओं पर कोई ऐतबार नहीं था। उनका विश्वास था कि तेरह सौ वर्ष के इस्लाम के इतिहास में अधिकतम उलेमाओं ने इस्लाम की सच्ची भावना को नुकसान ही पहुंचाया है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा से प्रेरित उलेमा इस्लाम का भला नहीं कर सकते। मौलाना साहब ने कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली लोग कभी भी बाहरी व्यक्तियों के नेतृत्व को लंबे समय तक सहन नहीं कर सकते और वे स्वतंत्र होकर रहेंगे। यह कल्पना १९४६ में करना मामूली बात नहीं थी। उन्होंने उस समय ही कहा था कि अरब देशों में एक भाषा और एक मजहब होते हुए भी मतभेद हैं क्योंकि मजहब के नाम पर राजनीतिक एकता लंबे समय तक नहीं टिकती।
आज ओसामा प्रकरण के बाद अरब देशों में गणतंत्र व्यवस्था के प्रति आग्रह और आंदोलन थमने की संभावना से इनकार नहीं कर सकते। अमेरिका के इस कदम में निहित अर्थ और संभावनाएं बहुत गहरी और अनेक सतहों वाली हैं। अमेरिका गणतंत्र व्यवस्था में यकीन का प्रतीक है और इस साख को धर्मांध लोगों के बीच धक्का पहुंच सकता है।
मौलाना साहब को यकीन था कि मजहब के नाम पर बनाए जा रहे पाकिस्तान में निहित स्वार्थ केवल धन बटोरने की स्वतंत्रता चाहते हैं और मौलाना साहब ने इन खतरों को रेखांकित किया था - अयोग्य अपरिपक्व राजनेता फौजी तानाशाही का पथ प्रशस्त करेंगे, विदेशी कर्जों का भार समझौते कराएगा, पड़ोसी देशों से दोस्ताना संबंध नहीं रहेंगे, क्षेत्रवाद पनपेगा, राष्ट्रीय संपदा की लूट होगी, चुनिंदा अमीरों की एकतरफा प्रगति से वर्ग संघर्ष को जन्म मिलेगा। बकौल मौलाना साहब जिन्ना 1906 से 1938 तक हिंदू-मुस्लिम एकता और कांग्रेस में यकीन करते थे। सात प्रांतों में होमरूल चुनावों के समय घिनौना प्रचार हुआ कि एक व्यक्ति एकमत के तहत हिंदुओं की सरकारें बनेंगी - इस गलत प्रचार से प्रभावित जिन्ना पूरी तरह बदले।
बहरहाल आज पाकिस्तानी होना अपमान की बात हो गया है कि कोई विदेशी उनकी जमीन पर आतंकवादी को मारे और आतंकवादी वहां अड्डा जमाएं। आज इस अपमान से वहां आत्मघाती प्रवृत्तियां पनप सकती हैं और आणविक शस्त्रों से संपन्न देश में संतुलन होना पूरी दुनिया की शांति के लिए आवश्यक है। अमेरिका चौकन्ना है और अब भारत को पहले से कहीं अधिक जागरूक रहना है। चीन के संदिग्ध इरादे और महत्वाकांक्षा देखते हुए हमारे पास अमेरिका से मित्रता बढ़ाने के अतिरिक्त कोई विकल्प भी नहीं है।
अमेरिका में 9/11 को ट्विन टावर्स का ध्वस्त होना और ओसामा को 40 मिनट में मार गिराना दोनों ही घटनाएं हॉलीवुड की फिल्मों की तरह लगती हैं। टेक्नोलॉजी हर अफसाने को हकीकत में बदल सकती है। हमारे फिल्म उद्योग को हॉलीवुड से थ्रिलर बनाना सीखना चाहिए। हम ओसामा खात्मे की तरह दाऊद खात्मा नहीं रच सकते। याद रहे, हर समय अमेरिका के सैकड़ों फौजी और विमान पाकिस्तान में मौजूद रहते हैं।
आज इतनी पुरानी बात का जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि पाकिस्तान के मौजूदा विघटन की कल्पना उस समय ही आजाद ने कर ली थी। आज भारत में अनेक लोग ओसामा बिन लादेन की तरह दाऊद पर आक्रमण की सलाह दे रहे हैं और विज्ञान फंतासी की पटकथा की तरह इसे शॉट-दर-शॉट बताने वालों की कमी नहीं है। इन पाकिस्तानी विरोधियों को चाणक्य नीति का भी स्मरण कराएं तो कहना होगा विघटन की कगार पर पाकिस्तान पर किया आक्रमण उसे पुन: एकता के सूत्र में बांध देगा क्योंकि हर देश अपने अंतर्विरोध