Tuesday, 17 May 2011

माधुरी और संजय पुन: साथ में

माधुरी दीक्षित और संजय दत्त ‘साजन’, ‘थानेदार’ और ‘खलनायक’ के बाद अब फिर राज सिप्पी की अमिताभ और हेमा मालिनी अभिनीत ‘सत्ते पे सत्ता’ के नए संस्करण में काम करने जा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि ‘थानेदार’ के निर्माण के समय माधुरी और संजय के इश्क के चर्चे हर जुबान पर थे और उनके नजदीकी लोग प्रेम प्रकरण की तीव्रता को देखकर शादी की बातें भी कर रहे थे। उस दौर में मुंबई बम कांड में हथियार रखने और देश विरोधियों को जानने के तथाकथित

आरोपों के कारण संजय दत्त जेल भेज दिए गए और मध्यमवर्गीय परिवार में पली माधुरी तथाकथित इश्क के बादलों से टपककर धरती पर आ गिरीं। खबर तो यह भी थी कि उनका परिवार इस संभावित विवाह के खिलाफ था और संजय पर कानूनी कार्रवाई उनके लिए ईश्वरीय मदद की तरह मानी गई।

बहरहाल, माधुरी ने लंबी सफल पारी खेलकर अमेरिका में बसे डॉ. श्रीराम नेने से विवाह किया, बच्चे हुए और माधुरी की अपनी फंतासी की तरह कामयाब पटकथा में नायक-नायिका हाथ में हाथ लिए सूर्योदय की ओर प्रशस्त हुए। एक विराट सफल कहानी का सुखद अंत था। यश चोपड़ा की एक फिल्म ‘आजा नचले’ के जरिए माधुरी ने इंडस्ट्री में पुन: प्रवेश किया, परंतु फिल्म ने पानी नहीं मांगा। विगत कुछ समय में वे टेलीविजन पर देखी र्गई, परंतु वे सारे कार्यक्रम बस ठीक-ठाक ही रहे और विवाहित तथा दो बच्चों की मां ‘धक धक’ वाला जादू नहीं जगा पाईं।

आज फिल्म उद्योग में नए कथा विचारों की कमी के कारण 27 फिल्में पुरानी, चर्चित फिल्मों के नए संस्करण हैं और सारा उद्योग महज टोटकों और सनसनी पर स्वयं को जीवित बताने की हास्यास्पद कोशिश कर रहा है। इसलिए आश्चर्य नहीं कि माधुरी दीक्षित नेने और संजय दत्त को पुन: प्रस्तुत करने के पीछे यह आकांक्षा हो कि मीडिया बीस वर्ष पूर्व एक तथाकथित प्रेम प्रकरण की राख में अफवाह की चिंगारी खोज ले और एक सनसनी की नाव पर ताश का यह महल अर्थात ‘सत्ते पे सत्ता’ बॉक्स ऑफिस की वैतरणी पार कर जाए।

आने वाले समय में मीडिया के पौ-बारह हो जाएंगे और गरम मसाले की कमी नहीं होगी। संजय दत्त हमेशा ही आशिक मिजाज, खिलंदड़, मस्त-मौला रहे हैं। ‘मुन्नाभाई’ श्रंखला के अतिरिक्त विगत दशक में उनकी कोई फिल्म चली नहीं, परंतु ‘अग्निपथ’ में खलनायक की भूमिका के लिए उन्होंने अपना वजन घटाया है और नियमित कसरत के साथ ही शराब से भी तौबा कर ली है और अपने जुड़वां बच्चों के साथ बहुत वक्त गुजार रहे हैं। अब वे कॅरियर और जीवन के प्रति काफी सजग हो गए हैं। उनके नजदीक लोगों का कहना है कि यह परिवर्तन उनकी पत्नी मान्यता लाई हैं।

बहरहाल, क्या मान्यता अब माधुरी नेने के संजय के साथ काम करने को लेकर चिंतित होंगी? डॉ नेने मुतमईन हैं और सच तो यह है कि तथाकथित मुर्दा प्रेम के पुन: जीवित होने का कोई अवसर ही नहीं है, परंतु इस खेल के जानकार कहते हैं कि शिद्दत से किया प्यार मरकर भी नहीं मरता और दिल के किसी सुदूर कोने में जीवित रहता है।

गौरतलब केवल इतना है कि ‘सत्ते पे सत्ता’ कोई ‘मदर इंडिया’ या ‘पाकीजा’ नहीं है, जिसके लिए कोई सुपर सितारा अपनी वापसी दर्ज करे, जिसमें निहित हैं कुछ पारिवारिक खतरे भी। माधुरी और उनके परिवार पर कोई वित्तीय दबाव भी नहीं है। क्या मनुष्य का लालच कभी नहीं मरता? अमेरिका में बसे सुपर सितारे को भी घर के काम करने पड़ते हैं।

वहां घरेलू नौकर आसानी से नहीं मिलते। सुपर सितारे को आदत होती है कि दर्जन भर सेवक पलक पांवड़े बिछाए उसके हुक्म का इंतजार करते हैं। क्या लाइम लाइट का मोह कभी खत्म नहीं होता? यह सब व्यक्तिगत निर्णय और चुनाव हैं। इनमें किसी और का कोई जोर नहीं चलता। अगर माधुरी एक महान कलात्मक मराठी भाषा की फिल्म के लिए लौटतीं तो शुकराने का सांस्कृतिक भाव समझ में आता।

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