उस समय भुला देता है, जब बाहरी आक्रमण होता है। गांधीजी के परम अनुयायी मौलाना आजाद सच्चे मुसलमान थे और उनका कहना था कि विभाजन कभी भी हिंदू-मुस्लिम तनाव को कम नहीं कर सकता और पाकिस्तान का जन्म कोई निदान नहीं, वरन समस्याओं को जन्म देगा। विभाजन की राजनीति कुरान के अर्थ और प्रचार दोनों को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाएगी। धर्म के नाम पर ही धर्म को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया जाता है।
मौलाना साहब को जिन्ना का साथ देने वाले उलेमाओं पर कोई ऐतबार नहीं था। उनका विश्वास था कि तेरह सौ वर्ष के इस्लाम के इतिहास में अधिकतम उलेमाओं ने इस्लाम की सच्ची भावना को नुकसान ही पहुंचाया है। राजनीतिक महत्वाकांक्षा से प्रेरित उलेमा इस्लाम का भला नहीं कर सकते। मौलाना साहब ने कहा था कि पूर्वी पाकिस्तान के बंगाली लोग कभी भी बाहरी व्यक्तियों के नेतृत्व को लंबे समय तक सहन नहीं कर सकते और वे स्वतंत्र होकर रहेंगे। यह कल्पना १९४६ में करना मामूली बात नहीं थी। उन्होंने उस समय ही कहा था कि अरब देशों में एक भाषा और एक मजहब होते हुए भी मतभेद हैं क्योंकि मजहब के नाम पर राजनीतिक एकता लंबे समय तक नहीं टिकती।
आज ओसामा प्रकरण के बाद अरब देशों में गणतंत्र व्यवस्था के प्रति आग्रह और आंदोलन थमने की संभावना से इनकार नहीं कर सकते। अमेरिका के इस कदम में निहित अर्थ और संभावनाएं बहुत गहरी और अनेक सतहों वाली हैं। अमेरिका गणतंत्र व्यवस्था में यकीन का प्रतीक है और इस साख को धर्मांध लोगों के बीच धक्का पहुंच सकता है।
मौलाना साहब को यकीन था कि मजहब के नाम पर बनाए जा रहे पाकिस्तान में निहित स्वार्थ केवल धन बटोरने की स्वतंत्रता चाहते हैं और मौलाना साहब ने इन खतरों को रेखांकित किया था - अयोग्य अपरिपक्व राजनेता फौजी तानाशाही का पथ प्रशस्त करेंगे, विदेशी कर्जों का भार समझौते कराएगा, पड़ोसी देशों से दोस्ताना संबंध नहीं रहेंगे, क्षेत्रवाद पनपेगा, राष्ट्रीय संपदा की लूट होगी, चुनिंदा अमीरों की एकतरफा प्रगति से वर्ग संघर्ष को जन्म मिलेगा। बकौल मौलाना साहब जिन्ना 1906 से 1938 तक हिंदू-मुस्लिम एकता और कांग्रेस में यकीन करते थे। सात प्रांतों में होमरूल चुनावों के समय घिनौना प्रचार हुआ कि एक व्यक्ति एकमत के तहत हिंदुओं की सरकारें बनेंगी - इस गलत प्रचार से प्रभावित जिन्ना पूरी तरह बदले।
बहरहाल आज पाकिस्तानी होना अपमान की बात हो गया है कि कोई विदेशी उनकी जमीन पर आतंकवादी को मारे और आतंकवादी वहां अड्डा जमाएं। आज इस अपमान से वहां आत्मघाती प्रवृत्तियां पनप सकती हैं और आणविक शस्त्रों से संपन्न देश में संतुलन होना पूरी दुनिया की शांति के लिए आवश्यक है। अमेरिका चौकन्ना है और अब भारत को पहले से कहीं अधिक जागरूक रहना है। चीन के संदिग्ध इरादे और महत्वाकांक्षा देखते हुए हमारे पास अमेरिका से मित्रता बढ़ाने के अतिरिक्त कोई विकल्प भी नहीं है।
अमेरिका में 9/11 को ट्विन टावर्स का ध्वस्त होना और ओसामा को 40 मिनट में मार गिराना दोनों ही घटनाएं हॉलीवुड की फिल्मों की तरह लगती हैं। टेक्नोलॉजी हर अफसाने को हकीकत में बदल सकती है। हमारे फिल्म उद्योग को हॉलीवुड से थ्रिलर बनाना सीखना चाहिए। हम ओसामा खात्मे की तरह दाऊद खात्मा नहीं रच सकते। याद रहे, हर समय अमेरिका के सैकड़ों फौजी और विमान पाकिस्तान में मौजूद रहते हैं।
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